अकारण शरीर को सताने का नाम तप नहीं हैं। सताना तो किसी का भी बुरा है। फिर शरीर को व्यथित और संतप्त करने से क्या हितसाधन हो सकता है? तपस्या वह है जिसमें सत्यमय जीवन निर्धारित करने के कारण सीमित उपार्जन से निर्वाह करने की स्थिति में मितव्ययिता अपनानी पड़ती है।
प्रलयंकारी तूफान की प्रचण्डता एवं सतयुगी उमगे