विधि-विधान - यहाँ कोई संयोग नहीं, सभी पूर्व नियोजित है।

May 2002

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संसार की पहेली अबूझ है और इसका रहस्य अगम। इसकी घटनाओं की कड़ियाँ जटिल एवं उलझी हुई प्रतीत होती है। इन कड़ियों में कोई तारतम्य एवं सामंजस्य न दिखाई पड़ने के कारण ही इसे संयोग मानकर संतोष कर लिया जाता है। एक ही दिन, तिथि एवं तारीख का यह संयोग आश्चर्यजनक एवं अद्भुत लगता है। जो भी हो संसार का यह संयोग है बड़ा ही रोचक एवं विचित्र।

संयोगों की यही सृष्टि शास्त्री जी के जीवन में देखने को मिलती है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के जीवन में मंगलवार का दिन ऐसे ही संयोगों से भरा रहा है। यह दिन उनके जीवन के महत्त्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी बना। मंगलवार के दिन ही वे बाल्यावस्था में प्रयाग के संगम में डूबने से बचे थे। अन्ततः यही दिन उनके जीवन का अन्तिम दिन सिद्ध हुआ। ताशकन्द वार्ता के दौरान जब उनकी मृत्यु हुई तो वह दिन भी मंगलवार ही था। इन दो दुःखद घटनाओं के अलावा इस दिन उनके लिए बड़े ही महत्त्वपूर्ण एवं शुभ कार्य भी हुए। उन्होंने देश की प्रधानमंत्री की शपथ इसी दिन ग्रहण की। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने उन्हें मंगलवार को ही ‘भारत रत्न’ के रूप में देश का सर्वोच्च सम्मान प्रदान किया। इन महत्त्वपूर्ण घटनाओं के अलावा सन् 1947 में उत्तरप्रदेश पार्लियामेण्डरी बोर्ड के मंत्री, 1951 में पुलिस एवं यातायात मंत्री, 1952 में काँग्रेस का महासचिव, 1957 में केन्द्रीय रेलमंत्री, परिवहन मंत्री आदि के प्रतिष्ठित पद उन्होंने मंगलवार के दिन ही ग्रहण किए थे।

लाल बहादुर शास्त्री के लिए मंगलवार का दिन एक अद्भुत संयोग बना। इस दिन उनके जीवन में कई और महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटी। संयोग की ऐसी ही अन्य अनेक कथा गाथाएँ अमेरिकी राष्ट्रपतियों के जीवन एवं शासन से भी सम्बन्धित रही हैं। अमेरिकी इतिहास के 160 वर्षों में एक विचित्र संयोग दृष्टिगोचर होता है। इस अवधि में प्रति बीस वर्ष में अमेरिकी राष्ट्रपति का निधन अपने ही कार्यकाल में हुआ। विलियम हैरीसन, अब्राहम लिंकन, गारफील्ड, हार्डिंग, फ्रेंकलिन रुजवेल्ट तथा जान.एफ. कैनेडी ऐसे ही अमेरिकी राष्ट्रपति थे जो अपने शासन काल के दौरान मारे गए या उनकी स्वाभाविक मृत्यु अपने ही कार्य काल में हुई। इसी प्रकार 1860, 1900, 1940 में चुने गये सभी राष्ट्रपतियों की अपने कार्यकाल की अवधि में ही मौत हो गई। यह भी एक अजीब संयोग है कि वे सभी राष्ट्रपति अपनी दूसरी बार शासन सँभाल रहे थे। हालाँकि रीगन, जार्जबुश, बिल क्लिंटन आदि इसके कुछ अपवाद भी हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपतियों की यह कथा यहीं समाप्त नहीं हो जाती बल्कि इससे और भी अनेक किम्वदन्तियाँ एवं घटनाएँ जुड़ी हुई हैं। ऐसी ही संयोगपूर्ण घटना का सामंजस्य जान एफ. कैनेडी और अब्राहम लिंकन के जीवन क्रम में दिखाई देता है। जान विशप ने इन दोनों राष्ट्रपतियों का तुलनात्मक अध्ययन-अनुसंधान करके बड़े ही रोचक तथ्य प्रस्तुत किये हैं। यहाँ तक कि इनके अद्भुत संयोग के कारण इन्हें एक ही आत्मा का विकास क्रम सिद्ध किया है। अर्थात् अब्राहम लिंकन ने ही जान एफ. कैनेडी के रूप में नया शरीर धारण किया था।

जान विशप के अनुसार लिंकन और कैनेडी चालीस वर्ष की आयु में राष्ट्रपति बने। लिंकन ने 1861 में अमेरिका के राष्ट्रपति के पद को सुशोभित किया था और कैनेडी 1961 में राष्ट्रपति ने। लिंकन की प्रथम पत्नी फैशनपरस्त थी और कविता व पेंटिग्स में विशेष रुचि रखती थी। ठीक इसी प्रकार रुचि एवं रुझान कैनेडी की पत्नी में भी थी। लिंकन के चार बच्चे थे, दो मर गए और अन्य दो उनके साथ रहते थे। कैनेडी के भी चार पुत्र हुए, दो भगवान् को प्यारे हो गए और दो जीवित रहे। भोजन में स्पार्श दोनों को प्रिय एवं पसंद था। लिंकन के निजी सचिव का नाम था कैनेडी और कैनेडी के निजी सचिव का नाम लिंकन था। दोनों की आस्था धार्मिकता की ओर थी। लिंकन और कैनेडी दोनों ही विश्व शाँति के प्रबल समर्थक रहे तथा नीग्रो स्वतंत्रता के पक्षधर थे। दोनोँ ही गोली के शिकार हुए और शुक्रवार के दिन उनकी मृत्यु हुई। और विचित्र बात यह है कि जॉनसन नामक उपराष्ट्रपतियों ने दोनों का पद भार संभाला था।

लिंकन और कैनेडी के जीवन की यह घटना दो अलग-अलग समय की अद्भुत पुनरावृत्ति थी। परन्तु एक ही जीवन काल में दो भिन्न व्यक्तियों के बीच यह तारतम्य अत्यन्त आश्चर्य पैदा करता है। ऐसा ही संयोग आयरलैण्ड के क्रुक हैवेन शहर में एक ही मकान में रहने वाले दो दम्पत्तियों की दो संतानों में भी दिखाई पड़ा। इन दो दम्पत्तियों के घर में एक ही दिन कुछ क्षणों के अन्तराल में दो पुत्रों का जन्म हुआ। उनका नाम रखा गया एलेनर गैडी तथा पैट्रिक। दोनों बच्चे बड़े होने पर दो भिन्न-भिन्न स्थानों पर खेलते तथा पढ़ते थे। एक दिन खेल के दौरान एलेनर के पैर में चोट लग गयी। हैरानी की बात थी कि पैट्रिक को भी ठीक इसी स्थान पर चोट का निशान देखा गया जबकि वह एक अलग स्थान पर खेल रहा था। इन दोनों को परीक्षाओं में भी हमेशा एक समान अंक प्राप्त होते थे। दोनों का विवाह भी एक ही दिन एक साथ हुए। उनकी सन्तानें भी एक दिन विशेष को पैदा हुई। एलेनर और पैट्रिक 96 वर्ष की आयु में एक ही दिन एक साथ बीमार हुए और दोनों एक ही साथ परलोक सिधार गए।

अंक, ज्योतिष एवं गणित आदि के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कारक है। पर यह व्यक्ति विशेष के जीवन में भी एक अद्भुत पहेली बनकर आता है। ऐसी ही पहेली जर्मनी के शासक चार्ल्स चौथे के जीवन में परिलक्षित हुई। चार्ल्स चौथे के जीवन में चार का अंक बड़ा ही संयोगपूर्ण रहा है। वे चार रंग की पोशाक को चार बार पहनते थे। चार प्रकार का भोजन चार टेबल पर बैठकर चार बार करते थे। उन्हें चार प्रकार की शराब पीने का शौक था। उनकी बग्घी में चार पहिये थे और चार घोड़े जोते जाते थे। उनके चार आलीशान महल थे। उनमें चार-चार दरवाजे और प्रत्येक महल में चार-चार कमरे, प्रत्येक कमरे में चार-चार ही खिड़कियाँ थीं। चार के इस विचित्र अंक ने उनको अन्त समय तक नहीं छोड़ा। चाल्स चौथे ने मृत्यु के समय चार बार अलविदा कहा और चार बजकर चार मिनट पर ही अपना शरीर छोड़ा। इस समय उनके पास चार डॉक्टर उपस्थित थे।

अद्भुत है यह अंकों की घटना। आयरलैण्ड स्थित डबलिन निवासी एण्टनी क्लैंसी के जीवन में सात की संख्या चमत्कारिक रही है। एलेन वान नामक एक लेखक इस चमत्कार से इतने अभिभूत हो उठे कि उन्होंने ‘इक्रोडिबील कोइंसीडेन्स’ नामक कृति की रचना कर डाली। इस ग्रंथ में उन्होंने क्लैंसी के जीवन का भी उल्लेख किया है जिसे सात संख्या के प्रति अत्यन्त लगाव पैदा हो गया था। इस संदर्भ में क्लैंसी का कहना था कि सप्ताह के सातवें दिन, महीने की सातवीं तारीख, वर्ष के सातवें महीने और इस सदी के सातवें वर्ष में मेरा जन्म हुआ। मैं अपने माता-पिता की सातवीं सन्तान हूँ। यहाँ तक कि मेरे पिता भी अपने अभिभावक के सातवें पुत्र थे। अपनी सातवीं वर्षगाँठ पर सातवीं घुड़दौड़ में मैंने सात नम्बर का घोड़ा चुना और उसका नाम था सातवाँ बहिश्त। मैंने उस घोड़े पर सात शिलिंग लगाये। रेस में भी उसका सातवाँ नम्बर था।

संख्याओं का यह खेल बड़ा विचित्र है एवं इनका संयोग अबूझ। संयोग का यह क्रम साइप्रस के शासक मलरिआस के जीवन में भी अनूठा रहा। उसके जीवन में तेरह के अंग ने अनेकों आश्चर्य पैदा किए। 10 अगस्त 1913 को उनका जन्म हुआ। 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने चर्च में प्रवेश किया। 13 नवम्बर 1946 में उन्होंने प्रीस्ट की दीक्षा ली। 13 जून 1948 में वे विशप बने तथा सिंहासन पर आरुढ़ हुए। 13 मार्च 1951 में यूनान के महाराज ने उनका अभिनन्दन किया। 13 दिसम्बर 1959 को वह राष्ट्रपति चुने गये। इस प्रकार 13 का अंक उनके जीवन में सौभाग्य सूर्य बनकर उदय हुआ था।

डेनबरा कोलराडो के धनाढ्य उद्योगपति शैरमेन के जीवन में भी 13 की संख्या विचित्र संयोगपूर्ण रही। शैरमेन का जन्म 13 तारीख को हुआ। इसी तारीख को उनकी सगाई हुई और विवाह भी सम्पन्न हुआ। जिनसे उनका विवाह हुआ उनका जन्म भी 13 तारीख को ही हुआ था। उनके विवाह में कुल 13 लोग शामिल हुए थे।

13 का यही अंक डॉ. रुद्र के लिए बड़ा दुर्भाग्यशाली सिद्ध हुआ। उत्तरी बर्टन यार्कस के डॉ. रुद्र 13 वर्ष की अल्पायु में गम्भीर रूप से बीमार पड़े। 13 दिन तक मर्मान्तक कष्ट एवं पीड़ा झेलते हुए 13 तारीख को हृदयगति के रुक जाने से उनकी मृत्यु हो गई। उनके परिवार में 13 सदस्य थे। मृत्यु के समय कुल 13 शिलिंग ही उनके खाते में शेष बचे थे। उनके अन्तिम संस्कार के समय भी 13 सदस्य ही उपस्थित थे। डॉ. रुद्र का असली नाम फूवाह था जो कि बाइबिल के 13 वें छन्द में उल्लेख मिलता है। 13 की संख्या उनके लिए इतनी अभिशप्त थी कि उनकी मृत्यु के बाद 13 तार ही शोक-संवेदना के रूप में आये।

फ्राँस के सिंहासन के साथ 14 की संख्या अद्भुत संयोगपूर्ण रही। फ्राँस के प्रथम सम्राट हेनरी 14 मई 1029 को सिंहासन पर आरुढ़ हुए। वहाँ के अन्तिम सम्राट भी हेनरी चौदहवें थे। 14 की संख्या वहाँ के शासकों का परछाई की तरह पीछा करती रही। 14 मई 1610 को हेनरी द्वितीय की हत्या हो गई थी। जिस 14 तारीख को एक को राज्य प्राप्त हुआ उसी को दूसरे राजा की 14 मई पर मृत्यु हो गई। वहाँ के सभी सम्राटों ने 14 मई को ही फ्राँस का राज्य विस्तार किया। हेनरी तृतीय को 14 मई के दिन युद्ध के मोर्चे पर जाना पड़ा। हेनरी चतुर्थ ने आपबारी का संग्राम 14 मार्च 1590 को जीता था। 14 दिसम्बर 1599 को सवाय के ड्यूक ने स्वयं को हेनरी के समक्ष आत्म समर्पण किया। 14 तारीख को ही लार्ड डफिन ने लुई 13वें के रूप में बपतिस्मा ग्रहण किया। हेनरी चतुर्थ के पुत्र लुई 13 वें की मृत्यु 14 मई 1643 को हुई। लुई 15 वें ने कुल 14 वर्ष राज्य किया।

यह संसार अद्भुत आश्चर्यों से भरा पड़ा है। अंकों की यह आँकड़ा क्यों किसी के जीवन में बारम्बार पुनरावृत्ति होती है। यह भी एक पहेली बना है। यह पहेली विश्व विख्यात चित्रकार अल्मटाडमा के जीवन में विचित्र ढंग से दृष्टिगोचर होती है। ये 17 की संख्या से प्रभावित थे। इस संदर्भ में वे कहते हैं- जब मैं 17 वर्ष का था तब 17 तारीख को मैं अपनी प्रिय पत्नी से मिला। मेरे प्रथम मकान का नम्बर 17 था। जब दूसरा मकान बनाया वह भी 17 अगस्त से प्रारम्भ हुआ और उसमें गृह प्रवेश 17 नवम्बर को ही हुआ। चित्रकारी के लिए सेण्ट जौंस वुड में मैंने जो कमरा लिया था वह भी 17 नम्बर का था।

अंकों की यह पहेली प्राकृतिक घटनाओं में भी देखी जा सकती है। ऐसी ही पहेली का सबब बनी रस्टीड जर्मनी के सेण्ट भूलारिच चर्च की एक ऊँची मीनार। इस मीनार पर सन् 1599 से 1783 के मध्य चार बार भयंकर बिजली गिरी। यह मीनार चार बार गिरी और पुनः नये सिरे से इसका चार बार पुनर्निर्माण किया गया। सबसे विचित्र बात तो यह थी कि इस पर चारों बार बिजली गिरने की तारीख 18 अप्रैल ही थी। इसी घटना से मिलता-जुलता रूप जापान में आयी भूकम्प की शृंखला थी। छः भूकम्पों का यह क्रम हरेक बार एक सितम्बर को तबाही मचाने आता रहा। ये तिथियाँ रही- 1 सितम्बर 837, 1 सितम्बर 859, 1 सितम्बर 869, 1 सितम्बर 1185, 1 सितम्बर 1649 एवं 1 सितम्बर 1923।

जीवन और प्रकृति की इन आश्चर्यपूर्ण एवं अद्भुत घटनाओं को भले ही संयोग मान लिया जाता है। परन्तु यह महज एक संयोग नहीं है। इसके पीछे उस नियन्ता का अवश्य ही कोई विधान होगा। इस तथ्य को स्वीकार करते हुए श्री अरविन्द भी उल्लेख करते हैं कि ‘देअर इज नो क्वाइन्सीडेन्स, एवरीथिंग इज प्रीप्लान्ड’ अर्थात् ईश्वर की सृष्टि चक्र में कहीं कोई संयोग नहीं है, सभी पूर्वनियोजित क्रम से परिचालित है। एकमात्र ईश्वर ही इसका द्रष्टा और स्रष्टा है। अतः मनुष्य जीवन की इस अनोखी और विचित्र पहेली को जानने-समझने के लिए ईश्वर की शरण ही उपाय है। यही वह तत्त्व और सत्य है, जिसे जानने के पश्चात् और कोई भी रहस्य एवं पहेली अबूझ नहीं रह जाती। ईश्वर चिन्तन-स्मरण के माध्यम से ही जीवन में अनेकों पहेलियों एवं संयोग के घटते रहस्य को जाना जा सकता है।


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