परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - 1971, विदाई की पूर्व वेला में गायत्री तपोभूमि, मथुरा में दिया गया प्रवचन

October 1998

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1971 के जून माह में विदाई की पूर्व वेला में गायत्री तपोभूमि, मथुरा में दिया गया प्रवचन

गायत्री मंत्र हमारे साथ साथ

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्!

देवियो! भाइयो!!

सुविधाओं से भरा जीवन कमजोर आदमी जीते रहते हैं। उन्हें समाज देश की चिन्ता नहीं होती है। मनुष्यों की अकल एवं विचार करने की दिशा ठीक की जा सकी तो कल्याण हो सकता है ऐसा हमने आपको बतलाया था। हमने आपसे कहा था। कि समाज की सेवा करने का लोकमंगल का कार्य करने का एक ही माध्यम है कि अध्यात्मवादी जीवन जिया जाय। आज चोरी अपराध को कैसे रोका जा सकता है? आज हर आदमी का ईमान खराब हो गया हैं। हर आदमी के पीछे अगर एक एक सिपाही भी लगा दिया जाए तो भी उसे रोका नहीं जा सकता है। वास्तव में कानून बनाकर तथा पुलिस की संख्या बढ़ाकर अपराध को क्या घटाया जा सकता है? मित्रों यह कदापि कम नहीं किया जा सकता है चाहे हम कितनी भी पुलिस या मिलिटरी लगा लें वकील पुलिस वाले बढ़ते चले जाएँगे तथा अपराधों की संख्या भी निरन्तर बढ़ती चली जाएगी।

मित्रों इसमें जब भी बदलाव आयेगा चाहे वह एक हजार वर्ष के बाद ही आये वह तभी सम्भव होगा जब मनुष्यों को बतलाया जाएगा कि अपने कर्मों के अनुसार ही मनुष्य को फल मिलता है। सर्वव्यापी एक भगवान है जो हर मनुष्य के कर्मों को देखता है तथा न्याय करता है यह अध्यात्म था जो हमने आपको इस शिविर में बतलाया था कि व्यक्तिनिर्माण के साथ समाज का भी निर्माण करना चाहिये तथा उसके विकास के लिये भी प्रयास करना चाहिये तभी मनुष्य के जीवन में सुख शान्ति आ सकती है। अध्यात्म का नाम चमत्कार नहीं है। चमत्कार तो बाजीगरी है। चालाकी है। इस खेल तमाशे का नाम अध्यात्म नहीं है। छोटे बच्चों को बहकाने का नाम अध्यात्म नहीं है। आप चमत्कार के बारे में सोचना बंद कर दीजिये तथा सही रूप से अध्यात्म को समझने प्रयास कीजिये। अध्यात्म का मतलब है हमारी गुण कर्म स्वभाव में बदलाव ऐसा अगर आप कर सकते है तो अपने आप चमत्कारी व्यक्ति बन सकते है। हम तो यहाँ तक कह सकते है कि आप पूजा−पाठ बन्द कर दीजिये परन्तु अपने व्यक्तित्व का परिष्कार कर लीजिए। आप देखेंगे कि जिस चमत्कार के पीछे आप भाग रहे है। वह आपके पीछे आता हुआ दिखायी पड़ेगा।

मित्रो गाँधी जी ने नित्य आधा घण्टा पूजा जप किया था परन्तु वे जीवन में चमत्कार दिखलाते चले गये। उनके आशीर्वाद से लोग बादशाहों के बादशाह बन गये। हमारे आशीर्वाद से भी वैसा ही हुआ है। गाँधीजी के आशीर्वाद से दो दो कौड़ी के लोग नेता बन गये। पं. जवाहर लाल और सरदार पटेल धन्य बन गये। गाँधी जी ने अंग्रेजों से कहा कि "क्विट इण्डिया"। वे अपना बिस्तर लेकर चले गये। उनकी बंदूक रखी रह गयी। गाँधी जी कौन थे? आधा घण्टा भजन पूजन करने वाले व्यक्ति। उन्हें समाधि आती थी? ध्यान प्राणायाम भी नहीं किया उन्होंने। एक भी चक्र बेधन नहीं किया था न ही अपनी कुण्डलिनी जगायी थी परन्तु उनके जीवन में चमत्कार होते चले गये थे। यह था उनके जीवन में व्यक्तित्व का परिष्कार जो उन्होंने किया था। अपने गुण कर्म स्वभाव के परिष्कार और आधा घण्टे नित्य के भजन से वे मालामाल हो गये। इस पूरे शिविर में हमने विभिन्न माध्यमों से आपको यह बतलाने का प्रयासों किया कि अध्यात्म क्या है तथा उसको आपके अन्दर उतारने का प्रयास किया। काश! आप अगर सही अध्यात्म को समझकर अध्यात्मवादी हो जाये तो मजा आ जाएगा।

मित्रो अगला समय बहुत शानदार आने वाला है दुनिया में से अनीति मिटने जा रही है कुरीतियाँ मिटने जा रही है डिप्लोमेटिक मेण्टेलिटी मिटने जा रही है। आप विश्वास करें या न करें परन्तु हमें अपनी आँखों से दिखायी पड़ रहा है कि एक नयी हवा आ रही है। नयी दुनिया बनती आ रही है। नये विश्व का निर्माण होने जा रहा है। उस नये युग में आध्यात्मिकता की नयी परिभाषा होगी तथा पुरानी परिभाषा मिट जाएगी। यह संतोषी माता की हवा उड़ती जा रही है तथा पता नहीं कहाँ जा रही हैं। मित्रों अब वह संतोषी माता आ रही है जिसमें मनुष्य को संतोष करना सिखाया जाएगा। भौतिक चीजों में जिसको संतोष आ जाय तो मजा आ जाएगा। ऐसा व्यक्ति अपनी प्रतिभा और धन को लोकमंगल में खर्च कर देगा तथा अध्यात्मवादी बन जाएगा। छाया की तरह से सुख उस अध्यात्मवादी के पीछे भागते फिरेंगे। वह अपने लिये नहीं खर्च करेगा। ऐसे ही व्यक्ति का जीवन धन्य होता चला जाता है उसकी प्रगति होती चली जाती है।

अध्यात्मवादी भीख माँगने वालों का नाम नहीं है। वह देने वालों का नाम है वह भगवान का अनुग्रह व एहसान माँगने वाला व्यक्ति नहीं है बल्कि परमात्मा उसके पीछे पीछे चलने लगता है तथा उसका जीवन धन्य कर देता है। परमात्मा उनकी सहायता करता है जो अपनी सहायता आप करने को तैयार है। अपने अन्दर महत्वपूर्ण तथ्य जो छिपे पड़े है उन्हें जाग्रत करने का नाम अध्यात्म है। अध्यात्म आत्मशक्ति विकसित करने का नाम है। इनको मैं आपको इस शिविर में बतलाता रहा हूँ। आप से निवेदन करता रहा हूँ कि आप हमारी बातों को इस कान से सुनकर उस कान से मत निकाल दीजिये। हम वैखरी वाणी का भी उपयोग करते रहे हैं। भगवान यानि कि ब्रह्माजी भी चार मुख से बोलते रहे है। इंसान भी चार मुख से बोलते है। ये है वैखरी वाणी जिसे मैं एक घण्टे से बोल रहा हूँ। यह मनुष्यों के कानों में जाती है तथा मस्तिष्क से टकराती है। इस वाणी से हमने आपको अध्यात्म के सिद्धान्त को बतलाया तथा समझाया।

दूसरी मध्यमा वाणी है। यह भाव को उभारने का कम करती है। यह अन्तः करण को प्रभावित करती है। इसके प्रभाव से शेर एवं गाय एक घाट पर पानी पीते ही तीसरे है परावाणी। विचारों की वाणी को परावाणी कहते है चौथी है पश्यंति वाणी। पश्यंति वाणी आत्मा की वाणी होती है। यह आत्मा में घुस जाती है। नारद ने बाल्मिकी के हृदय में एक बात कहीं थी और वह प्रभावित हो गये। बुद्ध ने अपने हजारों शिष्यों को इसी प्रकार प्रभावित किया था। आप भी जब सोते रहते है तो हम आपके पास जाते है किसी के पैर के पास बैठ जाता हूँ तो किसी के सिर के पास बैठ जाता हूँ तो किसी के सिर के पास बैठकर उसका सिर सहलाता रहता हूँ। आपको पता चलता है कि नहीं यह मैं नहीं पूछ सकता हैं। आपको श्रद्धा जैसे जैसे बढ़ती जाएगी। आप अनुभव करते चले जाएँगे। हमारे गुरुदेव जब हमारे कमरे में आए और पश्यंति वाणी से क्या कहा यह तो हमें पता नहीं परन्तु वे हमें धन्य कर गये। अनुदान क्या क्या दिये यह तो मैं नहीं कह सकता परन्तु इस दुनिया से जाने के बाद जब हमारे जीवन का लिफाफा जो बन्द है वह जब खोला जाएगा। तो पता चलेगा कि हम कौन थे। तथा हमने इस दुनिया के लिये संस्कृति के लिये क्या क्या किया? हमें विश्वास है कि आप यहाँ से जाएँगे तथा हमारा प्रसाद लेकर जाएँगे तो वह आपके अपने जीवन में काम आएगा तथा आप धन्य होते हुये चले जाएँगे।

आप अध्यात्म के सिद्धान्त को अपनाए या न अपनाए परन्तु इस दुनिया में जो लोग रहते है उनके साथ मीठा व्यवहार करना उनके साथ प्रेम का व्यवहार करना। जिनको अपना दुश्मन बना लिया है उनको भी मित्र दोस्त बना लेना। इमर्सन कहते रहते थे कि हमें नरक में भेज दो हम वहाँ भी स्वर्ग बना लेंगे। व्यक्ति दुश्मन हमारे व्यवहार के कारण बन जाता है। आप अपने व्यवहार को ठीक करने का प्रयास करना तो धरती को स्वर्ग बनाया जा सकता है। अगर आपने अपनी भावना को परिष्कृत कर लिया तो मजा आ जायेगा। अगर आपकी वाणी में मिठास आ जाती है तो आपके लिये हर आदमी मित्र बन जाएगा।

एक बात हमने आपको ओर कही है कि आपको मेहनत करनी है। मशक्कत करनी है। धरती में जिस तरह लोहा ताँबा सोना भरा पड़ा है ऐसे ही हमारे भीतर भी बहुत-सी चीजें भरी पड़ी है। जमीन में हल जोते बिना बीज बोये बिना फसल कैसे प्राप्त हो सकती है? मेहनत मशक्कत करने के बाद ही सारी चीजों को प्राप्त किया जा सकता है। आपका अपने प्रति कठोर तथा दूसरों के लिये मुलायम बनना होगा। यह सिद्धान्त संयम का सिद्धान्त है।

चौथी बात हमने आपसे कहीं थी कि यह जलता हुआ जमाना हैं हर व्यक्ति जल रहा है। आपको इस जलते हुये समाज के ऊपर पानी डालने की आवश्यकता है यह है ऊँचे विचार की आवश्यकता। मित्रों हम यह पूछते कि बकरा खाने के बाद कोई बकरे की औलाद कहलायेगा या नहीं यह तो हमें बतलाना। हम पूछते है कि उसमें जो अवगुण है वह खाने वाले में आएँगे कि नहीं? आज सामाजिक मान्यता के बारे में खान पान के बारे में पड़ोसी के बारे में हर व्यक्ति की उलटी अकल हो गयी है। इससे आपका क्या बनने वाला है आपको यह ठीक करना होगा। समाज के लोगों के विचारों को ठीक करना होगा, उनकी भावनाओं में परिवर्तन लाना होगा।

मित्रो इतना ही नहीं पैसा खर्च करने में जीवन को महान बनाने के बारे में भी लोगों की उलटी अकल है। यदि सारे के सारे लोग इस तरह के होंगे, तो काम कैसे चलेगा? इन उलटी अकल वाले लोगों का नवनिर्माण करना होगा। उन्हें दिशा देनी होगी। उनके विचार ठीक करने होंगे। इस उलटे जमाने को सीधा करने के लिये आपको जो हमारा अनुदान मिल रहा है इस कार्य हेतु आप हमें सहयोग करिये। हमारे कंधे से कंधा मिलाकर चलने का प्रयास करेंगे, तो हमारा यह शिविर धन्य हो जाएगा। हम धन्य हो जाएँगे और आपका जीवन धन्य हो जाएगा। आने वाली पीढ़ियाँ आपको सदा याद रखेंगी।

मित्रों! हम लम्बे कदम बढ़ाते हुए लम्बी मंजिल की ओर बढ़ते जा रहे है। आप भी अपना कदम उस ओर अवश्य बढ़ाना तथा हमारा सहयोग करना। गाँव में यह नियम होता है कि जब कोई मर जाता है या कोई भी काम होता है तो जो व्यक्ति वहाँ चलता है तथा पाँच कदम के बाद ही वह वापस होता है मित्रो कम से कम लोग भी हमारे साथ पाँच कदम तो चलने का प्रयास करना। जमाना बदल रहा है हमारे साथ जमाना उठ रहा है हमारे साथ। इसी तरह आप भी हमारे साथ। इसी तरह आप भी हमारे साथ चलना। कहीं ऐसा न हो कि आप चल तो रहे है इधर पर देख रहे है उधर! ऐसा कभी मत करना। हमारे कदम से कदम मिलाकर चलना, चाहे पाँच ही कदम क्यों न चलना, भले ही एक घण्टा हमारे साथ चलना।

हमने एक बात और कही थी आपसे कि आप अपनी कमाई का दस पैसा ही खर्च करना एक नये समाज के

नवनिर्माण के लिये परन्तु उसमें सक्रियता लाना तथा उसे निभाना। आज पच्चीस पैसे की चाय आती है। हमने समाज संस्कृति और देश के लिये आपसे केवल आधा प्याला चाय की माँग की है। वह तो आप अवश्य देना अगर समाज के लिये इतना कर सके तो हम समझेंगे कि आपने हमारे साथ एक कदम चलने का साहस किया, प्रयास किया।

मित्रो! जब आप सोये रहते है तो हम आपके पास बैठकर आपके कानों में चार बातें कहते हैं उसका शिक्षण दिया करते है ताकि आप आध्यात्मिकता के रास्ते पर आगे बढ़ सकें। आज आपको घर के लिये विदा कर रहे है आप अपने घर चले जाएँगे तथा हम भी यहाँ घर में बैठे रहेंगे। हमें और आपको एक दूसरे की याद अपने अपने घरों में आती रहेगी। दो बैलों की जोड़ी होती है, अगर एक बैर बीमार हो जाता है या कहीं चला जाता है तो दूसरा बैल काम नहीं करता है। वहां सारा दिन कोहराम मचाता रहता है न चारा खाता है न पानी पीता है उसकी आँखों में विछोह के आँसू होते है मित्रो हम बैलों से ज्यादा है कम नहीं यह ध्यान रखना। मित्रो हम आपके सगे सम्बन्धी है सगे सम्बन्धी वे नहीं है जो एक खून से पैदा होते है वरन् वे होते है जो एक रास्ते पर चलते है जिनके विचार एक होते है जिनके गुण वाले लोग है एक भावना वाले लोग है एक दिशा वाले लोग है मोहब्बत वाले लोग है। हमारे आपके बीच एक ऐसा प्यार ऐसी मोहब्बत है जो कभी भी खत्म होने वाली नहीं है। आप जब जा रहे है तो हमारा दिल टूट रहा है। हम आपके जन्मदाता माता पिता से भी ज्यादा मोहब्बत करते है ऐसा तो हम दावा नहीं कर सकते परन्तु आपके किसी भी मित्र से कम मोहब्बत नहीं करते दोस्त के पास

दोस्त आता है तो उसको खुशी होती है परन्तु जब विदा होता है तो उसकी आँखों में आँसू आ जाते है। यह हमारी एवं आपकी कमजोरी है। आप जब विदा होते है तो मेरा भी दिल दुखी हो जाता है। विदाई के क्षणों में बड़े बड़े संतों की भी यही हालत हो जाती हैं कबीरदास जब मरने लगे तो उन्होंने एक मर्म भरी बात कही थी- राम बुलावा भेजिया दिया कबीरा रोय।

जो सुख -प्रेमी संग में सो बैकुण्ठ न होय।

वास्तव में प्रेम ही इस संसार की सर्वोपरि उपलब्धि है।

मित्रो! जो व्यक्ति अपना होता है या जिसे जो अपना मानता है उसकी विदाई बहुत ही कष्टकारक होती है। इसे मनुष्य की कमजोरी कहें या प्रकृति का विधान कहें। इसमें आप भी है तथा हम भी है। हमारा दिल टूट रहा है और आपका दिल भी टूट रहा है- ऐसा हम महसूस कर रहे है। परन्तु क्या हम आपको छोड़ देंगे? यह कभी नहीं हो सकता। भूत जो होता है वह जैसे चाहता है उसके पीछे लगा रहता है हम भी आपके पीछे पीछे लगे रहेंगे। आपको छोड़ नहीं सकते। आप भी अनुभव करते रहेंगे कि आचार्य जी के भाषण बन्द हो गये, परन्तु प्रतिध्वनि आपके कानों में हमेशा गूँजती रहेगी। हम नारियल की तरह ऊपर से कठोर है परन्तु भीतर से मुलायम है जिसमें दूध भरा हुआ है। भगवान ने न जाने क्यों हमें मनुष्य बना दिया और हमारे मूँछ लगा दी अगर मूँछें निकाल दी जाये तो हमारा हृदय माता की तरह है माता का हृदय कितना कोमल होता है यह आप सभी जानते है। हमारा हृदय भी कोमल हैं। आप चले जाएँगे, परन्तु हम आपको बिछुड़ने नहीं देंगे। हम आपको छोड़ नहीं सकते। हम आपको सुखी सम्पन्न बनाना चाहते है महान बनाना चाहते है महान बनाते बनाते वहाँ तक पहुँचाना चाहते है जहाँ हमारे गुरु ने हमें पहुँचाया है।

मथुरा के विदाई समारोह के साथ ही हमारे प्रेम की प्रौढ़ता का शुभारम्भ हो रहा है। आप से हमारी मित्रता की शुरुआत है। यह जिन्दगी भर इसी प्रकार बनी रहेगी। हमारे ऊपर आप जैसे हजारों लोगों का स्नेह है। आपका प्यार जो हमें मिलता है उसी में हम डूबे रहते है। हम चाहते है कि इस स्नेह के आदान प्रदान का यह क्रम हमेशा बना रहे। हम बहुत सुखी है-आप लोगों का स्नेह पाकर -कभी कभी हम यह सोचते है कि आप के इस प्रेम का हम किस तरह से बदला चुकायेंगे। आप अपने घर से आये थे चिलचिलाती धूप में ठहरने की अच्छी व्यवस्था यहाँ कहाँ थी? पानी की व्यवस्था यहाँ कहाँ थी? भोजन की व्यवस्था भी ढंग से नहीं कर सके परन्तु एक चीज हमारे पास है और वही हमने आपको देने का प्रयास किया है। वह चीज है निस्वार्थ प्रेम यही निधि हमारे पास है जो हम आपको देते रहे है और हमेशा देते रहेंगे। हमारे प्रेम में आप यह कभी भी नहीं पाएँगे कि यह व्यक्ति किसी स्वार्थ के लिये आपसे प्रेम करता है। यह आदमी पैसा लेना चाहता है या और न जाने क्या चाहता है? मित्रो! हमें अपने प्यार पर विश्वास है, यही नहीं हम एवं आप न जाने कितने जन्मों से साथ साथ चलते आ रहे है। हम और आप जब तक नये जमाने को नहीं ला देते तब तक बिछुड़ने वाले नहीं है। अभी हमें सीता रूपी भारतीय संस्कृति को वापस लाना है, रावण को समाप्त करना है, समुद्र में पुल बाँधना है। आप लोग उस समय तक हमारे साथ रहेंगे। अभी आपको हम नहीं छोड़ेंगे तथा आप भी हमें नहीं छोड़ सकेंगे। आप जायें सुखी रहे समुन्नत बनें तथा आप भी हमें नहीं छोड़ सकेंगे। आप जाएँ सुखी रहें समुन्नत बनें तथा प्रगति करें।

सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कष्चित दुख माप्नुयात।


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