स्वामी रामतीर्थ से किसी जिज्ञासु ने प्रश्न किया कि आपको ईश्वर पर विश्वास है ? स्वामी रामतीर्थ बोले-एकदम नहीं। इतना सुनते ही जिज्ञासु हैरान होकर उनका मुँह ताकता रह गया। क्योंकि जो व्यक्ति केवल ईश्वर की महिमा का ही गुणगान करता है, उसे ही ईश्वर पर विश्वास नहीं। यह कैसी विडम्बना ?
स्वामी जी जिज्ञासु के मन की बात भाँप गए और बोले-देखो भाई विश्वास तो उसके ऊपर किया जाता है, जहाँ दूसरे का भाव हो या अजनबीपन की भावना हो। जिसे मैं स्वयं जानता हूँ, जिसके प्रेम में मैं आबद्ध हूँ, जिसके साथ मेरी एकात्मता है, उसके साथ विश्वास-विश्वास का प्रश्न कैसा ? मैं तो उसे करता हूँ। सचमुच प्रेम, विश्वास से बहुत ऊँचे दर्जे का तत्व है। इसमें विश्वास अपने आप ही समा जाता है।