स्वयं को महान् बनाने में (Kahani)

May 2002

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

राजा जनश्रुति को चिड़ियों की भाषा समझने की सामर्थ्य प्राप्त थी। हंसों की जोड़ी बात कर रही थी कि जनश्रुति से बड़े तो मुनि रैक्य हैं, जो सदा परमार्थ में लगे रहते हैं। गाड़ीवन रैक्य के बड़ा कष्ट हुआ! दूसरे दिन उन्होंने उस गाड़ीवन की खोज कराई और बहुत-सा धन, अश्व और आभूषण लेकर मुनि रैक्य के पास गए और बोले- “आपकी कीर्ति सुनकर यहाँ आए हैं, हमें ब्रह्म-विद्या का उपदेश दीजिए। “रैक्य मुनि ने उत्तर दिया- “राजन्! ब्रह्म-विद्या सीखनी हैं, तो अपना अंतरंग पवित्र बनाओ। अहंकार को मिटाकर, श्रद्धा-विश्वास तथा नम्रता को धारण कर ही तुम सच्चा आत्मज्ञान प्राप्त कर सकोगे। “ जनश्रुति को अपनी भूल ज्ञात हुई और वे सिद्धि-संपादन का अह त्यागकर अंदर से स्वयं को महान् बनाने में लग गए।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles