परावाणी के निर्देश (Kavita)

May 2002

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तूफानी मौसम में जो तूफानी चाल दिखाएगा, युग उसके गुण गाएगा ।

धीरे चलने वाला तेज हवाओं में घिर जाता है, अलग-थलग जो रहता है वह पथ पर ही गिर जाता है। एक तरफ गहरी खाई है, उससे कदम बचाने हैं, और दूसरी ओर फिसलने हैं, भरपूर ढलानें है, सबके साथ संगठित होकर जो भी कदम बढ़ाएगा, युग उसके गुण गाएगा।

इस पीढ़ी को गीत सुनाओ मत केवल मादकता के, बहकाओ मत उसे दिखाकर सपने तुम भावुकता के, ऐसे गीत रचो जो जाग्रत् कर दें दसों दिशाओं को, झकझोरे युवकों के पूरे चिंतन और क्रियाओं को, जो प्रमाद को हटा, मनुज में नूतन प्राण जगाएगा, युग उसके गुण गाएगा।

कला न वह सच्ची होती जो दुर्भावना जगाती है, जो हिंसा-अत्याचारों के लिए हमें उकसाती है, कला तुम्हारी ऐसी हो जिससे पावनता झरती हो, हृदयों में जो सत्कर्मों के लिए प्रेरणा भरती हो, जो सद्भावों की सुहावनी शीतल धार बहाएगा, युग उसके गुण गाएगा ।

सावधान हो जाओ, मेरी कोटि-कोटि संतानों तुम, महाकाल का चक्र चल रहा है, उसको पहचानो तुम, उसकी प्रखर दृष्टि से कोई व्यक्ति नहीं छिप सकता है, कोई साथ चले न चले, पर कार्य न उसका रुकता है, जो उसका सहयोगी होगा, श्रेय वही तो पाएगा, युग उसके गुण गाएगा ।

ओ मेरे आत्मीय परिजनों! जिन्हें मनुजता प्यारी है, बलिदानों के लिए उन्हीं की यह दुनिया आभारी है, तुमने त्याग-तितिक्षा-तप का जो आदर्श दिखाया है, नई भोर का उसने ही नूतन इतिहास बनाया है, हर सहयोग तुम्हारा युग का शिलालेख बन जाएगा, युग उसके गुण गाएगा।

-शचींद्र भटनागर

*समाप्त*


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