भारभूत बनकर क्यों जीते हैं आप?

March 1998

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वजन का अपना महत्व है। आमतौर पर भी चीजें मूल्यवान मानी जाती हैं और हलकी को कम कीमत का आँका जाता है। सोना वजनदार और चमकीला है, इसलिये उसकी कीमत ज्यादा है।इसके विपरीत चाँदी हलकी है, अस्तु वह कम मूल्य की है। मनुष्य का मूल्याँकन उसके स्थूल वजन पर नहीं, व्यक्तित्व की गुणवत्ता पर निर्भर है। इतने पर भी आये दिन कितने ही स्थूलकाय आश्चर्य और आकर्षण के केन्द्र बने रहते हैं।

रॉबर्ट अर्लह्यूज इलिनाँय, अमेरिका का रहने वाला था। जब उसका जन्म हुआ, तब वजन साढ़े पाँच किलो था। यों तो यह वजन सामान्य की तुलना में कुछ अधिक ही था। किन्तु उस समय माता पिता ने इस ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया, सोचा अच्छी तन्दुरुस्ती के कारण ही यह भार असामान्य-सा प्रतीत होता रहा है। पर जल्द ही उनकी यह धारणा बदल गई। बन्दे के वजन में द्रुतवृद्धि शुरू हुई। जब वह मात्र 6 वर्ष का था तो उसका वजन 92.5 कि.ग्रा. था। यह वजन इतना, जो इतनी छोटी उम्र में कभी नहीं देखा गया। दस वर्ष की आयु में वह 170.3 कि.ग्रा. हो गया। जब उसकी अवस्था 17 वर्ष की हुई तो शरीर का कुल भार 305.2 कि. ग्रा. था, जो 24 वर्ष की वय में बढ़कर 400.01 कि.ग्रा. हो गया। मृत्यु से कुछ दिन पूर्व उसका अधिकतम वजन 486.02 कि.ग्रा. था

अर्ल ह्यूज ने इतिहास का सर्वाधिक वजनी व्यक्ति होने का गौरव प्राप्त किया। उसका सीना 315 से.मी. चौड़ा और कमर की मोटाई 305.1 से.मी. थ। वह आरम्भ में खेती करता था। पर जल्द ही उसका शरीर इतना भारी-भरकम और मोटा हो गया कि आसानी से उठना-बैठना और श्रमसाध्य कार्य कर सकना उसके लिये असंभव हो गया। हराकर उसे वह काम छोड़ना पड़ा। इसके बाद एक सर्कस में भर्ती हो गया। यहीं उसने जीवन के शेष दिन गुजारे।

वह एकदम ढीले ढाले कपड़े पहनता था, ताकि पहनने-उतारने में सुविधा हो। सामान्य डील-डौल वाले व्यक्ति के लिये साधारणतः 2-3 मीटर तक के कपड़े की आवश्यकता शर्ट बनने में होती है, किन्तु ह्यूज को इसके लिये साढ़े चार मीटर कपड़े की जरूरत पड़ती है।

नुमाइश के लिये अनेक बार उसको शहर से बाहर जाना पड़ा उसकी अन्तिम यात्रा इण्डियाना की रही। वहां वह एक ट्रक के ट्रेलर में अठा रहता और शरीर का प्रदर्शन करता। इस दौरान एक बार वह बीमार पड़ गया। उसे अस्पताल पहुँचाया गया। यहाँ एक समस्या उठ खड़ी हुई। वह इतना अधिक मोटा था कि दरवाजे छोटे पड़ गये, किसी भी द्वार से वह अन्दर प्रविष्ट न कर सका। अन्ततः उसे लौटाकर पुनः ट्रेलर पर ही ले जाया गया, वहीं उसके उपचार की व्यवस्था की गई। वह ठीक हो गया, पर अब उसको एक-दूसरे रोग ने आ घेरा। उसको यूरीमिया नामक व्याधि हो गई। इसके कारण उसके सारे शरीर में विष फैल गया और अन्ततः इण्डियाना में ही उसकी मृत्यु हो गई।

उसका ताबूत 85 इंच लंबा, 53 इंच चौड़ा एवं 32 इंच गहरा था। उसे क्रेन के सहारे कब्र में उतारा गया।

जाँली दरेन फ्लोरिडा, अमेरिका की रहने वाली थी। उसका वजन 393 किलो से भी अधिक था। एक बार वह अपने बिस्तर से गिर पड़ा, तो अपने भारी भरकम शरीर के कारण स्वयं उठ न सकी। पाँच-छह लोगों ने मिलकर उसे उठाया।

वह अमान्दा रिबर्ट के उपनाम से अधिक प्रसिद्ध थी। जब उसका जन्म हुआ, तब एकदम सामान्य थी। 21 वर्ष की आयु में जाँली का वजन 54.5 कि.ग्रा. था। तब वह सुन्दर, पतली-दुबली युवती थी। इसी वर्ष उसका विवाह हो गया। शादी के लगभग एक वर्ष बाद उसके एक बच्चा हुआ। इसी समय उसके अन्तःस्रावी ग्रन्थियों में कुछ खराबी आ गयी उसके शरीर में मोटाई बढ़ने वाले रक्तस्राव की मात्रा अचानक बढ़ गयी और वह तेजी से मोटे होने लगी। एक महीने के अन्दर उसका वजन 5 किलो बढ़ गया। इसके बाद वह बढ़ता ही गया। काफी उपचार हुआ, फिर भी उस पर काबू नहीं पाया जा सका। उसके असाधारण मोटापे के कारण एक सर्कस कम्पनी ने उसे अपने यहाँ भर्ती कर लिया। वह कोनी द्वीप चली गयी। वहाँ सर्कस के ही एक सहयोगी से दुबारा शादी कर ली। 60 वर्ष की अवस्था में एक बार बीमार पड़ी और उसकी मृत्यु हो गयी।

जैक इकर्ट भी एक भीमकाय व्यक्ति था। उसका वजन 336 कि.ग्रा. तथा कमर 475 से.मी. थी। छाती भारी एवं लटकती हुई। तोंद घुटने तक झूलती थी। उसकी जंघायें खम्भानुमा प्रतीत होतीं। उकड़ूं या पालथी मारकर बैठ पाना उसके लिये संभव नहीं था। वह एक भारी-भरकम और मजबूत कुर्सी पर बैठा रहता।

वह एक सर्कस का पात्र था। सर्कस कम्पनी के साथ उसने कई बार विदेश यात्रा भी की। उसे चलने-फिरने में बड़ी कठिनाई होती थी, इसलिये ट्रक को ही उसने घर बना लिया था।

एक बार वह मारडी ग्रेस सर्कस में हिस्सा लेने जा रहा था कि रास्ते में उसकी टक्कर एक दूसरे ट्रक से हो गयी। इससे वह जख्मी हो गया। उसे अस्पताल ले जाया गया वहाँ उसके लिये एक विशेष बिस्तर की व्यवस्था की गयी। इसके बावजूद भी उसे बचाया नहीं जा सका। कुछ दिन बाद उसकी मौत हो गयी। तब उसकी उम्र 62 वर्ष थी।

एली कार्बण्टन उत्तरी कैगेलिना का रहने वाला था। आरम्भ में उसकी काया साधारण बालक की तरह थी। 10 वर्ष का होते-होते उसकी भूख नियंत्रण से बाहर चली गयी। यह इतना खाने लगा कि जल्द ही उसकी परिणति मोटापे के रूप में सामने आने लगी। कुछ ही वर्षों में उसकी देह इतनी विस्मृत हुई कि घर के दरवाजों से निकलना ओर उनमें प्रवेश करना उसके लिये असंभव हो गया। उसका शरीर इतना भारी हो गया था कि बैठने-उठने के लिये उसे दूसरों का सहारा लेना पड़ता। जमीन पर वह नहीं बैठ पाता। उसके बैठने के लिये एक बड़ी और मजबूत स्टूल बनायी गयी थी। उसकी मृत्यु बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से हुई। एक दिन वह छत पर टहल रहा था। उसके भारी-भरकम शरीर का वजन छत न संभाल सकी और गिर पड़ी। वह भी गिरा और हृदयगति रुक जाने के कारण मौत हो गई।

रूथ पोण्टिकसे इण्डियाना (अमेरिका) की रहने वाली थी। उसकी माँ भी स्थूलकाया थी। उसका भार 274 कि.गा. था। वह रिंगलिंग ब्रदर्स के सर्कस में काम करती थी। इस प्रकार पोण्टिको को मोटापा विरासत में मिला था। आरम्भ में उसकी देह साधारण ही थी इसलिये टेलीग्राफ कम्पनी में नौकरी कर ली, पर बाद में उसकी मोटाई बड़ी तेजी से बढ़ी। वह इतनी मोटी हो गयी कि ऑफिस का कार्य करने में कठिनाई होने लगी। स्वतः उठना-बैठना भी उसके लिये दूभर हो गया, अतः नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा। अन्त में वह एक सर्कस कम्पनी में भर्ती हो गयी। वहाँ उसकी भेंट जाँब पोण्टिकाो से हुई। उसका वजन 317 कि.ग्रा था। दोनों ने विवाह कर लिया।

सेलेस्टा गेयर के बारे में कहा जाता है कि उसकी भूख इतनी बढ़ी-चढ़ी थी कि भोजन करने के दो घंटे उपरान्त उसे भूख लग आती। यदि उस समय तुरन्त खाना नहीं मिलता, तो परेशान हो जाती। उसके भोजन में 2 कि.ग्रा. माँस, 3 किग्रा. हरी सब्जी 5 कि.ग्रा. दूध नियमित रूप से सम्मिलित होते। इसके अतिरिक्त केक, पेस्ट्री, आइसक्रीम भी काफी मात्रा में रहते। वह सिनसिनाटी, ओहियो की रहने वाली थी। जन्म के समय उसका वजन सामान्य था। जब खाने-पीने लायक हुई तब अवश्य उसका आहार उस उम्र के बच्चों से अधिक था। धीरे-धीरे उसकी यह मात्रा बढ़ती ही गयी। जब 5 वर्ष की हुई तो उसका वजन 69 कि.ग्रा. था। यह सामान्य से काफी अधिक था। जब वह 11 वर्ष की हुई, तो वजन 85 कि.ग्रा. था। वह अपने बढ़ते भार से चिन्तित हो उठी। भार घटाने के लिये उसने तैरना प्रारम्भ किया, पर यह उसके लिये सिरदर्द बन गया। व्यायाम से उसकी क्षुधा और उद्दीप्त हो गयी। अब वह पहले से भी ज्यादा खाने लगी।

स्कूल की पढ़ाई समाप्त कर उसने नौकरी कर ली। मोटापा वहाँ भी आड़े आया। स्थूलता बढ़ने के कारण उसकी स्फूर्ति और सक्रियता घटने लगी। विवश होकर उसे नौकरी छोड़नी पड़ी। अब वह 21 वर्ष की हो चली। इस समय उसका वजन 148 किग्रा. था थोड़े दिन पश्चात फ्रैंकगेयर नामक युवक से उसने शादी कर ली; शादी के पश्चात वह सर्कस में भर्ती हो गयी। इस समय उसका भार 195 कि.ग्रा. हो था। अगले 25 वर्षों तक वह सर्कस से जुड़ी रही। उसने अपना नाम बदलकर जॉलीगेयर रख लिया।

सेलेस्टा का अधिकतम वजन 236 कि.ग्रा. था इस स्थिति में उसका चलना-फिरना तो दूर, खड़ा रह सकना भी एक प्रकार से कठिन हो गया। एक बार कुछ अधिक समय तक खड़ी रह गयी, तो वह बीमार पड़ गयी, उसके पैर सूज गये, साँस लेने में परेशानी होने लगी। उसे अस्पताल में भर्ती किया गया। डॉक्टरों की सलाह पर अब उसने भोजन घटाना शुरू किया। इसका अच्छा प्रभाव पड़ा। थोड़े ही समय में उसके भार में 14 किग्रा की मी आ गयीं 6 महीने उपरान्त वह 183 किग्रा की रह गयी। आगे उसमें और घटोत्तरी हुई। पचासवें साल में उसका वजन मात्र 70 किग्रा रह गया। उसका सीना जो पहले 436 सेमी था, वह अब केवल 95 सेमी रह गया, कमर का घेरा घटकर आधा हो गया, कूल्हे जो पहले 214 सेमी थे, वह सिमटकर 105 सेमी रह गये।

जल्द ही वह एकदम सामान्य हो गयी। उसे वजन में 180 किग्रा की कमी को वास्तव में अद्भुत और असाधारण ही कहा जायेगा, इससे स्पष्ट है कि मनुष्य यदि कुछ भी करने के लिये ठान ले, तो उसे प्राप्त करना कठिन नहीं है।

शरीर के वजनदार होने की सार्थकता वजनदार व्यक्तित्व में निहित है। व्यक्तित्व यदि उथला हुआ, तो डील-डौल वाला शरीर भी किसी काम का नहीं वह तो भारभूत बनकर प्रगति में और अड़चन ही पैदा करेगा। हम अपने गुण, धर्म, स्वभाव को इतना उदात्त और आकर्षक बनायें कि उससे हमारा व्यक्तित्व वजनदार बने। मनुष्य के लिये भारी-भरकम काया नहीं, भारी-भरकम व्यक्तित्व अभीष्ट है। उसी के लिये हरेक को प्रयत्न करना चाहिये।


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