‘विकृति संवत्सर’ और महाकाल के बदलते तेवर

May 1997

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जैसे-जैसे संधिवेला की घड़ियाँ आगे बढ़ती चली जा रही है, परिवर्तन का समय समीप आ रहा है, महाकाल के तेवर बदले नजर आ रहे है। हैली-बाप्प धूमकेतु के आगमन-प्राकट्य के साथ-साथ सौर ज्वालाओं की प्रखरता बढ़ती देखी जा सकती है एवं सारी धरती पर उसके परिणाम विभिन्न रूपों में देखे जा सकते हैं। पिछले दिनों 13-14 अप्रैल को नासा के सोहो स्पेस क्राफ्ट ने सौर लपटों की तीव्रता को देखा जो 24 लाख किलोमीटर प्रतिघण्टे की चाल से धरती की और सूर्यदेवता द्वारा फेंकी गयी। पिछली बार ये 1989 में देखी गयी थीं, अब इनके कारण कयूबेक कनाडा का एक पूरा पॉवरग्रिड प्रायः चौबीस घण्टों के लिए ठप्प पड़ा रहा। वैज्ञानिकों का कहना है। कि इनसे पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र सहित मानवी चुम्बकत्व पर भी गहरा प्रभाव पड़ने की, अनेकानेक दैवी विपत्तियाँ आने की आशंका है, क्योंकि इनकी संख्या आने वालों दिनों में बढ़नी ही है, घटने वाली नहीं। वे कहते हैं न केवल सौर-ज्वालाओं, सौर कलंकों की संख्या बढ़ेगी, इनके बीच की अवधि भी क्रमशः कम होती चली जाएगी एवं मनुष्य मात्र को इनसे उत्पन्न चुम्बकीय आँधियों से प्रभावित होना पड़ सकता है।

क्या कारण है कि व्यापक स्तर पर राजनैतिक उथल-पुथल से लेकर अराजकता, हिंसा पिछले दिनों एकदम तेजी से बढ़ती देखी जा रहीं है। ज्योतिर्विज्ञानियों ने अपने ढंग से इसका विश्लेषण कर कहा है कि जैसे-जैसे वह परिवर्तन वेला समीप आ रही है, पूरी मानवजाति को ग्रहों की युति के कारण प्रलयंकर कष्ट झेलने पड़ सकते हैं। वि. संवत् 2054 से अभी-अभी माह की 8 अप्रैल , 1997 से आरम्भ हुआ है एवं 28 मार्च 1998 तक चलेगा, विकृति संवत्सर’ कहा गया है। यह केवल संकटों की शुरुआत मात्र है। अभी आने वाले तीन से लेकर पाँच वर्ष तक हम सभी को बहुत कुछ सहन करने के लिए स्वयं को तैयार कर लेना चाहिए।

इस विकृति संवत्सर का राजा मंगल एवं मंत्री सूर्य बताया गया है। ऐसी युति होने पा सभी पदार्थ विकृति को प्राप्त होते हैं एवं प्रकृति की मार भिन्न-भिन्न प्रकार के रोगों के रूप में मनुष्य को खानी पड़ सकती है, ऐसा ज्योतिर्विदों का मत है। अनेकानेक स्थानों पर भयंकर अग्निकाण्ड, विस्फोटों द्वारा प्राणियों की राजसत्ता के लिए परस्पर कलह, पूरे राष्ट्र ही नहीं, विश्व के कोने-कोने में विग्रह इस वर्ष का प्रतिफल बताया गया है। सूर्य एवं मंगल की विशिष्ट भूमिका के साथ-साथ शनिग्रह भी इन कुछ वर्षों में बड़ी-वक्री स्थिति भी कुछ ऐसी है कि आने वाले दिनों में सम्मिलित प्रभाव प्रायः समग्र जनसमुदाय के लिए अशुभ ही है।

सम्भव है कि महाकाल के बदलते तेवर जो मानवी चिंतन में घुसी विकृतियों व न सुधरने की स्थिति में और भी उग्र होते चले जा रहे है, इस वर्ष कुछ विशिष्ट दण्ड ही समूची धरित्री को देने में मुख्य भूमिका निभाएँ। प्रकृति को स्वाभाविक अवस्था विकृति संवत्सर में बढ़ते पापाचार के साथ-साथ स्वतः बिगड़ने लगती है। ऐसे में वर्षा कम होने एवं अकाल की परिस्थितियोँ बनने तक की सम्भावनाएँ प्रबल होने लगती है। पर्याप्त उत्पादन व अन्न संग्रह के बावजूद महंगाई बढ़ते चले जाने ऐसे दिनों में पूरे विश्व में देखा जा सकता है। बड़े-बड़े राजनेताओं में परस्पर ईर्ष्या-द्वेषगत लड़ाइयाँ, सभी विभागों की कार्य कुशलता में कमी आना, विदेशी कर्जे बढ़ते चले जाना, घोटालों की संख्या में और भी वृद्धि होते चले जाना एवं विश्व में कहीं भी कभी भी अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के बिगड़ते चले जाने के कारण विश्वयुद्ध जैसी स्थिति का ऐसे उत्पातों का खतरा अब और बढ़ गया है।

सारे भारत व सारे विश्व में आँधियों -बवंडरों, ओलावृष्टि, असमय का हिमपात आने वाले कुछ माहों में देखा जा सकता है। सूर्य के आगे शुक्रग्रह का सायंकाल पश्चिम में दिखाई देना भी आने वाले एक डेढ़ माह में अनेकानेक विपत्तियों का सूचक है। कहीं मात्र धूलभरी आँधियों और वर्षा का न होना ओर कहीं अत्यधिक वर्षा व तूफान से बाढ़ का आना, भूकम्प, चक्रवातों की संख्या में वृद्धि भी अगले दिनों ही विकृति संवत्सर में देखी जा सकती है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर रूस, चीन, जापान, अमेरिका, तुर्की, लेबनान, श्रीलंका, सउदी अरब, इजराइल, पाकिस्तान आदि देशों में आँतरिक कलह, कहीं विभाजन तो कहीं हिंसक सत्ता परिवर्तन के योग देखे जा सकते हैं।

यह कुछ भयभीत करने एवं सभी को अकर्मण्य बनाने के लिए नहीं लिखा जा रहा। ग्रह-नक्षत्रों की युतियाँ समय विशेष के अनुसार बनती है एवं यह भारतीय ज्योतिर्विज्ञान की ही विशेषता है कि क्या-क्या प्रतिफल सम्भावित है एवं कैसे इनसे बचा जा सकता है, ये सब सावधानियाँ हमारे ग्रन्थों में, महापुरुष की, वाणियों में वर्णित है। ‘विकृति संवत्सर’ उनके लिए जो खराब है जिनका चिंतन विकृति एवं आचरण भ्रष्ट है, किंतु उन सभी के लिए लिए शुभ है जो आध्यात्मिक पुरुषार्थ में, सामूहिक साधनाएँ समूह मन के जागरण हेतु किये जा रहे पुरुषार्थों में एवं सविता-देवता बृहस्पति की उपासना में तन्मय बने रह, अपने लौकिक पुरुषार्थ में कोई कमी नहीं आने देते । यह समस्त विक्रमी संवत्सर हमें प्रेरित करने आया है कि यदि हम अशुभ से बचना चाहते हैं, तो गायत्री उपासना करने वालों की संख्या में न केवल वृद्धि करें, युगसंधि महापुरश्चरण में भागीदारी कर देवत्व को संगठित करने का भी प्रयास करें। श्रुति कहती है कि दैव-दैव कहना मात्र आलसी-प्रमादियों को शोभा देता है जो ब्रह्ममुहूर्त में जागकर औरों को भी सारे राष्ट्र को विश्व समुदाय को जाग्रत बनाए रखने का पुरुषार्थ करते हैं, इनके लिए ‘विकृति संवत्सर‘ के प्रतिफल शुभ भी बन सकते हैं।

जिस तेजी से अनाचार, पापाचार बढ़ रहा है, भगवान महाकाल की युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया अपनी तीव्रता का दौर बढ़ाती ही चली जा रही है। समझदारों को इस स्थिति को देखना एवं औरों में भी विवेक जाग्रत करते रहने की समझदारी पैदा करने का युग धर्म निभाना चाहिए। निश्चित ही परिवर्तन की वेला आ पहुँची है। संहार तो होना ही है, किंतु सृजन सुनिश्चित है। क्षुद्र नास्तिकों को भी अब आस्तिकता का सही अर्थों में अवलम्बन लेना ही पड़ेगा, इस वर्ष महाकाल यह सुनिश्चित करा रहा है।


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