यह दुनिया विचित्रताओं से भरी पड़ी हैं यहाँ सबकुछ सामान्य ही सामान्य है, सो बात नहीं, बहुत कुछ असाधारण और अद्भुत भी है, इनसानों को ही लें, तो उनमें भी अनेक ऐसे कारण और वैशिष्ट्य मिल जायेंगे जिसके कारण उन्हें सामान्य की श्रेणी में नहीं, असामान्य के दर्जे में रखना पड़ता है। यह असामान्यता शरीर-रचना, क्रिया या निजी कौशल से संबंधित हो सकती है, इसलिये उन्हें विलक्षण कहना ही उचित होगा।
ऐसा ही एक व्यक्ति जेम्स माँरिस था। न्यूयार्क, अमेरिका का रहने वाला यह आदमी ‘बर्नम एण्ड बेली’ नामक सर्कस में काम करता था। उसके शरीर की त्वचा इतनी लचीली और लचकदार थी कि वह रबड़ की भाँति खिंच जाती थी। छोड़ देने पर पुनः पूर्ववत हो जाती। उसकी इस विशेषता के कारण लोग उसे रबड़ का आदमी कहकर पुकारते थे।
वह एक नाई था और हजामत बनाने का धन्धा करता था। जब उसे अपनी त्वचा की इस विशिष्टता का पता चला तो हर ग्राहक के सामने उसका प्रदर्शन करने लगा। देचाने वाले पहले तो यही समझते कि शायद सभी की चमड़ी ऐसे ही लोचदार होती है, पर जब यह गुण उन्हें अपनी त्वचा में नहीं दिखाई पड़ता तो मोरस के मरतब पर वे दंग रह जाते।
यह बात फैलते -फैलते स्थानीय सर्कस के मालिक पी.टी. बर्नम के कानों तक जा पहुँची, एक दिन वे सच्चाई पता लगाने के लिये वहाँ आये। मारिस ने उनके सामने भी वह प्रदर्शन किया। लोगों को आश्चर्यचकित करने के लिए उन्हें वह अच्छा पात्र लगा और 135 डॉलर साप्ताहिक वेतन पर अपने सर्कस में भर्ती कर लिया।
उसकी त्वचा इतनी खिंचावदार थी सीने की चमड़ी को ललाट तक खींच सकता था और पैर की चमड़ी आठ-दस इंच बाहर तक फैल जाती थी। चिकित्साशास्त्र में इस विशिष्ट दशा को ‘क्यूटिस हाइपरलास्टिका’ कहते हैं इससे शरीर को किसी प्रकार की कोई क्षति नहीं पहुँचती न व्यक्ति को कोई असुविधा होती है।
द्विलैंगिकता निम्न जीवधारियों में एक सामान्य घटना है, पर उच्च जन्तुओं में यह असाधारण बात मानी जाती है। उच्च जीवधारी प्रायः एकलिंगी हुआ करते हैं, किन्तु मनुष्यों में यदा-कदा दोनों लिंग साथ-साथ देखे जाते हैं विश्वभर में ऐसे कितने ही प्रसंग प्रकाश में आये, जिनमें आदमी को द्विलिंगी पाया गया। ऐसे ही एक व्यक्ति की चर्चा ब्रिटिश चिकित्सक फ्रेडरिकड्रिमर ने अपनी पुस्तक ‘वेरी स्पेशल पीपुल’ में की है। बाँबी कार्क नामक वह व्यक्ति लन्दन का रहने वाला था और अर्धनारी-नटेश्वर की कल्पना को सही अर्थों में साकार करता था। उसके शरीर का आधा भाग पुरुषों जैसा था और आधा नारियों जैसा। पुरुष हिस्से में पुरुषोचित सीना था और नारी (स्त्री) भाग में स्तनयुक्त वक्ष। इसके अतिरिक्त उसमें नर-मादा दोनों प्रकार के जननाँग थे। उसने लंदन में स्थान-स्थान पर अपने शरीर का प्रदर्शन किया और धन कमाया। टिकट लेकर ही कोई उसका दर्शन कर सकता था। इसके अलावा पचास सेण्ट अतिरिक्त फीस देकर उसका स्पर्श भी किया जा सकता था। कुछ लोगों ने इसका अनुचित लाभ उठाया उन्होंने स्त्री भाग में थोड़ी ज्यादा ही रुचि दिखाई इससे कार्क का पौरुष आहत हुआ और साथी भाग की बेइज्जती का जवाब जोरदार घूँसा जड़ कर दिया।
इसी प्रकार का एक अन्य द्विलिंगी बिली क्रिस्टीना था। उसके शरीर में भी नर-नारी के दो स्पष्ट हिस्से थे। बिली (पुरुष) की छाती एकदम सपाट थी,जबकि दूसरे भाग में स्थित क्रिस्टीना (स्त्री) का वक्षस्थल नारियों जैसा उभरा हुआ था। बिली वाले कायार्द्ध में दाढ़ी- मूंछें उगा करती थीं, किन्तु क्रिस्टीना वाले अर्द्धांग में होठ और ठुड्डी बाल रहित थे। सिर में बिली वाले हिस्से में बाल पुरुषों जैसे छोटे रखे गये थे, जबकि क्रस्टीना के केश खूब लम्बे थे। पुरुष वाले भाग में लिंग और स्त्री वाले हिस्से में सुविकसित नारी जननाँग था। जगह-जगह उसकी प्रदर्शनी लगायी गयी। लोग अर्द्धनारी-नटेश्वर की भारतीय अवधारणा को मूर्त होते देख दंग रह जाते।
मनुष्यों में यदि द्विलिंगी लोग हुए हैं तो टाँग और बाँहरहित अजूबे इनसान भी। मैथ्यू बुशिंगर ऐसा ही एक आदमी। वह उन्सपीक, जर्मनी का रहने वाला था। टाँगे नहीं होने के कारण देखने में बौना प्रतीत होता था उसके सिर-धड़ की कुल लम्बाई 30 इंच थी। कंधों पर ही हाथ के पंजे जुड़े हुए थे, जिनमें उंगलियाँ तो थी, पर नाखूनरहित। वह शरीर से अपूर्ण और अपंग अवश्य था किन्तु अपना सारा काम स्वयं करता था। इसमें कठिनाई तो होती थी फिर भी किसी कार्य के लिये दूसरे की बाँट नहीं जोहता।
अपने उत्तरार्द्ध जीवन में वह इंग्लैण्ड चला गया। वहाँ पर जॉर्ज प्रथम और ऑक्सफोर्ड के अर्ल ने उसकी काफी सहायता की। अपाहिज होते हुये भी वह प्रतिभाशाली था।उसकी प्रतिभा से संबंधित एक विज्ञापन आज भी ब्रिटिश म्यूजियम के रिकार्ड में सुरक्षित है। विज्ञापन के अनुसार वह सुन्दर-सुन्दर चित्र बना लेता था एवं अपनी दाढ़ी स्वयं बना लेता था। उसने शादी थी की और उसके बच्चे भी हुए। सभी संतानें सामान्य थीं। अन्ततः 58 वर्ष की आयु में कार आइलैंड में उसकी मृत्यु हुई।
कोबले काँफ रूस का रहने वाला था। उसने भी बाँहें और टाँगे नहीं थी। वह सर्कस का कलाकार था, अनेक बार उसने यूरोप के थियेटरों में अपने विकलाँग शरीर के करतब दिखलाये। इन कार्यों वह दायें कंधे से जुड़ी अपने अर्धविकसित बाँह का सहारा लेता। दाँत के माध्यम से कोबेल चित्र बना लेता था और उनसे कलम पकड़ कर थोड़ा बहुत लिख भी लेता था। स्टेज शो में सबसे पहले अपना नाम लिख कर दिखाता और उसे दर्शकों में बाँट देता था। भोजन भी वह उसी अर्द्धांग के सहारे करता। पानी पीना होता तो अपनी आधी बाँह से जल पात्र को पकड़ता और मुँह तक ले जाता। वह आत्म रक्षा के निमित्त पिस्तौल चला सकता था एवं उसमें गोलियाँ भी भर सकता था। आकर्षक कलाबाजियाँ लगाने में उसे निपुणता प्राप्त थी। आनाबिलफर्ट नामक एक स्वस्थ सुन्दर महिला से उसने विवाह किया तथा स्वस्थ सामान्य बच्चों का पिता बना। उसने जीवन के 80 बसन्त देखे।
इन्सान के शरीर में यदि खच्चर का सिर लगा हो तो वह कैसा अजीबोगरीब प्रतीत होगा। ऐसी ही एक महिला ग्रेस मैकडेनियल थी। जेरीहाल्ट मैन ने अपनी पुस्तक फ्रीक शो मैन में इसका विस्तार पूर्वक उल्लेख किया है। वे लिखते हैं कि उसे अचानक देख लेने पर लोग भयभीत हो जाते और अनेक बार तो उसके लोकोत्तर प्राणी होने का भ्रम पाल बैठते। उसका चेहरा माँस की भाँति लाल था और ठुड्डी इतनी विद्रूप तथा बेडौल थी जिसे इन्सानी कदाचित ही कहा जा सकें। जबड़े भी ऐसे जुड़े हुए थे कि बड़ी मुश्किल से उन्हें हिला पाती। उसके दाँत टेढ़े-मेढे एवं नुकीले थे। नाम मोटी लम्बी और भद्दी-सी थी उसे खच्चर की शक्ल प्रदान करने में उसके होठों का बड़ा हाथ था। कुल मिलाकर उसका चेहरा कुरूप तथा डरावना था। इतने पर भी अन्दर से वह अत्यंत शिष्ट तथा शालीन थी।
मैकडेनियर एक सर्कस कम्पनी में काम करती थी। जब मंच पर आती तो उसका चेहरा नकाब से ढका होता। नकाब हटाने ही डर से महिलायें और बच्चे अक्सर चीख पड़ते थें। कुरूपता के बावजूद कई पुरुषों में लिये लिये आकर्षक थी। कईयों से उसे विवाह के प्रस्ताव भी मिले। अन्ततः एक प्रस्ताव उसने स्वीकार कर लिया। वह एक नवयुवक था शादी के बाद उसके एक लड़का हुआ। बड़ा होने पर उसने प्रदर्शनी का भार अपने जिम्मे ले लिया।
मनुष्य बेडौल विकृत और हाथीनुमा हो सकता है। इसका शायद ही किसी को अनुमान हो, पर जॉन मेरिक देखने में ऐसा ही लगता था। वह इतना कुरूप और भयावह था कि यदि अचानक कोई देख लेता तो चीख मारकर बेहोश हो जाता। प्रसिद्ध सर्जन और लंदन के शाही परिवार के चिकित्सक सर फेंडरिक ट्रेवेस ने अपने ग्रंथ दी एलीफेन्ट मैन एट अदर रेमिनिसेन्सेज में इसका सविस्तार वर्णन किया है।
वे लिखते हैं कि मैरीक के बारे में जानकारी इन्हें सर्वप्रथम एक विज्ञापन से मिली। लंदन के जिस अस्पताल में वे कार्यरत थे वहीं सामने एक छोटी सी दुकान थी। जिस पर उसका चित्र और संक्षिप्त उल्लेख था। फेंडरिक ट्रेवेस ने देखा कि दुकान के अन्दर स्टूल पर कम्बल ओढ़े एक व्यक्ति बैठा है। कम्बल हटाने पर उसका जो विभत्स रूप दिखायी पड़ा वैसा उन्होंने जीवन में पहले कभी नहीं देखा था। उसके ललाट पर हड्डी जैसा उभार था और सिर के पीछे कोमल त्वचा का भारीभरकम पिण्ड। जो देखने में ऐसा मालूम पड़ता था। मानो शल्य क्रिया द्वारा अतिरिक्त माँस पिण्ड के रूप में चिपका दिया गया हो। उसकी आकृति गोभी के फूल से बिलकुल मिलती-जुलती थी। सिर के पीछे वाले हिस्से में बिरल और लम्बे बाल लटक रहे थे। उभरे हुए ललाट के कारण उसकी एक आँख उसके नीचे लगभग छुपी हुई थी। इन सबके कारण सिर का सम्पूर्ण व्यास इतना बड़ा था जितना कि किसी नवयुवक की कमर की मोटाई ऊपरी हनु से एक अड्डी बाहर की ओर निकली हुई थी। जिसके कारण उसका ऊपर का होठ बाहर की ओर मुड़ गया था। इससे मुँह में सुराख जैसा प्रतीत होता था। नाक एकदम चपटी थी चेहरा भाव शून्य था पीठ कमर और नितम्ब में जगह-जगह फूलगोभी के शक्ल के मास के विद्रूप लोथड़े लटक रहे थे। दाहिना हाथ काफी बड़ा मोटा और शक्ल रहित था। हथेली और उसके पिछले हिस्से में कोई अन्तर नहीं था। अंगूठा मूली जैसा और अंगुलियां मोटी जड़ों के सदृश्य थीं। दूसरा हाथ एकदम सामान्य था। टाँगें कुरूप एवं आकार रहित थीं। साक्षात मंगल ग्रह से आया प्राणी लगता था।
उसके इस भयानक रूप के कारण इंग्लैंड में उसकी नुमाइश पर रोक लग गयी। हताश होकर उसका मालिक उसे ब्रुसेल्स ले गया पर यहाँ भी उसपर पाबंदी लगा दी गयी। अब मैरी शोमैन के लिये किसी का नहीं रहा। उसने उसे लंदन वापस भेज दिया। यहाँ पुनः उसकी भेंट सर फेंडरिक ट्रेवेस से हुई उन्होंने अस्पताल के एक कमरे में उसके रहने का इंतजाम कर दिया। उस पर खर्च होने वाली राशि की व्यवस्था भी जल्द ही हो गयी। वहाँ के दी टाइम्बस पत्र में एक अपील छापी गयी। जिसमें लोगों से उस असहाय की सहायता करने का अनुरोध था। जॉनमेरिक जीवन के अन्तिम दिनों तक इसी कमरे में बना रहा। जब उसकी मृत्यु हुई तब वह 27 वर्ष का था। मौत का कारण सिर के पीछे लटकता माँसल लोथड़ा था। वह पीठ के बल कभी लेट नहीं पाता था। उस रात उसने इसका प्रयास किया। ऐसा करते समय असावधान रहने के कारण अचानक उसका वजनी सिर पीछे लुढ़क गया और दम घुटने के कारण उसकी यह लीला समाप्त हो गयी। वह लेस्टर इंग्लैण्ड का रहने वाला था।
इस संसार यदि सब कुछ सहज सामान्य होता तो जल्द ही यह दुनिया यहाँ के निवासियों के लिये नीरस और उबाऊ बन जाती। ऐसी परिस्थिति उत्पन्न न हो स्रष्टा ने इसका पूरा-पूरा ध्यान रखा है। सम्पूर्ण ब्रह्मांड में ऐसी अगणित रचनायें मिल जायेंगी। जिन्हें देख कर यह ही कहा जा सकता कि ये अपनी-अपनी जाति और वर्ग के सामान्य सिद्धान्त के हिसाब से बनी है। सर्व मान्य नियम के उपेक्षा करने वाले बहुत से जीवजन्तु इस जगत में विद्यमान हैं। मनुष्य भी इसका अपवाद नहीं। शरीर रचना संबंधी कितने ही व्यतिक्रम इसमें देखे जा सकते हैं। यहीं इन्हें अजूबे की श्रेणी प्रदान करता है। हम उन्हें देखें और इस बात पर विचार करें कि सर्वथा असहाय और अवाँछनीय शारीरिक स्थिति में भी एकदम सामान्य रहते हुए वे इस विविधता से भरी सृष्टि में किस प्रकार जीवन के दिन पूरे करते हैं।