नेत्र विज्ञान - क्या आप भी बार-बार पलकें झपकते हैं

May 2002

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यों तो पलकें आँखों की सुरक्षा के लिए होती है और सेकेंड के दसवें हिस्से से भी यह कम समय में झपकती रहती हैं। इतने पर भी यह नहीं कहा जा सकता कि यहाँ सब कुछ सहज-स्वाभाविक है। कई बार इनका गिरना-उठना असामान्य रूप से इतना तेज अथवा मंद हो जाता है कि उसमें किसी अस्वाभाविकता की स्पष्ट झलक मिलती है। यह वास्तव में व्यक्ति की उस मनोदशा की परिचायक होती है, जिससे वह उस समय गुजर रहा होता है। दूसरे शब्दों में यह सामने वाले की तात्कालिक मनः स्थिति को परखने का एक दर्पण है।

प्रायः हर एक की पलकें एक नियमित अंतराल से खुलती और बंद होती रहती हैं। यह एक नैसर्गिक क्रिया है। इसमें आँखों की सुरक्षा और सफाई ही प्रमुख होती है; किंतु अनेक बार जब व्यक्ति असाधारण अवस्था से गुजरता होता है, तो इससे उसकी पलकों की गति भी प्रभावित होती है और उसमें तेजी या सुस्ती आ सकती है। उदाहरण के लिए, जब व्यक्ति आवश्यकता से अधिक सावधान या सचेत होता है, तो उसकी पलकें कम झपकती है। रुचिकर विषय अथवा वस्तु को पढ़ते-देखते समय भी यह गति स्वाभाविक रूप से कम हो जाती है। ऐसे समय इसकी रफ्तार प्रति मिनट लगभग छह होती है; किंतु यदि विषय-वस्तु व्यक्ति की मनपसंद की न हो तो, तो यह क्रिया तीव्र हो सकती है। वार्त्तालाप कर रहे दो व्यक्तियों में से कौन कितना एक दूसरे की बातों में रस ले रहा है- यह उनके पलकों की गिरने-उठने की गति से जाना जा सकता है। जो ऊब या आलस्य महसूस कर रहा होगा, उसकी अत्यधिक गतिवान पलकें यह बता देंगी कि श्रोता को वक्ता एवं उसकी बातों में कोई रुचि न ही है।

इस संबंध में एक प्रयोग बर्लिन यूनिवर्सिटी के दो मनोवैज्ञानिकों ने किया। उन्होंने कतिपय लोगों को संगीत की कुछ उबाऊ धुनें सुनाई। आधे घंटे के इस प्रयोग के दौरान देखा गया कि सामान्य स्थिति में उनकी पलकें जितनी बार झपकती थीं, उसकी आवृत्ति इस बार धुन बदल दी गई। अबकी बार का संगीत सरस और सुरीला था, अतः इसका परिणाम पहले से विपरित प्राप्त हुआ। देखा गया कि इस मध्य श्रोताओं की पलकें असामान्य रूप से कम झपकीं। इस प्रयोग से यह सिद्ध हो गया कि रुचि-अरुचि, पसंद-नापसंद का कितना और कैसा प्रभाव हमारी पलकों पर पड़ता है। इस आधार पर सामने वाले का मनोभाव आसानी से जाना जा सकता है।

शोधों से यह भी ज्ञात हुआ कि कार्य के दौरान बरती गई एकाग्रता एवं तन्मयता का स्पष्ट आभास आँख के खुलने-बंद होने की गति से सरलतापूर्वक हो जाता है। उदाहरण के लिए ,चित्र बनाते समय चित्रकारों की पलकें अपेक्षाकृत कम उठती -गिरती है। यह उसके एकाग्रचित्त का द्योतक है। कवि जब अपनी कल्पना की दुनिया में खोता है, साहित्यकार अपने विचार-प्रवाह में बहता है, कर्मयोगी किसी काम में निष्ठापूर्वक निमग्न होता है, संगीतकार किसी नई धुन की रचना कर रहा होता है, तब भी उनकी पलकों के झपकने की गति कम होती है।

इसके विपरित मानसिक उलझन में पड़े तनावग्रस्त व्यक्ति की पलकें जल्दी-जल्दी उठती-गिरती है। यदि वह परेशान में हो, किंकर्त्तव्यविमूढ़ बना हुआ हो, असमंजस की दुविधाजनक स्थिति में हो तो भी आंखों के खुलने-बंद होने की रफ्तार तीव्र होती है। पलकों का गिरना-उठना यह भी दर्शाता है कि व्यक्ति में कितना आत्मविश्वास है। एक आत्मविश्वासी अपनी बात को प्रकट करते समय अपेक्षाकृत कम पलकें झपकता है, जबकि उस व्यक्ति की, जिसका कथन अनिश्चय युक्त हो अथवा जिसमें दृढ़ता का अभाव हो, उसकी आंखें जल्दी-जल्दी खुलती-बंद होती है। साक्षात्कार के समय इस बात को स्पष्ट रूप से देखा अथवा अनुभव किया जा सकता है। वैसे परीक्षार्थी जिनकी तैयारी अच्छी होती है अथवा आत्मविश्वास के धनी होते है, मौखिक परीक्षा के समय जवाब देते समय परीक्षक के आगे कम आंखें झपकाते हैं, जबकि जिनकी तैयारी ठीक नहीं होती, जिन्हें स्वयं या अपने ऊपर पर भरोसा नहीं क्रिया अधिक तीव्र होती देखी गई है।

पलकें झपकने की गति व्यक्तित्व के दबंगपन को भी अभिव्यक्त करती है। पाया गया है कि झेंपू या संकोची प्रकृति के लोगों में पलक झपकने की रफ्तार अधिक तेज होती है, वहीं दबंग व्यक्तित्व की यह सुनिश्चित पहचान है कि उसकी पलकें किसी भी व्यक्ति के समक्ष प्रति मिनट कम झपकती है। डरपोक स्वभाव वाले लोगों की भी यही निशानी है कि उनमें आँख मुलमुलाने की प्रवृत्ति अधिक तीव्र होती है। कुछ हद तक झूठ और सच की पहचान भी इससे की जा सकती है। झूठ बोलने और सचाई को छिपाने का प्रयास करने वालों में पलक-संचालन की क्रिया ज्यादा तीव्र होती है। दूसरी ओर सत्यवादियों, न्याय के पक्षधरों में इनकी गति मंद होती है। तो उनके पलकों की तीव्र गति उनकी पोल खोल देती है। ऐसा व्यक्ति फिर प्रामाणिक और संशय का भाजन बनना पड़ता हैं। उसके सत्य कथन को भी लोग गंभीरता से नहीं लेते और उस पर अविश्वास का आवरण चढ़ाकर देखते हैं।

सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में प्रशिक्षक और प्रशिक्षार्थी के बीच के संबंध एवं प्रशिक्षार्थी के विषय संबंधी पकड़ को भी उक्त क्रिया एक सीमा तक बोलती - बताती है अध्ययनों के दौरान यह स्पष्ट परिलक्षित हुआ है कि जिस शिक्षार्थी में विषय संबंधी गहराई एवं उसे पकड़ने का माद्दा कम होता है उनकी पलकें अधिक झपकती है। यह भी देखने में आया है कि जब दोनों के बीच खुलापन का अभाव होता है, तब भी विद्यार्थी की आंखें जल्दी-जल्दी खुलती-बंद होती है। इसके विपरीत जब शिक्षक और छात्र के बीच स्नेह-प्रेम का मधुर संबंध और खुलापन होता है, तो अध्ययन करने वाले छात्र की पलकें कम झपकती हैं।

इसके अतिरिक्त तनाव, दबाव और भय जैसी स्थिति में भी पलकों की गति बढ़ जाती है। एक प्रयोग के दौरान लिंवरपूल यूनिवर्सिटी में मनोवैज्ञानिकों ने बूढ़े और युवाओं के दो दल बनाये और उन्हें जाँचा ‘जाज’ नामक एक अमेरिकी फिल्म के कुछ दृश्य दिखलाए। उक्त फिल्म बहुत ही डरावनी थी। फिल्म देखते समय दोनों समूहों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया, तो पाया गया कि युवाओं में पलकों के गिरने-उठने की गति वृद्धों से अधिक तीव्र थी। स्पष्ट था, वे डरावने दृश्य के कारण ज्यादा तनावजन्य स्थिति से गुजर रहे थे जबकि वृद्धों की परिपक्व मनोभूमि उन्हें इस अप्रिय दशा से काफी हद तक बचा रही थी। यों पलक संचालन की गति उनमें भी असामान्य थी, पर युवा-समूह की तुलना में वह कम थी। इस प्रकार पलकों के गिरने-उठने की गति व्यक्ति के मनोबल को भी दर्शाती और सूचित करती है कि सामने वाला हीन मनोबल का व्यक्ति है या संपन्न मनोबल का।

उपर्युक्त मनोविज्ञान का ध्यान में रखकर ही भाषण का अभ्यास करने वालों को आरंभ में इसका अभ्यास निर्जन निकुंजों अथवा नदी-तटों के पत्थरों एवं पेड़-पौधों को सजीव श्रोता मानकर करने की सलाह दी जाती है। इस आरंभिक अभ्यास से जैसे-जैसे उनका मानस परिपक्व होने लगता है, वैसे-वैसे उनकी झिझक मिटती और पलक संचालन की गति घटती जाती है। फिर भी शुरू-शुरू में उन्हें व्याख्यान देते समय श्रोताओं से सीधे आँख मिलाने की मनाही की जाती है। कुछ इसी प्रकार का निर्देश टी.वी. के समाचार वाचकों को दिया जाता है और कहा जाता है कि समाचार पढ़ते समय किसी प्रकार की उच्चारण संबंधी कोई त्रुटि या सूचना संबंधी गलती हो जाए तो आत्मनियंत्रण न खोएँ, अपने को संयत एवं शांतचित्त बनाए रखकर सदा यह प्रदर्शित करने की कोशिश करें कि वह एकदम सामान्य स्थिति में हैं, अन्यथा अशुद्धि के समय पलकों की बढ़ी-चढ़ी रफ्तार उनकी त्रुटि को और उजागर कर सकती है।

स्मरण रखने और पलकें झपकाने के बीच भी सीधा संबंध देखा गया है। यदि किसी से किसी लंबे-चौड़े शब्द-शृंखला को स्मरण करने के बाद ही वह पलकें गिराए। शोध-अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि शब्द-शृंखला के बाद यदि और अक्षर करने के लिए कहा जाए, तो पलक झपकाने के बीच की अवधि और अधिक बढ़ जाती है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि पलकों का गिरना-उठना व्यक्तित्व की चुगली करता है। विशेषज्ञ लोग इस आधार पर सामने वाले के बारे में काफी कुछ पता लगा सकते हैं। इसलिए पलकें झपकाने में सावधानी बरती जाए। कहीं ऐसा न हो कि वह हमारी कमी और कमजोरी को दूसरों के आगे प्रकट कर दें।


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