संत तुकाराम की पत्नी बड़े कर्कश स्वभाव की थीं। एक बार उनके लिए किसी किसान ने गन्नों का एक गट्ठा भेजा। रास्ते में जो परिचित बच्चे मिले, उनने एक−एक करके सभी गन्ने माँग लिए। घर के लिए एक बचा, सो उनने पत् नी को थमा दिया।
पत्नी गट्ठे की प्रतीक्षा में थी। एक मिला तो कारण पूछा। बताने पर बहुत क्रुद्ध हुई, उस गन्ने की संत की पीठ पर इतनी जोर से मारा कि टूटकर दो टुकड़े हो गए। चोट जोर की लगी।
इतने पर भी संत ने संतुलन नहीं खोया उलटे मारने वाले हाथों की प्रशंसा करने लगे। कैसे सधे हुए हाथ हैं कि गन्ना ठीक बीच से टूटा। मुलायम वाला भाग पत्नी को थमाते हुए, कड़ा वाला स्वयं ले लिया, न क्रोध किया न उलाहना दिया।
युद्ध के बाद ज्यूरिख में भयंकर अकाल पड़ा। साथ ही महामारियाँ भी फूट पड़ीं। इस आग से जूझने के लिए स्वयंसेवकों की जरूरत पड़ी।
ज्यूरिख के एक समाजसेवी संगठन ने पीड़ितों की सहायता के लिए एक सेवा-समिति गठित की। स्वयंसेवकों के लिए मार्मिक अपील छपी।
इस पुकार को सुनकर एक नवविवाहित दंपत्ति सामने आए। पति का नाम था सूसो, पत्नी का सेरलाओ। वे सेवा का आवेदन लेकर आए थे।
संगठनकर्त्ताओं ने कहा, “यदि सच्चे अर्थों में सेवा करनी है तो आप लोग संतानोत्पादन न करने का व्रत लें अन्यथा उस झंझट के कारण आप सच्चे मन और समय तक लगनपूर्वक काम न कर सकेंगे।” विचार कर दूसरे दिन आने के लिए उन्हें कहा गया।
पति-पत्नी दूसरे दिन नियत समय पर सेवाधिकारी के पास पहुँचे। उनने बाइबिल हाथ में लेकर आजीवन बच्चे न जनने की और सदा सेवाधर्म में लगे रहने की प्रतिज्ञा की।
संगठनकर्त्ताओं की आँखों में आँसू छलक आए। उन्होंने उस सच्चे सेवाव्रती दंपत्ति को हृदय खोलकर आशीर्वाद दिया और काम में जुटा दिया। उनके आदर्श ने अनेकों को प्रेरणा दी और वैसे ही व्रतधारी स्वयंसेवक एक हजार की संख्या में भर्ती हो गए।
विपत्ति से जूझने में इन सबने मोरचा सँभाला और लाखों के प्राण बचाए। सूसो दंपत्ति के अग्रिम कदम उस क्षेत्र में अभी भी भावनापूर्वक स्मरण किए जाते हैं। उन दिनों भी उन्हें धर्मप्राणों से बढ़कर आदर मिला था। समाज को समर्पित ऐसे अग्रदूत विरले ही होते हैं, पर इतिहास में वे अमर बन जाते हैं।