आत्मा की खोज (Kahani)

October 1998

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

नदी तट पर एक पण्डित जी रहते थे। एक दिन पण्डित जी को आत्मा के खोज की इच्छा हुई। धीरे धीरे ऐसा रंग चढ़ा कि वह दुनिया के कार्यों से विमुख होकर आत्मा की खोज में लग गये घर में कोई काम होता तो घर वालों को झिड़क देते। धीरे धीरे उन्हें अनुभव होने लगा कि उनका जीवन नरकमय होता जा रहा है एक दिन रात में पण्डित जी ध्यान में लीन थे कि उनकी आत्मा के अन्धकार में प्रकाश फैला और सुना पण्डित तुम गलत राह पर जा रहे हो जीवन कटुता से बढ़कर कोई बुराई नहीं है। आत्मा तो तुम्हारे अन्दर ही है उसे खोजने तुम बारह क्यों भटक रहे हो? जीवन में शांति सौम्यता और मधुर संबंध ही आत्मा के लक्षण है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles