एक दर्जी चतुर्भुज भगवान का भक्त था। वह जिस गाँव में रहता था। वहाँ के लोग उसके चतुर्भुज प्रेम को जानते थे। इसलिये वे कपड़े प्रायः उससे नहीं ही सिलवाते थे।
एक बार उस गाँव में एक अजनबी आया उसे कमीज सिलवानी थी। सामने ही दर्जी की दुकान देख वह उसको कपड़ा दे आया। जब कमीज बन कर तैयार हुई और लेने गया तो देख कर बड़ा हैरान हुआ। उसमें दो की जगह चार बांहें उसने पूछा ये चार बाँहें क्यों लगायी।
दर्जी ने कहा मुझे तो सर्वत्र चतुर्भुज के ही दर्शन होते हैं। तुम्हारी चार बांहें नहीं हैं क्या? मुझे तो चार ही दिखायी पड़ रही हैं तो तुम पहले ही बता देते। तुम्हारी जितनी बाँहें हैं उतनी बना देता। बताया क्यों नहीं मुझे जैसा दिखायी पड़ता है वैसा बना दिया।
आगंतुक ने सिर पीट लिया। सोचने लगा भला ऐसा भगवत् दर्शन किस काम का। जो व्यवहारिक जीवन को ही अनगढ़, असन्तुलित और अस्त-व्यस्त बना दे।