अपनों से अपनी बात-1 - युगपरिवर्तन की अदृश्य, किंतु अद्भुत प्रक्रिया

March 1998

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परमपूज्य गुरुदेव स्पष्ट लिख गये हैं कि युगपरिवर्तन सुनिश्चित है। हम सब उसी प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। मुर्गा जैसे ही बाँग लगाता है, सभी को सवेरा होने का आभास हो जाता है। पौ फटती है। ऊषाकाल का आगमन होता है। चारों ओर लालिमा छा जाती है। अरुणोदय होता है। प्राची का रक्तवर्ण देखते ही बनता है। इक्कीसवीं सदी भारतीय सम्वत्सर परंपरा के अनुसार तो 1942 से ही लग चुकी, किंतु तभी से केवल रही प्रत्यावर्तन-प्रक्रिया अब प्रौढ़ावस्था, चरमावस्था में पहुँच चुकी है। नजरुल इस्लाम जैसे विद्वान इसी सदी के प्रारंभ में लिख गये थे-”अमृत भी आयेगा। अब विलंब नहीं है। हलाहल तो ऊपर आ ही चुका है।” आज जो कुछ भी दृष्टिगोचर हो रहा है, युग परिवर्तन रूपी समुद्रमंथन का हलाहल ही तो है। परिवर्तन की प्रक्रिया धीमी गति से चलती है। जो होने जा रहा है, वह एक क्षण में उलट जाय, ऐसा तो संभव नहीं। सूर्य, पृथ्वी सतत् अपनी धुरी पर अपनी कक्षा में तेजी से अग्रसर रहते हैं, पर अपने कमरे में बैठे उसका आकलन करें तो वह चाल बड़ी धीमी प्रतीत होती है। सूर्य के चलने जैसा तो कुछ अनुमान भी लगता है, पर पृथ्वी घूमती है, इस बात पर तो मात्र विद्वत्जन ही विश्वास कर पाते हैं।

परमपूज्य गुरुदेव की युगपरिवर्तन की भविष्यवाणी को एक अकाट्य एवं विश्वस्त संभावना मानकर चला जाय तो ही समझा जा सकता है कि आज जो भी परिवर्तन दृष्टिगोचर हो रहा है, वह उसी की एक कड़ी मात्र है। परमपूज्य गुरुदेव लिखते हैं कि हम जो कुछ भी कह या लिख रहे हैं-घोषणा कर रहे हैं, उसके पीछे उच्चस्तरीय अध्यात्म की वे अनुभूतियाँ हैं, जिनमें घटित होने वाले घटनाक्रम का पूर्वाभास संजोया गया है। इसमें विश्वभर की भवितव्यता (जो भी कुछ भविष्य में होने जा रहा है) का निरूपण है। इसमें यह भी बताया गया है कि प्रचण्ड प्रवाह किस दिशा में चल पड़ा है और वह भविष्य में जाकर कब, किस लक्ष्य तक पहुँचकर रुकेगा।

विगत अंक में परिजन युगपरिवर्तन के संबंध में विस्तार से पढ़ चुके हैं। विभिन्न पक्ष सामने रख यह आश्वस्त करने का प्रयास फरवरी अंक में किया गया था कि क्राँतियाँ जब भी आती हैं, इसी प्रकार आती हैं। यह भी वर्णन था कि आमतौर से व्यक्तियों के प्रयास ही परिस्थितियों को प्रभावित करते और उनमें उथल-पुथल पैदा करते हैं। राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, औद्योगिक क्रांतियां कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों अथवा समुदायों के प्रभाव से ही उत्पन्न हुई हैं। चाहे वे मेजिनी द्वारा, कार्लमार्क्स द्वारा, कमाल पाशा द्वारा, अथवा महात्मागाँधी द्वारा संपन्न की गयी हों, चाहे वे चीवरधारी भिक्षुओं द्वारा चंद्रगुप्त चाणक्य द्वारा अथवा स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों द्वारा की गयी हों, किंतु कई बार ऐसा भी होता है कि उमंगे उठी और उन्होंने चमत्कारी कार्य कर दिखाये। समूचे संसार में असाधारण परिवर्तन करके दिखा दिए। उन्नीसवीं-बीसवीं सदी में जो वैज्ञानिक क्राँति का आधार बना व विज्ञान-अध्यात्म के निकट आकर एकात्मता की स्थिति में आ पहुँचा, यह वर्णन भी विगत अंक में किया जा चुका है। अब इस नये युग की क्राँति एक दार्शनिक, साँस्कृतिक, वैचारिक क्राँति है। इससे विश्व का समूचा वातावरण, समूचा प्रचलन प्रभावित होगा।

आमतौर से भविष्यवाणियों का आधार ग्रह-गणित-ज्योतिष को माना जाता है, पर वास्तविकता यह है कि जो भविष्यकथन की विधा में पारंगत हैं, वे उन संभावनाओं को प्रकट नहीं करते। जो करते हैं, वे जानते नहीं। हाँ नोस्ट्राडेमस, श्री अरविंद, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, परमपूज्य गुरुदेव जैसे महापुरुष अपनी अंतःस्फुरणा के आधार पर समय-समय पर ऐसी संभावनाएं व्यक्त कर मानव के उत्साह को एक उछाल जरूर दे जाते हैं। फिर भी उनके बताए घटनाक्रम समष्टिगत होते हैं। मनीषियों ने किसी कारणवश ही व्यक्तिगत भविष्य बताने का निषेध भी किया है, क्योंकि इससे व्यर्थ चिंता बढ़ती है और मानवी पुरुषार्थ में व्यवधान आता है।

परमपूज्य गुरुदेव की उज्ज्वल भविष्य की उद्घोषणा के दो प्रमुख आधार हैं-पहला तो हैं अदृश्य जगत का वह सूक्ष्म प्रवाह, जो कुछ नई उथल-पुथल करने के लिए अपने उद्गम से चल पड़ा है और अपना उद्देश्य पूरा करके ही रहेगा। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए अनेकानेक प्रतिभाओं को हनुमान-अर्जुन की तरह अपने प्रभाव में लेकर निश्चित सुनियोजित प्रयोजन के निमित्त उन्हें बलपूर्वक लगा देगा। दूसरा आधार पर-उनका निज कमा अवतारी संकल्प। ऐसे संकल्प किसी उच्चसत्ता की प्रेरणा से महाकाल की चुनौती की तरह ही अवतरित होते हैं। परमपूज्य गुरुदेव के चौबीस लक्ष्य के चौबीस गायत्री महापुरश्चरण, कठोर तप−साधनाएं, चार बार की हिमालय यात्राएं, प्रचण्ड स्तर की सूक्ष्मीकरण साधना ऐसे विलक्षण प्रयोगों के निमित्त ही सम्पन्न हुई। सूक्ष्मजगत की दिव्यचेतना को झकझोर कर खड़ा कर देने, साथ ही साथ अनर्थों को निरस्त करने हेतु उनसे जूझने के उभयपक्षीय प्रयोजनों में उनकी सूक्ष्म व कारणसत्ता सतत् नियोजित हैं।

जो घटित होने जा रहा है, उसे सफल बनाने के लिए दूरदर्शी विज्ञजनों में से कोई भी न चूके, इसी में समय की सबसे बड़ी समझदारी है। श्रेय संभावना की भागीदारी में सम्मिलित होने का सुयोग सौभाग्य जिन्हें अर्जित करना हो उन्हें परमपूज्य गुरुदेव के जीवनवृत्त को एक जीवंत उदाहरण बनाना होगा तथा उनकी ही तरह भौतिक जगत में संयमी सेवाधर्मी बनना होगा। इतना कर सकने का साहस करने वाले ही उनके छोड़े उत्तराधिकार को वहन कर सकेंगे। पीछे से उनका बल कार्य कर ही रहा है, यह विश्वास में रख कर चला जाय, तो आगामी चार-पाँच वर्षों की अवधि में युगपरिवर्तन को स्पष्ट अपने नेत्रों से देखा जा सकेगा। शाँतिकुँज रूपी नवयुग की गंगोत्री का सभी को इस प्रवाह से जुड़ने का विशेष आह्वान है।


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