फलदायिनी गायत्री महाशक्ति की अभियान-साधना

March 1998

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गायत्री मंत्र सर्वोपरि मंत्र है। इससे बड़ा और कोई मंत्र नहीं। गायत्री महामंत्र में समस्त संसार को धारण पोषण और अभिवर्धन करने वाले परमात्मा से सद्बुद्धि विवेक प्रदान करने की प्रार्थना की गयी है। संसार में जो काम अन्य किसी मंत्र से नहीं हो सकता वह निश्चित रूप से इस महामंत्र द्वारा हो सकता है। श्रद्धा विश्वास पूर्वक की गयी यह उपासना साधक की अन्तश्चेतना को उसके मन मस्तिष्क को अन्तःकरण को विचारों और भावनाओं को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करती है। गायत्री भूलोक की प्रत्यक्ष कामधेनु हैं। जो व्यक्ति उसकी पूजा, उपासना, आराधना, अभ्यर्थना करता है वह प्रतिक्षण माता का अमृतोपम दुग्धपान करने का आनन्द लेता है और समस्त अज्ञानों, अभावों, आसक्तियों के कारण उत्पन्न होने वाले कष्ट कठिनाइयों से क्लेशों, दुखों से छुटकारा पाकर मनोवांछित फल प्राप्त करता है। योग्य एवं तपस्वी गुरु के संरक्षण में की गयी गायत्री साधना अभीष्ट लाभ पहुँचाती है। वृहत्पारासर स्मृति 8-60 में कहा भी गया है “रोग, शोक, द्वेष तथा अभाव की स्थिति में गायत्री महाशक्ति की उपासना करने से इन कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। अग्निपुराण में भी उल्लेख है-

“एहिकसमुष्यिकं सर्वगायत्री जपतो भवेत्।

अर्थात् गायत्री जप से सभी साँसारिक कामनायें पूर्ण होती हैं।

श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक की गयी गायत्री उपासना से व्यक्ति के बाहरी और भीतरी अर्थात् लौकिक एवं आत्मिक दोनों ही उन्नति के द्वार खुल जाते हैं माता का आँचल पकड़ने वाले व्यक्ति के ममतामयी गायत्री महाशक्ति न केवल मनोरथ को पूर्ण करती हैं वरन् मातृत्व संरक्षण भी प्रदान करती हैं। गायत्री संहिता में कहा गया है-

दयालुः शक्तिः सम्पन्ना माता बुद्धिमती यथा। कल्याणकुरुतेह्यैव प्रेम्णा बालस्य चात्मनः॥

तथैव मामा लोकानाँ गायत्री भक्तवत्सला। विदधाति हितं नित्यं भक्ताँ धु्रवात्मनः॥

अर्थात्- जिस प्रकार दयालु, समर्थ तथा बुद्धिमान माता प्रेम से अपने बच्चे का कल्याण करती हैं, उसी प्रकार भक्तों पर स्नेह रखने भक्तवत्सला जगजननी गायत्री माता अपने भक्तों का सदैव कल्याण करती हैं। सुसंस्कारी साधक गायत्री माता का आश्रय लेने के पश्चात कोई गंभीर या अनैतिक भूलें नहीं करते हैं। फिर भी मानवीय दुर्बलताओं के कारण उनसे यत्किंचित् त्रुटियाँ हो जाती हैं तो उसका वैसा दुष्परिणाम नहीं होता। गायत्री संहिता में ही आगे उल्लेख है-

कुर्वन्नाति त्रुटिर्लोके बालकौ मातरं प्रति। यथा भवति कश्चिन्न तस्या अप्रीतिभाजनः॥

कुर्वन्नापि त्रुटीर्भवतः क्वाचित् गायत्र्युपासने। न तथा फलमाप्नोति विपरीतं कदाचन॥

अर्थात्- जिस प्रकार संसार में माता के प्रति भूलें करता हुआ भी कोई बालक उस माता का शत्रु नहीं होता उसी प्रकार गायत्री माता की उपासना करने में भूल करने पर कोई भी साधक कभी भी विपरीत फल को प्राप्त नहीं होता। अतः जैसे भी बने वैसे जप करने पर भी परमपावनी गायत्री कल्याण ही करती हैं। फिर विधि पूर्वक उपासना करने के लाभ का कहना ही क्या है?

यों तो गायत्री उपासना साधना की अनेकों विधियाँ हैं सामान्य साधकों के लिये 9 दिन में 24000 का लघु अनुष्ठान तथा 40 दिन में सवा लक्ष का अनुष्ठान निर्धारित है। जिसे प्रायः लोग आसानी से कर लेते है, परन्तु गायत्री का पूर्ण पुरश्चरण 24 लाख का होता है। जो लोगों को कठिन पड़ता है। जिसमें लगभग 6 घंटे साधना में लगने पड़ते हैं। इतना समय सामान्य रूप से निकाल पाना कठिन होता है। इसके साथ ही इसमें तपश्चर्यापरक कठिन अनुबन्ध भी जुड़े होते हैं जिसे निभाना कमजोर मनःस्थिति के व्यक्तियों के लिये मुश्किल पड़ता है। ऐसे साधकों के लिये जो लम्बी अवधि का संकल्प करना चाहें और प्रतिदिन घंटे-दो घंटे से अधिक समय लगाने की स्थिति में न हों उनके लिये एक विशेष गायत्री साधना बहुत उपयुक्त रहती है। जिसे गायत्री अभियान साधना कहा जाता है। यह एक वर्षीय गायत्री साधना है, जिसके अंतर्गत एक वर्ष में निर्धारित तपश्चर्याओं के साथ 5 लक्ष गायत्री मंत्र जप पूरा किया जाता है।

इस साधना अभियान में जप संख्या बहुत अधिक नहीं होती, फिर भी दीर्घकालीन श्रद्धाभाव साधना क्रम साधना के आन्तरिक उत्कर्ष की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। यह एक वर्ष की तपश्चर्या साधक को गायत्री महाशक्ति से तादद में करा देती है। श्रद्धा और विश्वास पूर्वक की हुई अभियान साधना अपना फल दिखाये बिना नहीं रहती। यह एक वर्षीय अभियान साधना एक ऐसी तपस्या है जो साधक के अभावों, कष्ट, कठिनाइयों का तो शमन करती ही है, साथ ही इसके परिणामस्वरूप साधक अपने भीतर, बाहर तथा चारों ओर एक दैवी वातावरण का अनुभव करता है।

एकवर्षीय गायत्री अभियान-साधना की विधि इस प्रकार है-

यह एक संकल्पित साधना है, अतः एक वर्ष में पाँच लाख जप पूरा करने का अभियान किसी भी महीने की शुक्लपक्ष की एकादशी से आरम्भ किया जा सकता है। गायत्री महाशक्ति का आविर्भाव शुक्लपक्ष की दशमी को मध्यरात्रि में हुआ है, इसलिये उसका उपवास पुण्य दूसरे दिन एकादशी को माना जाता है। अभियान आरम्भ करने के लिए यही मुहूर्त सबसे उत्तम है। जिस एकादशी से आरम्भ किया जाये, एक वर्ष बाद उसी एकादशी को समाप्त करना चाहिये।

महीने की दोनों एकादशियों को उपवास करना चाहिये। उपवास में दूध, दही, छाछ, शाक आदि सात्विक पदार्थ लिये जा सकते हैं। जो एक समय भोजन करके काम चला सकें, वे वैसा करते रह सकते हैं। बाल, वृद्ध, गर्भवती या कमजोर प्रकृति के व्यक्ति दो बार भी सात्विक आहार ले सकते हैं। उपवास के दिन पानी कई बार पीना चाहिये।

अभियान- साधना का क्रम इस प्रकार है- (1) नित्यकर्म, स्नान आदि (2) ब्रह्म संध्या- जिसके प्रमुख अंग हैं- पवित्रीकरण, आचमन, रक्षाबंधन, प्राणायाम, न्यास, अधमर्षण, पृथ्वीपूजन, चन्दनधारण, कलशपूजन, दीपपूजन, गुरुवन्दना, सर्वदेव नमस्कार (3) गायत्री- आवाहन, पूजन (4) जप (5) विसर्जन (6) सूर्यार्घ्यदान आदि। यह क्रम नित्य चलना चाहिये, जिन्हें यह ज्ञात न हो, उन्हें इनका विस्तृत विवेचन ‘गायत्री की दैनिक साधना’ नामक पुस्तक में देख लेना चाहिये।

गायत्री की नित्य- नैमित्तिक साधना में न्यूनतम एक माला से लेकर अधिकतम जितना हो सके, उतना जप करने का नियम हैं, किन्तु अभियान-साधना में जप का एक सुनिश्चित क्रम है। इस साधना में साधारण दिनों में प्रतिदिन 11 मालायें जपनी चाहिये। हर महीने की दोनों एकादशियों को 24 मालाएं जपनी चाहिये। वर्ष में तीन संध्यायें होती हैं, उन्हें नवरात्रियाँ कहते हैं। इन नवरात्रियों में 24-24 हजार के तीन अनुष्ठान पूरे करने होते हैं। जैसे प्रतिदिन प्रातःकाल, मध्याह्न, सायंकाल की तीन संध्यायें होती हैं, वैसे ही वर्ष में ऋतु-परिवर्तनों की संधियों में तीन नवरात्रियाँ होती हैं। (1) वर्षा के अन्त और शीत के आरम्भ में आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से लेकर नवमी तक (2) शीत के अन्त और ग्रीष्म के आरम्भ में चैत्र शुक्ल-पक्ष प्रतिपदा से नवमी तक (3) ग्रीष्म के अन्त और वर्षा के आरम्भ में ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक। यह तीन नवरात्रियाँ हैं। दशमी गायत्री जयन्ती को पूर्णाहुति का दिन होने से यह भी नवरात्रियों में जोड़ दिया गया है। इस प्रकार दस दिन की इन संध्याओं में चौबीस माला प्रतिदिन के हिसाब से चौबीस हजार जप हो जाते हैं। इस प्रकार एक वर्ष में पाँच लाख जप पूरा हो जाता है।

जप-संख्या का हिसाब इस प्रकार और भी अच्छी तरह समझ में आ सकता है-

(1) बारह महीने की चौबीस एकादशियों को प्रतिदिन 24 मालाओं के हिसाब से 24x24=576 माला।

(2) नौ-नौ दिन की नवरात्रियों में प्रतिदिन की 24 मालाओं के हिसाब से 27x24=648 माला।

(3) वर्ष के 360 दिनों में से उपरोक्त 27+51=576 दिन काटकर शेष 309 दिनों में 11 माला प्रतिदिन के हिसाब से 3399 माला।

(4) प्रति रविवार को पाँच मालायें अधिक जपनी चाहिये अर्थात् 10 की जगह 15 माला रविवार को जपी जायं। इस प्रकार एक वर्ष में 52x50=260 मालायें।

इस प्रकार कुल मिलाकर- 576+648+3399+260=4883 मालायें हुई। एक माला में 108 दाने होते हैं। इस प्रकार 4883 x 108 =5,27,364 जप हुआ, पाँच लाख सत्ताईस हजार तीन सौ चौंसठ, बीच में किसी कारण जप कम हो पाया हो तो उसकी पूर्ति हेतु अतिरिक्त जप कर लेना ठीक ही है, विशेष रूप से स्त्रियों के लिये। ध्यान रखा जाना चाहिये कि गिनती से अधिक महत्व भावविह्वल होकर जप करने का होता है।

तीनों नवरात्रियों में कामसेवन, पलंग पर सोना, दूसरे व्यक्ति से हजामतें बनवाना, चमड़े का जूता पहनना, मद्य माँस सेवन आदि विशेष रूप से वर्जित है। शेष दिनों में सामान्य व्रत रख जा सकता है, उसमें किसी कठोर तितिक्षा या विशेष तपश्चर्या का प्रतिबन्ध नहीं है।

इस अभियान साधना को पूरा करने की और भी तिथियाँ हैं। पहली विधि तो ऊपर बतायी जा चुकी है। दूसरी विधि में साधारणतया 11 माला प्रतिदिन ओर रविवार या अन्य अवकाश के दिन 24 मालाएं करनी होती हैं। यदि अवकाश के दिन अधिक न करनी हों तो पाँच लाख को 360 दिनों में बराबर विभाजन करने पर प्रायः 14 माला का हिसाब बन जाता है। वर्ष में 5 लाख का जप इसी क्रम में पूरा करना आसान हो जाता है। इसमें अपनी सुविधा का क्रम भी निर्धारित हो सकता है, पर वह चलना नियमित रूप से ही चाहिये। वर्ष पूरा हो जाने पर उसकी पूर्णाहुति का हवन कर लिया जाये। इसमें एक हजार आहुति से कम न हों। महीने में एक बार शुक्लपक्ष की एकादशी को 108 मंत्रों से हवन कर लेना चाहिये। हवन में घर परिवार के सदस्यों से लेकर अन्यान्य व्यक्तियों, साधकों को सम्मिलित कर लेने से वह सुविधापूर्वक सम्पन्न हो जाता है।

अभियान एक प्रकार का लक्ष्यवेध है। इसके लिए अनुभवी, सुयोग्यगुरु या पथप्रदर्शक की नियुक्ति आवश्यक है, जिससे कि बीच-बीच में जो अनुभव हों, उनके सम्बन्ध में परामर्श किया जाता रहे। कई बार जब प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है। तो उसका उपाय अनुभवी मार्गदर्शक से जाना जा सकता है। एकाकी यात्रा की अपेक्षा विश्वस्त पथ-प्रदर्शक की सहायता सदा ही लाभदायक सिद्ध होती है।

नित्यप्रति स्नानादि से निवृत्त होकर, शुद्ध होकर, प्रातःकाल एवं शाम को दोनों समय जप किया जा सकता है। प्रातःकाल उपासना में अधिक समय लगाना चाहिये, इससे संध्या के समय कम समय में जप सम्पन्न हो जाता है। जप के समय मस्तक के मध्य भाग अथवा हृदय में प्रकाश पुँज ज्योतिस्वरूप गायत्री का ध्यान करते रहना चाहिये।

साधारणतया एक घण्टे में दस मालायें जपी जा सकती हैं। अनुष्ठान के दिनों में ढाई घंटे प्रतिदिन और साधारण दिनों में एक घंटा प्रतिदिन उपासना में लगा देना कुछ विशेष कठिन बात नहीं है। सूतक काल, यात्रा में, बीमारी आदि के दिनों में बिना माला के मानसिक जप चालू रखना चाहिये। किसी दिन साधना छूट जाने पर उसकी पूर्ति अगले दिन की जा सकती है।

हवन आदि की कोई असुविधा पड़े तो वह सहयोग के आधार पर पूरी की जा सकती है। किसी साधक की साधना खण्डित न होने देने एवं उसका संकल्प पूरा कराने का सूक्ष्म-संरक्षण शाँतिकुँज की संचालक सत्ता ने संभाल रखा है। इस क्षेत्र में कदम बढ़ाने वालों को समुचित उत्साह, प्रेरणा, पथ-प्रदर्शन तथा सहयोग सुनिश्चित रूप से मिलता है। यह आश्वासन ही नहीं, महाकाल की सत्ता की उद्घोषणा भी है।

गायत्री अभियान की साधना एक वर्ष में पूरी होती है। इस साधना की महानता को देखते हुए इतना समय कुछ अधिक नहीं है। इस तपस्या के लिये जिनके मन में उत्साह है, उन्हें इस मनोवाँछित फल प्रदान करने वाली शुभ साधना का आरम्भ इसी माह से कर देना चाहिये। आगे चलकर माँ भगवती अपने आप संभाल लेती हैं। यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि शुभ आरंभ का परिणाम शुभ ही होता है।


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