संसार परिवर्तनशील है (Kahani)

October 1998

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एक बाग में दो वृक्ष थे। एक बिलकुल सुख गया था, दूसरे में सुन्दर फूल लग रहे थे। सूखे वृक्ष में एक गिद्ध रहता था, हरे वृक्ष में कोयल निवास करती थी।

दोनों में प्रायः विवाद हो जाया करता था। गिद्ध कहता संसार मिथ्या है, कोयल कहती संसार सत्य है। बहस में कभी-कभी गरमागरमी भी हो जाती थी।

एक दिन एक तोता उधर आ निकला। उसने दोनों का झगड़ा सुना तो हँसकर बोला-भाइयों-बहिनों व्यर्थ झगड़ा न करो। न संसार सर्वथा सत्य है और न बिलकुल मिथ्या। संसार परिवर्तनशील है, इसलिए झगड़ने की अपेक्षा जो प्रगट है, उसे ही सुन्दर और सफल बनाना बुद्धिमानी है। परिवर्तनों के अनुरूप जो अपने जीवन को ढालते है, वही इस संसार के सही अर्थ को जानते है।


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