विवेकशील को ज्योतिष की क्या जरूरत

October 1998

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महाराजा वीरसेन धर्मभीरु होने के साथ ही अन्धविश्वासी भी थे। उन्होंने अपने दरबार में अनेक ज्योतिषी रखे थे। उनमें से एक प्रमुख ज्योतिषी भी थे, जिन्हें राजज्योतिषी की उपाधि प्राप्त थी।

राजा वीरसेन को उनकी विद्या पर पूरा भरोसा था। राजज्योतिषी जो काम कहते,महाराज वही करते। एक दिन वीरसेन का मन शिकार पर जाने का हुआ,लेकिन ज्योतिषी से पूछे बगैर तो उनका जाना असम्भव था। उन्होंने तुरन्त सेवक भेजकर ज्योतिषी महाराज को बुलवाया।

ज्योतिषी जी के आने पर राजा ने कहा-महाराज मेरी इच्छा शिकार खेलने की है। इस बारे में आपकी क्या सलाह है? ज्योतिषी जी देर तक अंगुलियों पर कुछ गिनते रहे, फिर बोले-महाराज-आप खुशी-खुशी शिकार पर जा सकते है। ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार आपको किसी तरह की परेशानी नहीं होगी।

ज्योतिषी की बात सुनकर राजा साथियों सहित अपने-अपने घोड़ों पर सवार होकर जंगल की ओर चल पड़े।

राज्य की सीमा पर स्थित जंगल में महाराज वीरसेन अपनी सेना के साथ पहुँच गए। वहाँ थोड़ी दूरी पर एक झोपड़ी भी थी। झोपड़ी के बाहर एक कुम्हार बैठा चाक पर बर्तन बना रहा था। राजा अपनी सेना के साथ कुम्हार की झोपड़ी के सामने पहुँच गया। प्रणाम करने के बाद राजा को बैठाने के लिए कुम्हार चारपाई ले आया। घड़े में साफ पानी भरकर उसने सबको पिलाया। सबको पानी पिलाने के बाद वह राजा के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और विनम्रता से पूछा-महाराज आपसे एक बात कहना चाहता हूँ।

कहो। राजा ने कहा।

आपको देखकर लगता है कि आप शिकार के लिए निकले है।

तुम सच कह रहे हो। मैं अपनी सेना के साथ शिकार पर निकला हूँ। महाराज। आप मेरा कहना माने तो यहाँ आगे मत जाइए। जाने पर आप मुश्किल में फँस सकते है।

राजा ने कहा, क्या पागलों जैसी बातें करता है। मुश्किल किस बात की होगी। हमारे राजज्योतिषी ने कहा है कि आप बिना किसी चिन्ता के शिकार पर जाइए। किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होगी और तुम कह रहे हो कि आगे जाने पर मैं मुश्किल में फँस जाऊँगा।

राजा की इस बात पर कुम्हार सहम गया। फिर भी वह डरते-डरते बोला-महाराज थोड़ी देर बाद बहुत तेज बरसात होने वाली है साथ ही तूफान भी बहुत तेज आएगा। इस स्थिति में इस घने जंगल में आप परेशान हो जाएँगे।

राजा क्रोधित हो उठा। गुस्से में बोला, तू मुझे सिखाने आया है। मेरे राजज्योतिषी ने जो कहा है। वह झूठ है। और तू अपढ़ कुम्हार जो कह रहा है वह सत्य है। जा तू अपना काम रहा है वह सत्य है। जा तू अपना काम कर, मैं शिकार पर जाऊँगा।

राजा की बात सुनकर कुम्हार निराश हो गया। राजा अपनी सेना के साथ जंगल की ओर शिकार के लिए चल पड़ा। बीच जंगल में पहुँचने पर काले-काले बादल आसमान में घिर आए। जंगल में अँधेरा छा गया। बहुत तेज हवा चलने लगी। आकाश में बिजली की चमक के साथ तेज बारिश शुरू हो गयी। अफरा-तफरी मच गई समूचे जंगल में। जानवरों की चीख-पुकार उस बियाबान जंगल में चारों तरफ से सुनायी पड़ने लगी। राजा अपनी सेना के साथ उस जंगल में फँस गया था। तेज हवा चलने से पेड़-पौधें टूटकर गिर रहे थे। सभी को डर लगने लगा। हर कोई सोच रहा था यदि कुम्हार का कहना मान लिया होता तो यह मुश्किल न आती।

तूफान शान्त हुआ, राजा निराश होकर सेना के साथ महल की ओर लौट पड़ा। राजा ने महल में पहुँचते ही राजज्योतिषी को बुलाया। राजज्योतिषी को राजा ने खूब खरी-खोटी सुनायी। इसी के साथ उसको नौकरी से निकाल दिया। उसके बाद राजा ने उस अनपढ़ कुम्हार को लाने के लिए सिपाही भेज दिया।

राजा ने कुम्हार का सम्मान करते हुए उसे राजज्योतिषी के आसन पर बैठने का आदेश दिया। गरीब अपढ़ कुम्हार अपना इस तरह सम्मान देखकर घबरा गया डरते हुए वह बोला महाराज मैं अपढ़ गरीब कुम्हार हूँ। मुझे ज्योतिषी के बारे में एक अक्षर भी नहीं मालूम। मैं भला आपको क्या सलाह दूँगा?

राजा बोला, अरे तुम्हें बहुत ज्ञान है। मैंने तुम्हारा कहना नहीं माना तभी तो जंगम में जाकर मुश्किल में फँस गया। यदि तुम्हारा कहना मान लिया होता तो मुझे जरा भी कष्ट नहीं होता। इसलिए तुम्हें आज से अपना राजज्योतिषी नियुक्त करता हूँ।

कुम्हार अब तक राजा की मनोवृत्ति से परिचय पा चुका था। उसने सोचते हुए कहा, लेकिन महाराज आँधी और तूफान की बात तो मैंने गधे से जानी थी। महाराज,जब बरसात, तूफान आते है तो मेरा गधा अपने दोनों कान खड़े कर देता है। गर्दन ऊपर की ओर उठाकर ढींचों-ढींचों की आवाज निकालता है। उस दिन भी उसने ऐसा ही किया था और मैंने आपको सूचना दे दी थी।

अब राजा वीरसेन के चमत्कृत होने की बारी थी। जबकि कुम्हार कहे जा रहा था, महाराज बेवकूफ समझा जाने वाला जानवर भी प्रकृति एवं परिस्थितियों के संकेतों को समझता है, जबकि हम इनसान होकर भी गूढ़ समस्याओं से जकड़े होने की वजह से इन्हें समरु नहीं पाते। विवेक मनुष्य की जीवन-ज्योति है। जो इसका इस्तेमाल करना जान सके। उसे किसी ज्योतिष की जरूरत नहीं। कुम्हार की इन बातों में महाराज वीरसेन को जीवन के प्रकाश अनुभव होने लगा था।


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