असावधानी (Kahani)

March 1998

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बूढ़ा युवकों को पेड़ों पर चढ़ने- उतरने की तकनीक सिखाता। युवक ऊंचे-ऊंचे वृक्षों पर चढ़ना उतरना सीखते। एक युवक पेड़ पर चढ़ने की कला में पारंगत होने आया बूढ़े ने कहा- पेड़ पर चढ़ने उतरने में बड़ी सावधानी रखने की जरूरत है। युवक बोला- इसमें कौन-सी नई बात है। यह तो सभी जानते हैं और वह देखते देखते वृक्ष की अन्तिम चोटी पर पहुँच गया। बूढ़ा देखता रहा, हिम्मत बढ़ता रहा। जब उतरने लगी तब बूढ़ा चुपचाप बैठा रहा। युवक बड़ी सावधानी से सम्हल–सम्हल कर उतर रहा था। जब तीन-चौथाई दूरी तक युवक उतर आया तो बूढ़ा बाला- बेटे जरा सम्हल के उतरना। असावधानी व जल्दबाजी मत करना। युवक बड़ा हैरान था कि तब वह पेड़ की चोटी से उतर रहा था तब तक बूढ़ा चुपचाप बैठा रहा और अब आधी से भी कम दूरी रहने पर मुझे सावधान कर रहा है। वृद्ध बोला- “यह तो मुझे भी मालूम है कि तब तुम ऊपर से उतर रहे थे, तब तो स्वयं ही सावधान थे, किन्तु लक्ष्य को समीप और सरल देखकर ही अक्सर लोग असावधानी बरतते हैं। बेटे इसीलिये मैंने तुम्हें सावधान किया था।”


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