मन का मैल (Kahani)

March 1998

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रामानुजाचार्य नदी स्नान करने जाते समय ब्राह्मण के कंधे का सहारा लेते और स्नान करके लौटते समय शूद्र के कंधे पर हाथ रखकर लौटते। यह देख कुछ कट्टरपंथियों ने आश्चर्य व्यक्त किया कि भगवन् स्नान का क्या महत्व रहा? आचार्य मुस्कुराए। उन्होंने कहा-स्नान करने से तो मात्र मेरी देह पवित्र होती है, किंतु मन का मैल-अहंकार तो ज्यों का त्यों शेष रह जाता है। मैं शूद्र का स्पर्श करके उसी मन की मलीनता को स्वच्छ करता हूँ।


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