परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - भगवान के अनुदान किन शर्तों पर मिलते हैं

May 2002

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-गताँक से आगे

मित्रो! मैं आपको उस अध्यात्म को सिखाना चाहता हूँ, जिसे मेरे गुरु ने मुझे सिखाया और जिसे ऋषियों ने अपने शिष्यों को पढ़ाया। हम उसी शानदार सिद्धाँत पर विश्वास करते हैं और आपको उसी शानदार अध्यात्म को अपनाने की प्रार्थना करते हैं। इसी के लिए हमने सब इंतजाम रचाया है। अगर आप सीख सकते हों, कर सकते हों, तो कर लें, सीख लें। फायदा उठा लें। जो अध्यात्म हम सिखाना चाहते हैं, जिसके लिए हमने आपको इस आध्यात्मिक शिविर में बुलाया है, वह कैसा अध्यात्म है! उसके तीन फायदे हैं। सिद्धियाँ कितनी होती हैं? यह आठ होती हैं, लेकिन ये अष्ट सिद्धियाँ और नौ ऋद्धियाँ मेरी समझ में नहीं आतीं। मेरी समझ में तो तीन सिद्धियाँ आती हैं और ये सुनिश्चित रूप से मिलती हैं। अष्ट सिद्धियों के बारे में तो मैं नहीं कह सकता कि इससे हवा में तैरना आ जाता है। हाँ गुरुजी! सिद्धियों से चमत्कार आते हैं। अष्ट सिद्धियाँ, नव निधियाँ होती हैं। अच्छा तो आपका मतलब हवा में तैरने से है। आप यही कह रहे थे न कि सिद्धियाँ मिल जाएँ। चलिए सिद्धि की एक घटना याद आ गई, उसे ही आपको सुनाता हूँ।

जमीन पर चलें, हवा में नहीं

हसन नाम के एक बड़े सिद्ध पुरुष थे। राबिया नाम की एक संत महिला भी बड़ी सिद्ध थी। दोनों की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। हसन के बारे में राबिया ने तारीफ सुन रखी थी और राबिया की तारीफ हसन ने सुन रखी थी। एक बार हसन ने कहा- चलो हमें ही राबिया के पास जाना चाहिए। हसन राबिया के पास पहुँच गए। राबिया बहुत खुश हुई। उसने कहा- आप आ गए, हमारा भाग्य खुल गया। हम तो कहीं जाते नहीं, आपने कृपा की और हमारे घर आ गए। उन्हें बिठाया, स्वागत-सत्कार किया।

नमाज पढ़ने का वक्त आ गया। हसन ने कहा- राबिया! आज हम साथ-साथ नमाज पढ़ेंगे। नमाज का टाइम हो गया तो पढ़नी ही चाहिए। उन्होंने अपना बिछाने का कपड़ा-जिसको अरबी में ‘मुसल्ला’ कहते हैं, लिया और पानी में फेंक दिया। वह पानी में तैरने लगा। हसन ने कहा कि हम तो पानी पर बैठकर नमाज पढ़ेंगे और चमत्कार दिखाएँगे। राबिया तुम भी आ सकती हो। राबिया समझ गई कि हसन अपनी करामात दिखाना चाहते हैं कि हम पानी पर सवार हो सकते हैं और बिना डूबे बैठ सकते हैं। वे चमत्कार दिखा रहे थे कि देखो हमारे पास कितनी सिद्धियाँ हैं!

राबिया को बहुत दुःख हुआ। राबिया उनके पास तो नहीं गई, पानी के ऊपर मुसल्ला भी नहीं फेंका। उसने अपना मुसल्ला फौरन हवा में फेंक दिया। वह हवा में तैरने लगा। राबिया ने कहा- हसन! पानी में नमाज पढ़ना ठीक नहीं। पानी में मेढक रहते हैं, पेशाब करते हैं। मछलियाँ अंडे देती हैं। इसलिए उसमें हमेशा गंदगी छाई रहती है। इसमें बहकर कूड़ा-कचरा आ जाता है, बादलों की धूल आ जाती है। ये गंदी जगह है। पानी खुदा की नमाज पढ़ने के लिए ठीक नहीं है। आइए हवा में नमाज पढ़ेंगे।

हसन पानी-पानी हो गए। पानी पर तैरने की तो उन्होंने सिद्धि प्राप्त कर ली थी, पर हवा में तैरने की सिद्धि नहीं आई थी। राबिया के सामने जब हसन शर्मिंदा हो गए, तो राबिया ने कहा- हसन आप गलती पर थे और मैं आप से भी ज्यादा गलती पर थी। जो काम एक मेढक और मछली कर सकती है, आप वह काम करने वाले थे और यह दिखाने वाले थे कि हम कोई चमत्कार दिखाने वाले हैं और मैं आपसे भी ज्यादा बेअक्ल थी। मैंने अपना मुसल्ला हवा में फेंक करके यह जाहिर करने की कोशिश की कि जो काम एक मच्छर कर सकता है, एक कीड़ा, एक पतंगा कर सकता है, उस कीड़े, मक्खी वाले काम को मैं करने जा रही थी। मैं आप से भी ज्यादा बेअक्ल थी और आप मुझसे भी ज्यादा बेअक्ल थे। आइए हम लोग जमीन पर मुसल्ला बिछाएँ ओर जमीन पर चलें।

अध्यात्म : एक नकद धर्म

मित्रों! आप जमीन पर चलिए, हवा में तैरना बंद कीजिए। देवलोक जाना बंद कीजिए। सिद्धियों का ख्वाब देखना बंद कीजिए। आप जमीन पर आइए और जमीन पर चलना शुरू कीजिए, ताकि वो अध्यात्म मिल सके जो कि हमारे लिए संभव है, स्वाभाविक है, जो कि हमको मिल सकता है, जिससे आप फायदा उठा सकते हैं। ऐसा अध्यात्म लेने में आपको हर्ज क्या है ! हवाई उड़ान आपको क्या दे सकती है! आपको हवा ही मिलनी चाहिए, इससे आपको क्या फायदा ! मरने के बाद हमको मुक्ति मिलनी चाहिए। मरने के बाद क्यों, यदि इसी जीवन में, इसी जन्म में और अभी स्वर्ग और मुक्ति मिल जाए तो क्या हर्ज है आपको! नहीं साहब! कोई हर्ज नहीं। तो फिर आप क्यों कहते हैं कि भगवान् मरने के बाद मिले। अभी क्यों नहीं मिले ? नहीं साहब! भगवान् तो धर्म लोक में रहता है, बैकुँठ लोक में रहता है। चलिए, हम आपको दूसरा फायदा करा दें और भगवान् से आपको अभी मिला दें तो कोई हर्ज है आपको ? साहब ! वो तो और भी अच्छा है, आप वही क्यों नहीं करते।

मित्रो! आप नकद धर्म को ग्रहण कीजिए और उसकी कीमत चुकाइए। नकद धर्म कैसा होता है ? जो ध्यान हम आपको सिखाना चाहते हैं, उसमें तीन सिद्धियाँ हैं। चौथी सिद्धि तो उसका ब्याज है। मूलधन वह होता है, जिसे बैंक में जमा कर देते हैं। ब्याज क्या होता है ? बेटे, ब्याज वह धन होता है, जो आपके जमापूँजी पर आठ-दस प्रतिशत के हिसाब से अतिरिक्त रूप में मिलता है। अपना रुपया हमारे बैंक में जमा कर जाइए, हम आपको और भी नफा दे देंगे। क्या नफा दे देंगे ? हम आपको ब्याज दे देंगे। ब्याज हमारा रुपया नहीं! हाँ ब्याज आपका तो नहीं है, पर हम आपको दे देंगे। कौन-सी वाली ब्याज है, जो आप चाहते हैं, वह मूलधन नहीं है, ध्यान रखें। अध्यात्म नकद धर्म है, मूलधन है, ऋद्धि-सिद्धियाँ उसकी ब्याज हैं।

साथियों! जिस तरह का अध्यात्म हम आपको सिखाना चाहते हैं, उसके लिए आपको तरीके बताएँगे। उसकी साधना सिखाने का ही हमारा उद्देश्य है। उसके लिए ही आपको बुलाना पड़ता है। आप न सीखें, न समझें तो फिर हम क्या कर सकते हैं! आप पर तो गलतफहमियाँ हावी होती जा रही हैं। इन गलतफहमियों को जब तक न निकालूँ, तब तक वास्तविकता आपको कैसे बताऊँ। आप पर तो यही गलतफहमियां हावी हो रही हैं कि मंत्र जपो, धन आएगा। आपको वहाँ बैठे ही मूलधन चाहिए। अगर आप ऐसे ही उलझे रहेंगे तो मैं आपको सच्चा अध्यात्म कैसे बताऊँगा? नहीं गुरुजी! आप ऐसा मंत्र बताइए जिससे पैसा मिल जाए, बेटा मिल जाए। चलो अभी बता देते हैं। क्या मंत्र है! बस वही है जो बाबा बता गया था और आपसे मोटी दक्षिणा ले गया था। चलो हम भी वही बता देते हैं। क्या है? वही-”ह्नीं श्रीं क्लीं चामुण्डयै बिच्चैः” बेटे, इससे तो बहुत रुपया आया होगा? हाँ गुरुजी! हमने जप किया था। अच्छा तो अभी और झक मार और ‘चामुण्डयै बिच्चैः’ जपता रह। दुष्ट लूट का माल मारने के लिए खड़ा है और कहता है कि मंत्र का चमत्कार दिखाइए।

चमत्कारों की जन्मस्थली अपना आपा

मित्रो! मंत्रों के चमत्कार कहाँ से आते हैं? मंत्रों के चमत्कार आदमी के भीतर से आते हैं। पेड़ जो आपको बाहर खड़ा दिखाई पड़ता है, कहाँ से आता है? पेड़ पर फल, फूल, पत्ते कहाँ से आते हैं? अच्छा, पहले बताइए कि पत्ते कहाँ से आते हैं? पत्ते, साहब! हवा में से भागते हुए आ जाते हैं और डाली से चिपक जाते हैं। अच्छा फूल कहाँ से आते हैं? फूल रात में तारों से ऊपर से गिरते हैं और पेड़ पर चिपक जाते है और ये फल कहाँ से आते हैं? फल, गुरुजी! रात में बादल आते हैं तो बहुत से फल लाते हैं। अच्छा तो फल क्या करते हैं? टप-टप टपक पड़ते हैं और पेड़ पकड़ लेते हैं। कि फल बाहर से आते हैं। अच्छा, ये फूल भी बाहर से आते हैं और पत्ते भी बाहर से आते हैं? हाँ साहब। नहीं बेटे, तेरा यह ख्याल गलत है। तो गुरुजी! आप ही बताइए कि सही बात क्या है? बेटे, पेड़ की जड़े जमीन में होती हैं, जो दिखाई नहीं पड़तीं। ये जड़ें जमीन से रस चूसती हैं और उसे चूसती हैं और उसे चूसने के बाद खाने की तरह ऊपर तने में फेंक देती हैं, डालियों में फेंक देती हैं, पत्तों में फेंक देती हैं, फूलों में फेंक देती हैं और फलों में फेंक देती हैं। यह कहाँ से आता है? बाहर से नहीं भीतर से आता है। बाहर से मतलब-देवताओं से नहीं आता। आप समझते क्यों नहीं? इसी का नाम अध्यात्म है।

अध्यात्म किसे कहते हैं? ‘साइंस ऑफ सोल’ को अध्यात्म कहते हैं। सोल की साइंस में-आत्मा के विज्ञान में हर चीज भीतर से निकलती है। आप बाहर से ही माँगते हैं। देवताओं से माँगते हैं। मनुहार-उपहार, अनुग्रह-उपहार यही आपकी मान्यता है। मनुहार करेंगे, उपहार पाएँगे, यही ख्याल है न आपका? अच्छा बताइए कि बादलों में पानी किसने पैदा किया? नहीं साहब मनुहार करेंगे, उपहार पाएँगे, साष्टाँग दंडवत करेंगे और उपहार पाएँगे, आपको यह सब किसने कहा था? साहब! वो बाबा कह रहा था। पागल है बाबा।

मित्रों! क्या करना चाहिए ? आपको वास्तविकता के नजदीक आना चाहिए। वास्तविकता के फायदे बताने के बाद मैं आपको आध्यात्मिकता के तरीके बताना चाहूँगा कि आपको

क्या करना चाहिए। वास्तविकता के फायदे जानने के बाद यदि आपको काफी मालूम पड़ते हों, तो आप अध्यात्म के नजदीक आइए और अगर ये कम मालूम पड़ते हों तो आप न भी आएँ तो कोई हर्ज नहीं है। हमने तो इससे तीन फायदे उठाए हैं। पहला फायदा यह आता है कि हमारा भीतर वाला हिस्सा-जिसको हम ‘अंतःकरण’ कहते हैं, इतना शुद्ध और पवित्र हो जाता है कि आदमी को हर समय एक वरदान मिलता रहता है, जिसको हम ‘संतोष’ कहते हैं।

अंदर की खुशी एक दिव्य वरदान

मित्रो! खुशियों के तरीके दो हैं। एक खुशी बाहर से आती है-मसलन खाना। खाने के समय कोई जायकेदार चीज मिल जाए तो यह एक बाह्य खुशी है। साहब क्या खाकर आए ? पेड़े खाकर आए, लड्डू खाकर आए, अच्छा ठीक और एक खुशी वो होती है कि आप सिनेमा देखकर आए। ये कौन-सी खुशियाँ हैं? ये चीजें मिलने की वजह से खुशियाँ होती हैं। ये खुशियाँ होती तो हैं, पर थोड़ी देर के लिए ही ठहरती हैं, फिर गायब हो जाती हैं। सिनेमा देखकर आए-गायब, मिठाई खाकर आए, गायब। थोड़ी देर में ही ये सारी खुशियाँ गायब हो जाती हैं। ये टिकाऊ नहीं होतीं। टिकाऊ चीज क्या होती है? जो चीज भीतर से निकलती है, उसका नाम है-’शाँति’। शाँति का ही दूसरा नाम संतोष है। शाँति के बारे में जो आपने सुन रखा है, उस चैन को शाँति नहीं कहते। कोई मुसीबत न आए, हल्ला-गुल्ला न मचे, कोलाहल न हो, इसे शाँति नहीं कहते। नहीं साहब! शाँति उसे भी कहते हैं कि काली कमली लेकर चले जाएँगे और कहीं गुफा में रहेंगे, जहाँ कोई झंझट, घोटाला न हो, कोई बोले-चाले नहीं। हर तरफ शाँति हो। बेटे, ये मान्यता गलत है। यह शाँति की परिभाषा नहीं है। शाँति की प्राथमिक परिभाषा यह है कि आदमी को संतोष रहता है। संतोष किसको रहेगा? संतोष सिर्फ एक आदमी को रहेगा, जिसने अपने जीवन का क्रम ऐसा बना लिया है कि जिससे उसके अंदर अंतर्द्वंद्व क्या है ? अंतर्द्वंद्व बेटे दो साँड़ों की लड़ाई की तरह है । दो साँड़ों की लड़ाई देखी है न आपने ? हाँ गुरुजी! जब दो साँड़ लड़ते हैं तो खेत को, दुकान को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं। एक बार तो दो खोमचे वाले बैठे थे और दो साँड़ लड़ते हुए आ गए। फिर क्या हुआ? उन्होंने खोमचे वालों का सामान फैला दिया और मुसाफिरों को धक्के मारे। और क्या हुआ? और गुरुजी! उसने दीवार में टक्कर मारी और धकेल वाले को उछाल दिया। एक दिन हमने खेत में लड़ते हुए साँड़ देखे। वो क्या करते थे? गुरुजी! वे दोनों ऐसे लड़े कि बेचारी गेहूँ की फसल और धान की फसल को चौपट करके धर दिया। लड़ते-लड़ते वे सब चौपट कर गए।

मित्रो! साँड़ कहाँ होते हैं? साँड़ हमारे भीतर रहते हैं। साँड़ कौन होते हैं ? साँड़ हमारे भीतर रहते हैं। साँड़ कौन होते हैं? एक तो वे जिन्हें अवाँछनीयता कहते हैं, अनैतिकता कहते हैं। बेटे, हमारे भीतर एक नैतिक पक्ष है और एक अनैतिक पक्ष है। दोनों के भीतर कोहराम मचता रहता है। दोनों के बीच लड़ाई चलती रहती है ।यह लड़ाई कभी बंद नहीं होती। एक कहता है कि आप मान जाइए, दूसरा कहता है कि आप मान जाइए। दोनों ही नहीं मानते। हमारे भीतर जो शैतान बैठा हुआ है, वो भी नहीं मानता और अंदर बैठे भगवान् से कहते हैं कि आप ही चुप हो जाइए, तो वो भी नहीं मानता। दोनों के भीतर जो कोहराम मचता रहता है, अंतर्द्वंद्व चलता रहता है, इसकी वजह से हमारे भीतर अशाँति पैदा होती है। हर जगह अशाँति, हर जगह नाराजगी, हर जगह असंतोष-हमारे भीतर छाया रहता है।

अध्यात्म से क्या हो जाएगा? इस शिविर में मैं उस अध्यात्म को आपको सिखाने वाला हूँ, जो मुझे मेरे गुरु ने सिखाया है और उसका परिणाम नगद धर्म है। इससे आपको क्या मिलेगा ? इससे आपको भीतर से एक ऐसी चीज मिलेगी, जिसे संतोष कहते हैं। संतोष किसे कहते हैं ? बेटे, संतोष उसे कहते हैं जिसके कारण आदमी मस्ती में झूमता रहता है, खुशी से झूमता रहता है। आदमी की परेशानियाँ दूर हो जाती हैं। न आदमी को टैंऊक्युलाइजर की गोलियाँ खानी पड़ती हैं, न ड्रिंक करना पड़ता है और न सिनेमा जाना पड़ता है। आदमी अपनी जिंदगी शाँति से, चैन से जी लेता है। ऐसी शाँति की जिंदगी जिसमें बहुत गहरी नींद आती है। भगवान बुद्ध पूरे आठ घंटे सोया करते थे। उनकी नींद में एक और विशेषता थी कि जिस भी करवट एक बार हाथ धर कर सो जाते थे, सबेरे उधर ही उठते थे। सोते समय एक बार जिधर पैर रख लिया, सबेरे तक वह वहीं रहेगा, क्योंकि उन्हें बहुत गहरी नींद आती थी। नींद का मजा तो आपने लिया ही नहीं। आपने किसका मजा लिया-रोटी का मजा लिया। कभी आपको असली मजा लेना हो तो-नींद का होता है, उसे लेना। आज इसके बिना आदमी हैरान रहते हैं और कहते हैं कि नींद आती। नींद किसको आएगी? हरेक आदमी को आएगी, जिसका अंतर्द्वंद्व बंद हो जाएगा। जिनके अंदर के साँड़ लड़ना बंद कर देंगे। जो एक रास्ते पर चलेंगे।

क्राँतिकारी अध्यात्म की ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ

मित्रों! अगर आपको यह पसंद हो कि आपको संतोष हो और संतोष की वजह से शाँति मिले तो आपको इस अध्यात्म को अपनाना होगा। इसमें फसल भीतर से उगना शुरू कर देती है, जिसको आप अतींद्रिय क्षमता कहते हैं। अतींद्रिय क्षमता क्या होती है ? दूरदर्शन की क्षमता-दूर देखने की क्षमता, दूर श्रवण की क्षमता। हमारे अंदर टेलीविजन लगे हुए हैं, वायरलैस लगे हुए हैं। इतने सारे वैज्ञानिक उपकरण लगे हुए हैं, वायरलैस लगे हुए हैं। इतने सारे वैज्ञानिक उपकरण लगे हुए हैं, जो साधारण आदमी को नहीं मिल सकते, लेकिन आप को मिल सकते हैं। शर्त केवल यह है कि आपके भीतर जो कोहराम मचा रहता है, उसे आप बंद कर दें।

साथियो! जो अध्यात्म हम आपको सिखाएँगे, उसमें यह कोहराम बंद हो जाएगा। जब अंदर का कोहराम खत्म हो जाएगा, तब हर जगह आपको जिंदगी का जायका, जिंदगी का मजा मिलेगा। जिंदगी का मजा संतोष के ऊपर टिका हुआ है, खुशी के ऊपर टिका हुआ है। आप सारे कार्य खुशी के लिए ही तो करते हैं! खुशी के लिए सिनेमा देखते हैं। खुशी के लिए बच्चों के ब्याह में सम्मिलित होते हैं, लेकिन खुशी का बेहतरीन स्वरूप वो है, जिसको हम संतोष कहते हैं। संतोष अगर आपको मिल सकता है, तब आपके चेहरे पर हर समय खुशी दिखाई पड़ेगी। चेहरे पर आपको क्या मालूम पड़ेगा ? दो बातें मालूम पड़ेंगी-एक तो आपको गहरी नींद आया करेगी और दूसरा आपके चेहरे पर गुलाब के फूल की तरह खुशी दिखाई पड़ेगी। फिर आपकी खीझ, आपकी झल्लाहट, आपकी नाराजगी सब दूर हो जाएगी।

मित्रो! वो अध्यात्म जो हम आपको सिखाने वाले हैं और जिसको हमारे गुरु ने सिखाया है, आपकी जिंदगी में से खीझ खत्म कर सकते हैं। अगर ये सिद्धि आपको मंजूर हो तो आइए हमारे साथ, हम आपको सिखाएँगे। आप उसे सीखिए और कीमत चुकाइए। आदमी का संतोष जो भीतर से निकलता है, प्रतिभा जो भीतर से निकलती है, प्रखरता जो भीतर से निकलती है-सब भीतर से निकलती हैं। ‘भीतर’ से आप क्या समझते है, पर जरा-सा खोद दें तो मिलेगा-पानी। और जरा गहरा खोदें तो पेट्रोल मिलेगा। जहाँ आप बैठे हैं, अगर उस पाँच फुट जगह में मशीन से खुदाई करना शुरू कर दें और जहाँ तक जमीन है वहाँ तक गुड्डे कर डालें, तो उसमें करोड़ों, अरबों, खरबों रुपए की दौलत मिल जाएगी। बेटे, बाहर तो मिट्टी है, पर भीतर संपत्ति है, बहुमूल्य संपदा है।

मित्रों! आदमी के व्यक्तित्व के भीतर जाने क्या-क्या भरा पड़ा है। आदमी के बाहर-यह जो आपको दिखाई पड़ता है, यह रोटी रहता है, टट्टी-पेशाब करता रहता है। यह तो इसका लिफाफा है, जो पैसा कमाता रहता है, सिनेमा देखता रहता है, बच्चे पैदा करता रहता है-यह लिफाफा है। लिफाफा भी होता है और उसमें भी जंजाल बन जाते हैं। कैसे ? अरे भाई ! जैसे हमारे जुएँ पड़ जाते हैं। जुओं के लिए कोई मकान है ? कोई घर-गृहस्थी है ? कोई खेती-बाड़ी है ? कोई भी नहीं है। वे इसी में गुजारा कर लेते हैं। इसी तरह जुएँ के तरीके से आप अपने जीवन का महत्त्व समझते हैं। सिर में से कितने जुँए निकले ? पाँच। ये पाँच जुएँ क्या होते हैं ? ये पाँच बच्चे हैं। जुएँ और बच्चे की बात एक ही होती है-बिल्कुल एक ही बात। बच्चे हमारा बहिरंग जीवन है।

अंतरंग जीवन क्या है ? अंतरंग जीवन को तो आपने कभी देखा भी नहीं। उसे कभी छुआ भी नहीं। अंतरंग जीवन की कभी हवा भी नहीं लगी आपको। अंतरंग जीवन की आपको कभी गंध भी नहीं आई। आपने अंतरंग जीवन का स्वरूप ही नहीं देखा। आदमी के अंतरंग का जो स्वरूप है, अगर उसे आप देख पाते, तो आपकी जिंदगी में मजा आ जाता । अगर आप अपने भीतर वाले को शानदार बना लेते, तो मैं यह कहता हूँ कि आपको दो शक्तियाँ मिलतीं। एक तो आपको गहरी नींद आती। गुरुजी! आपको गहरी नींद आती है? हाँ बेटे, हमको ऐसी गहरी नींद आती है कि हम आठ बजे यहाँ से जाते हैं और बिस्तर पर लेटते ही साढ़े आठ बजे तक गहरी नींद में चले जाते हैं, फिर साढ़े बारह बजे हमारी आँख खुल जाती है और एक बजे तक आधे घंटे में हम नहा-धोकर अपना काम चालू कर देते हैं, भजन-पूजन करते हैं। हम कितने घंटे सोते हैं ? चार घंटे में हमको इतनी गहरी नींद आती है कि चाहे जमीन फट जाए या आसमान टूट जाए, हमें सामान्य घटनाएँ प्रभावित नहीं करतीं।

संतोष धन सबसे बड़ी पूँजी

हमें इतनी गहरी नींद क्यों आती है ? क्योंकि हमें कोई चिंता नहीं है। आपके शाँतिकुँज की हमें बिल्कुल चिंता नहीं, गायत्री तपोभूमि की हमको बिलकुल चिंता नहीं। आपके युग निर्माण की हमको बिलकुल चिंता नहीं। क्यों ? क्योंकि हम भगवान पर विश्वा करते हैं। आपको चिंता क्यों है ? क्योंकि आप भगवान पर विश्वास नहीं करते । भगवान का नाम लेते हैं, पर भगवान पर विश्वास नहीं करते। हम भगवान पर विश्वास करते हैं और ये समझते हैं कि सारी दुनिया उसी के चक्र पर घूम रही है और हम भी उसी के इशारे पर कठपुतली की तरह काम करते हैं और उसको जो काम करना होगा, वह ठीक हो जाएगा। इसीलिए हमें पूरी नींद आती है और रात को जरा भी असंतोष नहीं होता और चिंता बिलकुल नहीं आती। और क्या रहता है? बेटे! हमारे चेहरे पर मुस्कराहट छाई रहती है।मित्रो! गाँधी जी के चेहरे पर सदैव मुस्कराहट रहती थी, वे जल्दी-जल्दी हँसते रहते थे। वे मजाक भी करते थे। गाँधी जी से एक बार पूछा कि आप तो बार-बार हँसते हैं। उन्होंने कहा- हँसेंगे नहीं तो जिएँगे कैसे। हँसते के ऊपर ही तो हमारी जिंदगी कायम है। जो आदमी हँसते नहीं, वे मनहूस होते हैं। मनहूस माने राक्षस, शैतान-जिसको देखकर बच्चे भाग जाते है। यह कौन आ गया? मनहूस आ गया। मनहूस कैसा होता है? जैसे पापा। पापा किसे कहते हैं? मनहूस को। पाप जब घर में घुसेगा तो सब पर हावी होता चला जाएगा। यह कौन है? मनहूस है, राक्षस है जो हँसना-हँसाना नहीं जानता।

मित्रों ! अगर आपके भीतर कदाचित् अध्यात्म आ गया तो आपके चेहरे से मिठास बरसेगी। आपकी वाणी से रस बरसेगा। आपके व्यवहार में न जाने क्या-क्या शानदार चीजें आएँगी। अध्यात्म उस चीज का नाम है जो आपके भीतर संतोष लाकर के देगा। यह हुई सिद्ध नंबर एक। अगर आपको यह सिद्धि स्वीकार हो तो चलिए फिर हम आपको साधना बताएँगे। गुरुजी ! साधना बताने में तो बहुत टाइम लग जाएगा? नहीं बेटा ये तो मिनटों की बात है। आपरेशन में क्या देर लगती है! दवा खिलाने में क्या देर लगती है! इंजेक्शन तो एक मिनट में लगा देंगे। और क्या करेंगे? खान-पान का परहेज रखते हुए मरीज ठीक हो जाएगा। असली इलाज तो बेटे परहेज है। नहीं साहब !सुई है। सुई में कितनी ताकत है? सुई में तो बेटे जरा भी ताकत नहीं है, पर परहेज में बहुत है।

अच्छा अब आप क्या पढ़ा रहे है। अब बेटे हम परहेज पढ़ा रहे हैं और फिलॉसफी पढ़ा रहे है। और आगे क्या बताएँगे- मंत्र? मंत्र तो कभी भी बता देंगे। मंत्रों में क्या देर लगती है। यह तो सेकेंड का काम है। जब आप कहेंगे, चलते-फिरते तभी बता देंगे। अभी असली बात तो उसकी ‘फिलॉसफी’ सीखिए। बेटे, हम आपको वो अध्यात्म सिखाने के इच्छुक थे, जिसको अगर आप सीखना चाहें तो आपको एक और चीज मिल सकती है। इसको सीखने पर आपको एक और सिद्धि मिलेगी। वो सिद्धि बाहर की होगी। पहली सिद्धि भीतर से मिलेगी और उसका नाम हैं - संतोष। संतोष की वजह से आपका स्वास्थ्य, संतोष की वजह से आपकी खुशी, संतोष की वजह से आपकी जवानी, संतोष की वजह से आपकी दबी हुई अतींद्रिय क्षमताओं का विकास ये सब के सब भीतर से मिलेंगे।

और बाहर से-दुनिया से क्या मिलेगा? दुनिया से भी बेटे आपको एक चीज मिलेगी। दुनिया आपको कैसे देगी? दुनिया कभी आपने देखी है? मोटर साइकिलें जब भागती हैं, तो उसके पीछे-पीछे पत्ते भागते हैं। आपने देखे हैं कि नहीं देखे? पत्तों को कोई बुलाता है क्या? वे अंधाधुँध भागते हुए चल आते हैं। अरे बाबा! तुम कहाँ जा रहे हो? हम तो कहीं नहीं जा रहे, इस दौड़ती हुई मोटर के साथ जा रहे हैं। ये मोटर कौन है, तुम्हारी मौसी है या रिश्तेदार? कोई नहीं है। जब ये मोटर भागती है तो इसकी कशिश हमें खींचती है। रेत के कण, धूल, पत्ते इसके पीछे-पीछे भागते -फिरते रहते हैं। भीतर वाही कशिश और भीतर वाली मैग्नेट जब विकसित होती है तो दुनिया बेटे, आपको एक उपहार देती है और उस उपहार का नाम सम्मान है ‘सम्मान’। बाहर की सिद्धि को पाकर आप सम्मानित व इज्जतदार आदमी बन जाएँगे।

सम्मान बरसेगा

मित्रों! जो अध्यात्म मैं आपको सिखाने वाला हूँ, मालूम नहीं कि आप सीखेंगे कि नहीं और सफल होंगे कि नहीं, लेकिन यदि आपने सीख लिया तो एक चीज और आपको मिलेगी। दुनिया की दृष्टि से आपको सम्मान मिलेगा गुरुजी! वैसे तो सम्मान किसी को भी मिलता नहीं, हाँ चापलूसी जरूर मिलती है। हाँ बेटे, चापलूसी तो खरीदी भी जा सकती है। पैसे दीजिए, चापलूसी खरीद लीजिए। चापलूसी आप कहीं से भी खरीद लीजिए। भाँड़ों से, रंडियों से, चमचों से किसी से भी चापलूसी खरीद लीजिए और अपना फोटो छपवा लीजिए। लेकिन आप जो चाहते हैं, वह सम्मान नहीं है। वह तो चापलूसी है और जब आपकी खरीदने की ताकत कम हो जाएगी, तो ये नाराज हो जाएँगे। अभी रंडी आपको मदिरा पिलाती है, पान खिलाती है और कहती है कि आइए, आप बहुत दिन में आए, लेकिन जब आपके पैसे खत्म हो जाएँगे, ये लात मारेगी और कान उखाड़ देगी।

बेटे जिसे आप इज्जत कहते हैं, वह पैसे से नहीं खरीदी जा सकती है। मैं जिस सम्मान की बात कहता हूँ, वह वो चीज है जो उन लोगों पर बरसती है, जिन्हें हम अध्यात्मवादी कहते हैं। उनके ऊपर सम्मान बरसता है, श्रद्धा बरसती है और उससे जो फायदा होता है, उसे आप नहीं समझ सकते ।

मित्रों! श्रद्धा के साथ, सम्मान के साथ एक और चीज जुड़ी होती है और उसका नाम है-सहायता । श्रद्धा के साथ सहायता जुड़ी होती है। श्रद्धा आपके साथ में आएगी, अगर जन-समाज का सम्मान आपके प्रति होगा, तो आपके प्रति बेटे सहयोग आएगा। नानक के प्रति श्रद्धा थी, अतः लोगों का सहयोग आया। उनका स्वर्ण मंदिर बना हुआ है, जो इसका साक्षी है। बुद्ध के प्रति श्रद्धा पैदा हुई और उनके प्रति लोगों का सम्मान पैदा हुआ। अशोक ने तो कमाल ही कर दिया था। आम्रपाली से लेकर अंगुलिमाल तक कौन-कौन जाने कितने आदमियों का सहयोग इस कदर बरसता था कि मैं आपसे क्या कहूँ? जहाँ सम्मान होगा, वहाँ सहयोग अवश्य बरसेगा

- क्रमशः (समापन अगले अंक में )


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