जिज्ञासाएँ आपकी-समाधान हमारे

May 1997

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

प्रश्न:- आप लोग नारा देते हैं कि-”हम बदलेंगे-युग बदलेगा” किंतु आसपास की परिस्थितियों को, वातावरण को बदले बिना क्या हम बदल सकते हैं ? ऐसे युग बदलेगा किस तरह माना जाय ?

उत्तर- यह सत्य है कि परिस्थितियाँ प्रतिकूल है एवं वातावरण विषाक्त है। किन्तु परिस्थितियों को बदलकर व्यक्ति की मनःस्थिति को बदलने की दिशा में हुए अनेकानेक प्रयोग अब तक असफल ही सिद्ध हुए है। चाहें वह पूँजीवाद-प्रत्यक्षवादी भौतिकवाद द्वारा सुख-सुविधाओं के साधनों का समुच्चय एकत्र करना हो अथवा साम्यवाद द्वारा व्यक्ति को समान अधिकारों को दिये जाने का वादा। दोनों ही स्थितियों में व्यक्ति के मानस के परिवर्तनों, नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठापना की दिशा में कोई योगदान नहीं मिला है। साम्यवाद का किला ढह चुका है एवं भोगवाद मानसिकता तनाव से ग्रसित मानव समुदाय के समक्ष तनाव से ग्रसित मानस समुदाय के समक्ष अपनी अंतिम साँसें गिर रहा है। स्वयं से शुभारम्भ कर परिवार निर्माण-परिवार से समाज व समाज से राष्ट्र का नवनिर्माण तथा विश्व का निर्माण अथवा नवनिर्माण अथवा सतयुग का आगमन ही एक ऐसी प्रक्रिया है , जो अध्यात्मवाद के मूल्यों पर आधारित एक सुनिश्चित भवितव्यता है। मनः स्थिति से परिस्थिति का निर्माण ही अध्यात्म का मूल है, जबकि परिस्थिति से मनः स्थिति गढ़ने या बनाने की प्रक्रिया पूँजीवाद, प्रत्यक्षवाद या आधुनिक विज्ञान का दाता है। हमें वही नारा देना चाहिए, जो हमारे नियंत्रण में हों हम अपने आपको बदल ही सकते हैं। हर धर्मग्रन्थ इसी तथ्य का प्रतिपादन करते आए है। आज है। आज की संक्रान्ति वेला में जब हम इक्कीसवीं सदी के द्वार पर खड़े हैं, पूज्य गुरुदेव द्वारा दिया गया यह नारा निश्चित ही सबके लिए एक प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।

प्रश्न:- यह माना कि गायत्री मंत्र सर्वश्रेष्ठ है, किन्तु इस मंत्र के जाप से ही क्या हमारी सभी समस्याएँ हल हो जाएँगी? गायत्री मंत्र तो युगों से गायत्री परिवार बनाने का क्या औचित्य है ?

उत्तर:- गायत्री मंत्र सद्बुद्धि की प्रार्थना का मंत्र है। ऐसे अनेकानेक मंत्र न केवल हिन्दू धर्म के बल्कि अन्यान्य संप्रदाय के ग्रन्थों में भी देखे जा सकते हैं। किंतु इस मंत्र की छन्द रूप में जो संरचना है वह अति विशिष्ट है। एक समग्र धर्मशास्त्र इस छोटे से मंत्र में समाया हुआ है। इसका उच्चारण ऐसे कम्पन वातावरण में पैदा करता है जो समधर्मी श्रेष्ठ विचारों को एकत्र कर एक विचार-मण्डल उच्चारणकर्त्ता अथवा समूह के चारों ओर विनिर्मित कर देते हैं । शरीर में विद्यमान ग्रन्थियों, चक्र उपत्यिकाओं पर भी इसके विशिष्ट प्रीव पड़ते हैं एवं इससे अन्दर के प्रसुप्त पड़ते हैं एवं इससे अन्दर के प्रसुप्त केन्द्र जाग्रति की स्थिति में आ जाते हैं। इस मंत्र के मात्र जप से नहीं बल्कि भावविह्वल होकर अन्तर्भाव से की गयी सद्बुद्धि की प्रार्थना से वह प्राणशक्ति इसमें आ जाती है जो ‘गय’ अर्थात् प्राणों के ‘त्र’ अर्थात् त्राण-रक्षा करने के इसके अर्थ कामूल है। जप के साथ जब ध्यान किया जाता है, तो गायत्री मंत्र अत्यधिक शक्तिशाली मिसाइल बनकर सूक्ष्म जगत के परिशोधन की प्रक्रिया को सम्पन्न कर अनुकूलता पैदा करने की परिस्थितियां बना देता है। मंत्र जाप, उच्चारण , गायन से सूक्ष्म पर्यावरण के संशोधन एवं समूह मन के जागरण की प्रक्रिया जिस प्रकार सम्पन्न होती है, वही इसकी सभी समस्याओं को हल कर पाने, दुश्चिंतन को सद् चिंतन में बदल सकने के मूल में छिपा कारण माना जा सकता है।

गायत्री परिवार सद् चिन्तन को बढ़ावा देने वाले व्यक्तियों के समूह का नाम है, किसी संप्रदाय का नहीं। इसमें सभी मत, पंथ , जाति लिंग के व्यक्ति हैं एवं आज के कलियुग के चमत्कार में मात्र सज्जनों के संगतिकरण एकत्रीकरण के लिए इसकी स्थापना युगऋषि द्वारा अनिवार्य मानकर की गयी। यह परिवार नए सिरे से स्थापित नहीं है। पूर्वजन्मों की संचित सुसंस्कारों आत्माओं का संगठन मात्र है, जो नित-निरन्तर बढ़ता ही चला जा रहा हैं प्रश्न पूछने वाले सज्जन एवं वे सभी जो अभी मात्र पत्रिका के पाठक है-गायत्री परिवार के सदस्य बनने हेतु आमंत्रित है, जिसकी कोई शर्त व सौदा नहीं है। एक ही अनुबन्ध है-श्रेष्ठता से जुड़ने का, जो निश्चित ही घाटे का सौदा नहीं है।

प्रश्न:- आपके आंदोलन में ब्राह्मणवादी कर्मकाण्डों का बाहुल्य है। फिर अन्तर कहाँ हैं ?

उत्तर:- ‘ब्राह्मणवाद’ शब्द बड़ा ही ‘मिसनाँमर ‘ है। यह कोई वाद नहीं अपितु जीवन जीने की पद्धति है। कर्मकाण्ड शिक्षण के निमित्त मात्र होते हैं, सब कुछ नहीं होते। कर्मकाण्ड ब्राह्मणवादी होते हैं, यह कहना मिथ्या है। ब्राह्मणत्व अर्जित करने हेतु योगी एवं तपस्वी दोनों ही बनना पड़ता है। ब्राह्मणत्व के जागरण का अर्थ है-करुणा-संवेदना का जागरण। अन्दर से औरों के प्रति सदाशयता जाग उठना यदि ऐसा हो जाय तो मानना चाहिए कि अन्दर का भटका देवता सही दिशा पा गया। कर्मकाण्ड जब होठों से उच्चारित मात्र किए जाते हैं, अंतः की संवेदना से अनुप्राणित नहीं होते, वे प्रीवोत्पादक भी नहीं बन पाते तथा न उच्चारणकर्त्ता के, न कर्मकाण्ड करने वाले के जीवन में कोई परिवर्तन ही ला पाते हैं। गायत्री परिवार ने धर्मतंत्र से लोकशिक्षण की प्रक्रिया को अति सरल सूत्र पद्धति ,द्वारा जन-जन तक पहुँचाया मात्र नहीं अपितु, लाखों व्यक्तियों को बदल पाने में सफलता प्राप्त की है। यही इस आंदोलन की सफलता , लोकप्रियता की मूल मंत्र है। ब्राह्मणत्व एवं सार्थक कर्मकाण्ड के बीच समन्वय स्थापित कर धर्म में प्राण डाल कर जो कार्य इस संस्था द्वारा किया गया है, वहीं औरों की प्रक्रिया से इसकी भिन्नता स्थापित करता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118