आशा का दीपक जलाये रखें

May 1997

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सर्वथा अनजान इस दुनिया में मानव पूरी तरह से साधनहीन होकर आता है। जन्म के समय न तो उसके पास सबल शरीर होता है और न प्रखर बुद्धि । बस अपने छोटे-से बाल हृदय में आशा एवं आत्म-विश्वास की एक टिमटिमाती ज्योति को लेकर इस संसार में प्रवेश करता है। इसी के प्रकाश में वह जीवन की राहें खोजना शुरू करता है। आशा के आलोक में अपने प्रयास करते हुए दुनिया के बड़ी से बड़ी श्रेष्ठताओं और विभूतियों का मालिक बन जाता है। जनम के समय कुछ न लेकर आया शिशु बड़ा होकर जीवन में आने वाले बीहड़ जंगलों, कठिन राहों, अटपटी भूल-भुलैयों एवं कुटिल चक्रव्यूहों के बीच अपना मार्ग खोज लेता है। उसके हृदय में दिपदपाती आशा की लौ उसका पथ प्रदर्शन करती रहती है। उसके श्रेष्ठ कर्मों का चमत्कार देखकर लोग दाँतों तले अँगुली दबा लेते हैं।

आशा की शीतल किरण ही बधिर एवं अशान्त व्यक्तियों के चित्त को सांत्वना देती है। उसके जीवन में छाए अन्धकार को दूर करके उसे नवविश्वास एवं संभावनाएं प्रदान किया करती है। आशा की अलौकिक ज्योति में संजीवनी तत्व विद्यमान रहते हैं। मनुष्य के मन में उत्पन्न हुई आशा की एक किरण उसके अन्तःकरण में छाए हुए अन्धकार के जंजाल को छिन्न-भिन्न कर देती है और उसमें साहस, उल्लास एवं नवस्फूर्ति पैदा करती है। आशा ब्रह्मशक्ति है, जो व्यक्ति को संघर्षों में भी आगे बढ़ जाने की प्रेरणाएँ एवं सामर्थ्य प्रदान करती है। आशा मानव जीवन का वरदान है और निराशा अभिशाप । इस सत्य को ध्यान में रखते हुए विवेकवान व्यक्ति आशा को अपने जीवन की सहचरी बनाते हैं।, जो प्रतिक्षण उन्हें कुतुबनुमा की तरह आगे बढ़ने की दिशा बताती रहती है। यही कारण है कि आशावादी

व्यक्ति ही जीवन का सही सदुपयोग कर पाते हैं। बहुतेरे लोग, प्रतिकूल परिस्थितियों में घबराकर, चिन्तित, परेशान होकर आशा का सम्बल छोड़ देते हैं और निराशा के घने अँधेरे में फँसकर अपने जीवन को चौपट कर लेते हैं। किंतु मनस्वी, बुद्धिमान एवं विवेकशील व्यक्ति ऐसी विषम परिस्थितियों में भी हार मानने के बजाय, जीत को लक्ष्य करके अधिक सक्रिय साहस के साथ आगे बढ़ जाते हैं। यह निराशा पर आशा की विजय है। आशावान् व्यक्ति निराशा को कभी पास फटकने नहीं देते। वे कभी भी जीवन से हार नहीं मानते और संघर्षों से मुकाबला करने के लिए हर पल तैयार रहते हैं।

जब व्यक्ति निराशा से आक्रांत होता है, निष्क्रियता उस पर आक्रमण करती है । उसका मन विषाक्त होता है और जीवनी क्षीण होती है। ण्से में जल मनुष्य की चित्तवृत्ति दूषित हो जाती है, तो वह अपने आदर्शों। , श्रेष्ठ निश्चयों एवं सत्कर्मों। के संकल्प को भी नष्ट कर डालती है। जिन श्रेष्ठ विचारणाओं का किला मनुष्य अपने प्रयत्न-अनगिनत कोशिशों के बाद खड़ा करता है, निराशा का एक ही ध्वंसात्मक विचार उसे अस्त-व्यस्त करके भूमिसात् कर देता है।

यह सभी जानते हैं। कि किसी चीज का निर्माण करना बड़ा मुश्किल है, लेकिन उसका विनाश-विध्वंस काफी सरलता से हो जाता है। ठीक इसी तरह विश्वास और आशा को बनाए रखना कठिन है। और निराश होना आसान है। यदि लोग यह जान पाते कि दूषित भाव और बुरे विचार उनके जीवन के लिए हानिकारक हैं, इन शत्रुओं को मन में खतरनाक है। तो शायद मनुष्य इस प्रकार उद्विग्न और असफल न होता। मनुष्य शक्ति का भण्डार है। उसे महान-ऊँचे तथा प्रशंसनीय काम करने चाहिए, न कि तुच्छ-नीच एवं निन्दनीय। इस मानवीय सामर्थ्य एवं गरिमा का अहसास की झिलमिलाती ज्योति में ही होता है।

निराशा का अहसास किसी भी स्थिति में खतरनाक है रोगी को जब निराशा आकर घेर लेती है तो वह ऐसा विश्वास करने लगता है कि उसकी स्थिति दिन पर दिन गिरती जा रही है। क्योंकि निराशा का कीटाणु उसे अन्दर ही अन्दर समाप्त करता जाता है। परिणामतः वह अपनी मौत की ओर धीरे-धीरे सरकने लगता है।

चट्टान की तरह सख्त इनसान को भी निराशा का भाव पलभर में चकनाचूर कर देता है। इससे बचे रहना तभी सम्भव है, जब हमारी आशा की ज्योति विषमताओं की आँधियों में भी जलती रहे। जीवन को उन्नतिशील बनाए रखने के लिए सदैव सुखद कल्पनाओं से अपने मन को आच्छादित रखना चाहिए।

पतझड़ के बाद बसन्त दुःख के बाद सुख और रात्रि के बाद दिन यह तो सृष्टि का नियम हैं इस आशा और विश्वास को लेकर आगे बढ़ना चाहिए। परिस्थितियों पर विचार किए बिना निराश होने

को मूर्खता ही कहा जाएगा, क्योंकि संसार में आपत्तियों का आना स्वाभाविक है, लेकिन सफलता उसी को मिलती है, जो आपत्तियों से न तो घबराता है, न निराश होता है और न ही आत्म-विश्वास को खोता है। संसार सफलता-असफलता दोनों के ताने-बाने से बुना है। यदि हम असफलताओं से हिम्मत हारकर, निराश होकर बैठ गए तो संसार की सारी सक्रियता नष्ट हो जाएगी।

हमारा जीवन रूपी पुष्प हमेशा खिला हुआ रहे, कभी मुरझाने न पाए, इसके लिए निराशा एवं निरुत्साह को पास नहीं फटकने देना चाहिए। ये तो तुषारापात की तरह है। , जिनसे न केवल जीवन पुष्प मुरझाता है, बल्कि समूची जीवन-ऊर्जा ही ठण्डी पड़ जाती है । सौंदर्य एवं उल्लास की अक्षुण्य बनाए रखने के लिए जरूरी है कि हमारे हृदय में आशा का दीपक सदा-सर्वदा पूरी प्रखरता के साथ जलता रहे, लेकिन यह तभी सम्भव है, जब हम अपने अंतःकरण में श्रेष्ठ, उच्च एवं दिव्य विचारों का घृत अनवरत डालते रहे।


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