एक बौद्धभिक्षु चीन गया। चीन का सम्राट अपनी प्रजा की साथ स्वागत के लिये पहुँचा। सम्राट देखकर हैरान कि जिसकी इतनी प्रशंसा सुनी थी वह तो कुछ पागल-सा दिखाई देता है। एक पादुका पैर में पहने है, एक सिर पर रखे चला हा रहा है। सम्राट से न रहा गया। स्वागत-समारोह के बाद आखिर भिक्षु को हैरानी भरी जिज्ञासावश पूछ ही बैठा। भिक्षु ने कहा- “मुझमें आपमें थोड़ा-बहुत ही अन्तर है। मैंने तो अपनी एक पादुका सिर पर रखकर ही आधी गुलामी स्वीकार की है, किन्तु आप सब भी तो सम्पत्ति के गुलाम हैं, जबकि आपको तो सम्पत्ति का मालिक होना चाहिये था।