कहीं हमारा चिन्तन बौनेपन का शिकार तो नहीं

March 1998

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काया प्रकृति की देन है। वह लम्बी नाटी, कानी- कुबड़ी, लूली-लंगड़ी जैसी भी हो, भगवान का उपहार मानकर उस पर संतोष करना पड़ता है। बौनेपन को ही लें। यह शरीर का सामान्य स्वभाव नहीं है, इसलिये छोटे कद के कारण अक्सर लोग परेशान हो उठते हैं। इतने पर भी यह सत्य है कि दुनिया में कितने ही बौने उसे सहज रूप में लेकर हंसी-खुशी की जिन्दगी जीते है।

जनरल टॉमथंब की गिनती इतिहासप्रसिद्ध बौनों में होती है। उसका वास्तविक नाम चार्ल्सशेयरवुड स्ट्रेटॉन था। वह न्यूयार्क, अमेरिका का रहने वाला था। 5 महीने की उम्र में उसका वजन 4.86 कि.ग्रा. तथा कद 1 फुट 3 इंच था। इसके बाद उसमें 2 फुट 1 इंच की और बढ़ोत्तरी हुई, तत्पश्चात् वृद्धि रुक गई। इस प्रकार आजीवन वह 3 फुट 4 इंच का बना रहा।

न्यूयार्क में ‘बर्नम म्यूजियम’ नामक एक सर्कस कम्पनी थी। इसका मालिक पी.टी. बर्नम था। उसने जब टाँमथम्ब को देखा, तो उसे अपनी कम्पनी में 3 डॉलर प्रति सप्ताह के वेतन पर भर्ती कर लिया। इसके उपरान्त उसे स्टेज कार्यक्रम के लिए प्रशिक्षित किया जाने लगा। कुछ ही दिनों में वह इस कला में निपुण हो गया और तरह-तरह के कार्यक्रम देकर लोगों का मनोरंजन करने लगा। बाद में उसके आयोजन न्यूयार्क से बाहर अन्य शहरों में भी होने लगे। उसके करतबों की चर्चा जंगल की आग की तरह समस्त अमेरिका में फैल गयी और बड़ी संख्या में लोग उसके अभिनय देखने आने लगे। इससे पी.टी. बर्नम की आय कई गुनी बढ़ गयी। टाँम थम्ब उसके लिये सोने के अण्डे देने वाली थम्ब उसके लिये सोने के अण्डे देने वाली मुर्गी साबित हुआ। इससे खुश होकर बर्नम ने उसका वेतन 3 डॉलर से बढ़ाकर 25 डॉलर प्रति सप्ताह कर दिया।

टॉमथम्ब ने एशिया एवं यूरोप के कई देशों की यात्राएं कीं और नाम कमाया। इनमें भारत, जापान, आस्ट्रेलिया, मिश्र, इटली, फ्राँस, ब्रिटेन, बेल्जियम तथा स्पेन प्रमुख हैं। इन देशों में जाकर उसने अनेक कार्यक्रम किये और प्रचुर धन कमाया। वह वहाँ के प्रसिद्ध राजनीतिज्ञों, धनपतियों एवं शाही परिवार का अतिथि बना और ढेर सारे उपहार प्राप्त किये।

सन् 1869 में उसने भारत सहित अन्य एशियाई देशों का भ्रमण किया। भारत में दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता जैसे शहरों में उसके प्रोग्राम हुये। वह बनारस भी गया और वहाँ काशी नरेश का मेहमान बना। राजा ने टाँम थम्ब को उपहारस्वरूप एक शिकारी हाथी प्रदान किया। मिश्र के शासक ने उसे अपनी निजी ट्रेन दी। इसके अतिरिक्त आस्ट्रेलिया के शासक फ्राज जोजफ, इटली के बादशाह विक्टर इमेनुअल और वहाँ के पोप भी टाँम थम्ब के आतिथेय बने, सबने महंगी भेंटें दीं।

इससे पूर्व उसने अन्य अनेक यूरोपीय देशों की यात्रायें कीं। बर्नम के साथ वह इंग्लैण्ड गया। वहाँ अपने कारनामों से धूम मचा दी। इसके पश्चात् वहाँ के अनेक प्रतिष्ठित लोगों ने उसे दावत पर आमंत्रित किया। वह महारानी विक्टोरिया का भी मेहमान बना एवं बहुमूल्य उपहार प्राप्त किये। इंग्लैण्ड से वह फ्राँस गया। वहाँ सम्राट लुई फिलिप का विशिष्ट आतिथ्य ग्रहण किया। कीमती सामान मिले। अन्त में स्पेन पहुँचा। वहाँ महारानी ईसाबेला ने थम्ब और बर्नम का बड़े उत्साह के साथ स्वागत किया।

तदुपरान्त दोनों स्वदेश लौट आये। सन् 1847 में टॉमथम्ब ने तत्कालीन राष्ट्रपति पोल्क से ह्वाइट हाउस में भेंट की। सन् 1863 में उसकी शादी लैविनिया नामक एक वामन लड़की से हो गई। लैविनिया का मद 81.28 से.मी. (2 फुट 8 इंच) और वजन 13.15 कि.ग्रा. था। उक्त विवाह में करोड़पति व्यक्ति से लेकर प्रशासनिक अधिकारी तक सम्मिलित हुए थे। तत्कालीन राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने भी उस वामन दम्पत्ति को अनेक उपहार भिजवाये थे।

अन्ततः सन् 1883 में थम्ब की मृत्यु एक दुर्घटना में हो गयी। तब उसकी उम्र 45 वर्ष थी और वजन 32 कि.ग्रा.। इसके बहुत समय बाद तक लैविनिया जीवित रही। सन् 1919 में जब वह मरी, तब उसकी आयु 78 वर्ष की थी।

बौनों के इतिहास में इंग्लैण्ड के जेफरी हडसन का स्थान अत्यन्त उल्लेखनीय है। उसका जन्म सन् 1619 में इंग्लैण्ड के एक कस्बे में हुआ था। हडसन के माता-पिता औसतन ऊंचाई के थे, किन्तु हडसन का कद 16 वर्ष की वय में भी मात्र 8 इंच था। वह एक सिपाही और जासूस था।

अपने ठिगनेपन के कारण वह कोई भारी-भरकम कार्य कर पाने में असमर्थ था। इसे देखते हुए उसके पिता ने उसको बर्किंघम के ड्यूक की पत्नी की सेवा में प्रस्तुत किया। काफी समय तक वह वहाँ बना रहा।

एक बार इंग्लैण्ड के सम्राट-चार्ल्स प्रथम और महारानी मारियाड्यूक के यहाँ भोज पर बुलाये गये। खाने के दौरान एक बड़ी मर्तबान पेश की गई। जब उसका ढक्कन उठाया गया, तो उसमें से हडसन बाहर निकला। उसके आकार -प्रकार और व्यवहार से महारानी बहुत प्रभावित हुईं और उसको अपने साथ राजमहल ले गईं। इसके बाद वह स्थायी रूप से वहीं रहने लगा।

इंग्लैण्ड में जब गृहयुद्ध छिडा़, तो कहते हैं कि राजकीय घुड़सवार दस्ते में वह भी सम्मिलित था। महारानी मारिया को सन् 1644 में फ्राँस भागना पड़ा, तब उनके साथ हडसन भी था। एक बार वह समुद्री जहाज में सवार होकर कहीं जा रहा था कि तुर्की के समुद्री डाकुओं ने उस जहाज को लूट लिया। सम्पत्ति के रूप में उन्हें हडसन भी हाथ लगा। डाकुओं ने भारी कीमत में उसे बेच दिया। स्वतंत्र होने पर वह फिर इंग्लैण्ड जा पहुँचा। वहाँ उसे ड्यूक ऑफ बर्किंघम की ओर से अच्छी धनराशि वजीफे के रूप में मिलने लगी।

हडसन रोमन कैथोलिक सम्प्रदाय से संबद्ध था, अस्तु उसे सन् 1679 में ‘पोप षड्यन्त्र’ में सम्मिलित होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया, किन्तु शीघ्र ही छोड़ दिया गया। शाही रिकार्डों से ज्ञात होता है कि जेफरी हडसन को कैप्टन की हैसियत से सम्राट की खुफिया सेवा की ओर से भारी वेतन मिलता था। उसके अनेक वस्त्र इंग्लैण्ड के ऐश मोलीन संग्रहालय में अब भी सुरक्षित हैं।

रिचर्डगिब्सन इंग्लैण्ड के शाही परिवार का बौना चित्रकार था। उसका जन्म सन् 1675 में कोम्बरलैण्ड में हुआ था। जब उसकी आयु 30 वर्ष थी, तब उसका कद 3 फुट 10 इंच और वजन 25 कि.ग्रा. था। आरम्भ में वह मोर्टलेक की एक धनवान महिला के यहाँ नौकर नियुक्त हुआ। चित्रकला के प्रति उसकी गहरी रुचि थी। इस बात का पता जब उसकी स्वामिनी को लगा, तो उसने उसके लिये एक शिक्षक की व्यवस्था कर दी, जो उसे नियमित रूप से इसका प्रशिक्षण देता था। बाद में हडसन की तरह गिब्सन भी चार्ल्स प्रथम के दरबार में पहुँच गया। जहाँ उसे सर पीटरलिली जैसे प्रसिद्ध चित्रकार से पुनः प्रशिक्षण प्राप्त हुआ।

शाही महल में नैन्सी नामक एक ठिगनी लड़की भी थी। वह महारानी की विशिष्ट परिचारिका थी। गिब्सन और नैन्सी ने आपस में विवाह कर लिया। विवाह की सारी व्यवस्था शाही दरबार की ओर से हुई। इस बौने जोड़े ने हंसी-खुशी का जीवन जीते हुए कई शासकों का शासनकाल देखा।

दोनों ने सामान्य व्यक्ति की तरह लम्बी जिन्दगी जी। सन् 1690 में जब गिब्सन की मौत हुई, तब वह 74 वर्ष का था। नैन्सी उसके बाद अनेक वर्षों तक जीवित रही। सन् 1709 में अन्ततः 89 वर्ष की उम्र में उसका देहान्त हुआ। उनके 9 संतानें थीं। सभी औसतन कद की थीं। कोई भी माता पिता पर नहीं गयीं।

रिशबोर्ज फ्राँस का नन्हा जासूस था। उसकी लम्बाई मात्र 1 फुट 5 इंच थी। आरम्भ में वह फ्राँस के एक ड्येक की पत्नी की सेवा में नियुक्त था। बाद में वह फ्राँसीसी सम्राट के लिये कार्य करने लगा। फ्राँसीसी क्रान्ति के दौरान उसने राजा के लिये महत्वपूर्ण कार्य किये। इनमें सबसे प्रमुख उसके द्वारा की गई जासूसी थी। जब वह जासूसी करता तो, अबोध बच्चे की तरह एक महिला की गोद का सहारा लेता। महिला उसे गोद में उठाये पेरिस आती-जाती। उसके वस्त्रों में गुप्त संदेश होते। इन संदेशों को वह वाँछित व्यक्ति तक पहुँचाता और उससे उसके संदेश एवं अन्य प्रकार के महत्वपूर्ण सूत्र प्राप्त करता। जब वह सेवामुक्त हुआ, तो उसके उल्लेखनीय कार्यों के लिये पेंशन दी जा रही। रिशबोर्ज की मृत्यु सन् 1858 में 90 वर्ष की वय में हुई।

सन् 1933 के आरंभिक दिनों में जर्मनी के रिंगलिंग ब्रदर्स के सर्कस में एक अत्यन्त बौनी महिला ने अपने अजीबोगरीब कारनामों से धूम मचा रखी थी। उसकी सम्पूर्ण लम्बाई 21 इंच और उसका नाम लियाग्राफ था। बाद में जब जर्मनी में हिटलर के नेतृत्व में नाजी सरकार सत्ता में आई, तो वहाँ के जासूसी संगठन ‘गेस्टापो’ ने उसे बन्दी बना लिया। आरोप यह था कि वह एक आवारा महिला है, जबकि उसका वास्तविक अपराध उसका यहूदी होना था।

संसार की सर्वाधिक ठिगनी महिला लूसिया जारैट थी। सानकार्लोस, मैक्सिको में जब वह पैदा हुई, तब उसका वजन मात्र 226.8 ग्राम था और कद केवल 7 इंच। वयस्क होने पर उसकी लम्बाई में सिर्फ 12 इंच की और वृद्धि हो सकी। उसकी भुजाओं की लम्बाई 8 इंच और कमर मात्र 4 इंच थी। वजन लगभग 2.28 कि.ग्रा. था। अत्यंत मिनी शरीर प्राप्त करने के बावजूद वह शरीर से बिलकुल स्वस्थ थी। वह एक सर्कस की कलाकार थी। जब वह 26 वर्ष की थी, तो एक ट्रेन दुर्घटना में मारी गयी।

बौनों में जाँनी रोवेन्टाइन की आवाज सबसे आकर्षक और मधुर थी। वह न्यूयार्क का रहने वाला था। जब 20 वर्ष का था, तो एक विज्ञापन कम्पनी की मालिक मिल्टन ब्यू ने न्यूयार्क के एक होटल में उसकी सुरीली आवाज सुनी। वह उससे बहुत प्रभावित हुआ और 20 हजार डॉलर वार्षिक का अनुबंध कर लिया। वह अपने विज्ञापनों में उसकी चित्ताकर्षक आवाज का इस्तेमाल करने लगा। इससे उसे कई गुना मुनाफा हुआ। जॉनी अपनी जान से भी कीमती अपनी आवाज को मानता था, इसलिये उसका बीमा करा रखा था। उसका कद 47 इंच और वजन 22.24 कि.ग्रा. था।

मिचेल वार्विकशायर, इंग्लैण्ड का रहने वाला था। वह लगभग तीन फुट का था। एक बार उसके साथ बड़ी रोचक घटना घटी। मछली का शिकार करना उसका सबसे बड़ा शौक था। एक बार टेम्स नदी में वह मछली पकड़ने गया। संयोग से एक बड़ी मछली उसकी बंसी में फंस गयी। जो मछली फंसी, उसका वजन लगभग 7 किलो जितना था, जबकि मिचेल का अपना भार कुल 15 किलो था। वह मछली का निकालने का प्रयास करता और मछली उसे अपनी ओर खींचती। इसी खींचतान में वह नदी में जा गिरा। दैवयोग से तभी उधर से एक राहगीर गुजर रहा था। उसने मिचेल को नदी में गिरते देख लिया और उसकी प्राण- रक्षा की।

बौनों पर अब तक कई पुस्तकें लिखी जा चुकी है, पर जितनी प्रसिद्धि जोनाथन स्विफ्ट की रचना ‘गुलिवर्स ट्रैवेल’ को मिली, उतनी शायद ही किसी अन्य को मिनी हो। उसमें ‘लिलीपुट’ नामक जिस वामनलोक का वर्णन है, वह काफी रोचक है। उसी की तर्ज पर बीसवीं सदी के प्रारम्भ में कोनी आइलैण्ड के समीप ठिगनों का एक नगर बसाया गया, उसका भी नाम लिलीपुट रखा गया। लिलीपुट की बौनी संरचनाओं में एक थियेटर, फायरहाउस एवं एक मा था। इसके अतिरिक्त अनेक निजी मकान थे। अनेक छोटे-छोटे प्ले ग्राउण्ड, वाहन एवं उथले गड्ढों जैसे स्वीमिंग पुल को देखकर ऐसा लगता था, मानो सचमुच ही अपने विश्व से यह कोई अलग ही लोक हो। यद्यपि वहाँ तीन सौ बौनों के रहने भर की ही व्यवस्था थी, पर उसे देखकर बड़ा अद्भुत अनुभव होता था। संसार के प्रसिद्ध बौने अक्सर वहाँ घूमने-फिरने जाया करते थे। इनमें न्यूयार्क के जनरल टॉमथंब की पत्नी लेविनिया एवं उसका दूसरा पति काउण्ट प्राइमोमैगरी प्रमुख थे। दोनों अपना अधिकाँश समय यहीं गुजारा करते। बौनों की यह नगरी दुनिया के आकर्षण का केन्द्र थी पर दुर्भाग्यवश 27 मई, 1911 में यह जलकर नष्ट हो गया।

सन् 1933 में अमेरिकी प्रोग्रेस मेले का शताब्दी समारोह मनाया जाना था। इसके लिये आयोजकों ने एक अनोखी युक्ति सोची। उन्होंने यूरोप भर के सारे बौनों को उस अवसर पर एकत्रित किया। देखने पर ऐसा प्रतीत होता था, जैसे बौनों का ही यह काई शहर हो। सन् 1939 के न्यूयार्क विश्व मलेन में एक बार पुनः यही दृश्य उपस्थित हुआ। मेले में ठिगने सर्वाधिक संख्या में देखे गये।

फ्राँस के मूर्धन्य मनीषी ज्याँ पाँल सार्त्र ने अपने एक संस्मरण में पेरिस के एक ऐसे परिवार का उल्लेख किया है, जिसमें सात पीढ़ियों में लोग बौने होते आ रहे हैं। उन्होंने लिखा है कि उक्त परिवार के सभी सदस्य तीन से साढ़े तीन फुट के बीच के हैं। जब वे सब एक स्थान पर एक साथ इकट्ठे होते हैं, मानो बालकों का कोई झुण्ड किसी विशेष प्रयोजन के लिये एकत्रित है। उनके पूर्वज सामान्य कद-काठी वाले थे, किन्तु उसके बाद सात पीढ़ियों में परिवार का कोई भी सदस्य औसत कद नहीं प्राप्त कर सका।

वमन नगरी की चर्चा में यदि रूस के जार पीटर द्वारा पीटर्सबर्ग के समीप बसाये गये शहर का उल्लेख न हो, तो वर्णन अधूरा माना जायेगा। उक्त शहर की आबादी ढाई सौ के करीब थी और वहाँ सामान्य लम्बाई वाले लोगों का बसना निषिद्ध था। इस नगरी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि यहाँ क्रेता-विक्रेता, उत्पादक और उपभोक्ता सभी बौने थे। जार की आरे से यहाँ के निवासियों को अनेक सुविधायें मिली हुई थीं।

पीटर का प्रियपात्र वँलकोफ नामक एक बौना था। उसने राजकुमारी (जारेण्ना) थ्योडोरुना की एक बाँदी से शादी कर ली। इस शादी में जार ने व्यक्तिगत रुचि दिखायी और विवाह का सारा प्रबन्ध स्वयं अपने हाथों में ले लिया। विवाहोत्सव के लिये उसने बौनों के एक बड़ा समुदाय को एकत्रित किया। यह समुदाय विवाह-जुलूस के रूप में विवाहित जोड़े के आगे-आगे चल रहा था। उसके पीछे जार और नवदंपत्ति था। विवाहोपरान्त भोजन की व्यवस्था थी। इसमें गणमान्य अतिथि आमंत्रित थे। अतिथियों में अनेक बौने भी थे। प्रीतिभोज का प्रबन्ध भी आकर्षक था। बड़े कद के मेहमानों को बड़े कद के मेजबान मिले और छोटे कद के मेहमानों को ठिगने मेजबान। उनके लिये छोटे आकार के बर्तनों को भी विशेष रूप से व्यवस्था की गयी थी।

प्रायः शासनसत्ता और राज्यव्यवस्था जैसे जटिल कार्य औसत ऊँचाई वाले लोगों के ही हाथों होते है, पर लीदिया के बौने बादशाह क्रोसस और अत्तिला का प्रसंग कदाचित इस क्षेत्र में अपने प्रकार का अकेला ही है। अत्तिला के बारे में ऐसा कहा जाता है कि उसने करीब 5 लाख सैनिकों की विशाल वाहिनी का नेतृत्व किया था। दोनों कुशल शासक थे।

पुराने जमाने में उच्च घरानों में बौनों को रखने का विशेष रिवाज था। तब यह प्रतिष्ठासूचक माना जाता था, सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी में यह शौक काफी बढ़ गया और सम्पूर्ण यूरोप में अभ्यागतों के स्वागतार्थ बौनों को रखने की प्रथा आम हो गयी। कई देशों में यह प्रचलन 19 वीं शताब्दी तक जारी रहा।

ऐसा उल्लेखनीय मिलता है कि रोमन सम्राट अपने दरबार में बौने रखा करते थे। रोमन साम्राज्य की नींव रखने वाले राजा आगस्टस के बारे में कहा जाता है कि उसने बाद के उत्तराधिकारियों के लिये बौने रखने की परम्परा एक प्रकार से अनिवार्य ही कर दी थीं अपने शासन के दौरान उसने यह निर्देश जारी किया था कि जहाँ कहीं बौने मिलें, उन्हें दरबार में प्रस्तुत किया जाये बौनों को पालने और इकट्ठा करने की प्रवृत्ति सनक स्तर पर वहाँ के एक अन्य शासक डोमेट्सियन में भी थी।

प्राचीन रोम में बर्तनों की खरीद-फरोख्त का धन्धा अत्यन्त लाभदायक व्यापार समझा जाता था। तब उनकी ऊँची कीमतें मिलती थीं। अतएव बच्चों को ठिगना रखने का एक व्यवसाय ही चल पड़ा था। उन्हें एक विशेष प्रकार की दवा की खुराक खिलायी जाती। इससे उनकी वृद्धि रुक जाती और वे बौने हो जाते। यह एक प्रकार से मनुष्य की पैशाचिक प्रवृत्ति कही जा सकती है, जो आज ‘बोंसाई’ पौधों के शौक के रूप में दिखायी देती है।

शरीर से बौनापन एक अजूबा जरूर है, पर हमारे चिन्तन और व्यवहार में बौनापन न दीखे, इसी में मनुष्य की गरिमा है। चिन्तन और कर्तृत्व का बौनापन आदमी को अधोगामी बनाता तथा पशुस्तर तक नीचे गिराता है यह शारीरिक ठिगनेपन से भी अधिक दुःखदायी स्थिति है, कारण की इसमें जीवात्मा पर मलीनताओं का ऐसा और इतना बोझ बढ़ता है कि उसे हटाने-मिटाने में जन्म-जन्मान्तरों जितना समय लग जाता है। इस भार के न रहने पर इतनी अवधि में कदाचित वह चरम लक्ष्य को प्राप्त कर लेती, पर इसके कारण जन्म-मरण के चक्र में ही आबद्ध रहकर बार-बार उसको इस संसार में आना पड़ता हैं अपने अन्तःकरण के बौनेपन को दूर करके मुक्ति का लक्ष्य शीघ्र पाया जा सकता है। उसमें यदि हिमालय जितनी विशालता हो, तो काया का ठिगनापन महत्वहीन बन जाता है।


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