इक्कीसवीं सदी की दहलीज पर ला चुकी है, सूचना क्रान्ति हम सबको

May 1997

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आज सारा संसार एक छाते के नीचे आ गया है, जिसे ‘ग्लोबल अम्ब्रेला’ नाम दिया गया है। वैज्ञानिक आविष्कारों ने सवा सौ वर्ष से भी कम समय में ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि मीलों की दूरी नहीं रहीं। ‘इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी‘ सूचना तकनीक के क्षेत्र में हुई क्रान्ति ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्‘ का वह स्वरूप सामने लाकर खड़ा कर दिया है, जिसकी किसी को कोई कल्पना भी नहीं थी। विश्व के सात समुद्रों को दूरी अब कोई दूरी नहीं रही। अब आप चाहे जिससे, जब चाहे न केवल बात कर सकते हैं, अपने कम्प्यूटर पर उसे पत्र भेजकर तुरन्त उससे जवाब भी माँग सकते हैं। विज्ञान कितना शक्तिशाली है, कितनी सामर्थ्य उसमें है, यह उसका नमूना मात्र है। आज की स्थिति में हम किस प्रकार पहुँचे, सका एक समयावधि क्रम से विवरण जान लेना ठीक रहेगा, ताकि हम भविष्य में जब इक्कीसवीं सदी में प्रवेश योजना बना सकें।

टेलीग्राफ कोड एवं टेलीग्राफ यंत्र का आविष्कार क्रमशः सैमुअल मोर्स द्वारा 1837 में तथा एम. लैमण्ड (फ्राँस) द्वारा 1787 में हुआ। लेमण्ड ने अपना वकिंग मॉडल जिसके माध्यम से संदेश एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजे जा सकें, 1787 में ही पेरिस की एक प्रदर्शन में सबको पहली बार दिखाए थे। बाद में अमेरिका के बी. पी. मोर्स द्वारा 1837 में टेलीग्राफ कोड, जिसे आज ‘मोर्स की‘ द्वारा प्रेषित किया जाता है, आविष्कार के रूप में अपने सहयोगी अलफ्रेड बेल के साथ प्रस्तुत किया। टेलीफोन सैद्धान्तिक यप से 1849 में पहली बार संदेश बातचीत के माध्यम से संप्रेषण के रूप में एण्टीनियोक्यूरी (इटली) द्वारा प्रस्तुत किया गया, परन्तु इसका व्यावहारिक स्वरूप एलेक्जेण्डर ग्राहमबेल द्वारा यंत्र के रूप में बातचीत प्रत्यक्ष करवाकर 1876 में बोस्टन में सबके रखा गया। विश्व का पहला टेलीफोन एक्सचेंज बोस्टन (मैसाचुसेट्स) अमेरिका में 1878 में विनिर्मित किया गया। 1889 में आटोमेटिक टेलीफोन एक्सचेंज अलफ्रेड स्ट्रोगर द्वारा विनिर्मित कर सबके समक्ष रखा गया है। ‘टेलीफोन’ एक ग्रीक शब्द है। इसका अर्थ है दूर-ध्वनि जिसे बाद में संशोधित रूप में ‘दूरभाष’ के नाम से प्रस्तुत किया गया।

साथ ही साथ रेडियो, टेलीविजन एवं वीडियो के क्षेत्र में भी एक क्रान्ति चल रही थी, जिसने विश्व की दूरी को और निकटता में बदल दिया। गुगलीएमो मारकोनी ने 1901 में मोर्स कोड के माध्यम से रेडियो संदेश अटलाण्टिक महासागर के पार भेजकर (कार्नवेल से न्यूफाउण्डलैण्ड) रेडियो तरंगों के सम्प्रेषणों के विज्ञान को व्यवहार में प्रमाणित कर एक क्रान्तिकारी शुरुआत की। 922 में ब्रिटिश ब्रोडकास्टिंग कारपोरेशन (बी. बी. सी.) ने अपनी प्रसारण की शुरुआत की जो समुद्र पार जाने लगी। 1925 में एक स्काँटिश वैज्ञानिक लोगी बायर्ड ने पहली बार किसी व्यक्ति चेहरा रेडियो तरंगों द्वारा सम्प्रेषित कर टेलीविजन की आधारशिला रखी। 1945 में आर्थर सी. क्लर्क के लिखे उपन्यास ‘वायरलैस वर्ल्ड’ में सम्भावना व्यक्त की गयी कि कैसे धरती पर स्थिर उपग्रह से रेडियो व टी.वी. सिगनल्स भेजे जा सकते हैं, जो बाद में 1964 में एक हकीकत में बदल गया। बाद में यही अंतरिक्षीय उपग्रहों द्वारा संचालित होने लगा। यह तब हुआ जब नासा ने इन्टेलसेट-1 उपग्रह अंतरिक्ष में भेजा। इससे पूर्व 1958 में सर्वप्रथम वीडियो रिकार्डिंग प्रक्रिया विकसित हो चुकी थी। 190 में वीडियो होत सिस्टम ने सचमुच एक विलक्षण क्रान्ति पैदा कर दी एवं 1974 में ‘सीफैक्स’ सेवा के द्वारा जब घर बैठे लोगों तक वर्गीकृत सूचनाएँ पहुँचाने लगीं, विज्ञान की प्रभाव क्षमता पर सभी हतप्रभ थे।

1970 से 1980 की दशाब्दी को वीडियो टेलीफोन सेवाओं की दिशा में क्रांतिकारी माना जाता है चौबीस सौ अक्षर प्रति सेकेण्ड भेजने की क्षमता इस सेवा में विकसित की गयी थी। 1980 में अब तक के बीच कम्प्यूटर क्षेत्र में हुई इलेक्ट्रानिक क्रान्ति, फैक्स सेवाओं का तथा सेल्युलर फोन सेवाओं का विकास इस तेजी से हुआ है कि सारी धरित्री लगता है एक ‘साइबर इन्फार्मेशन हाइवे’ पर सफर कर रही है।

मूलतः आणविक विस्फोटों के विश्लेषण, मिसाइल्स के निर्माण हेतु आवश्यक गणनाओं एवं वैज्ञानिक शोधों के लिए विकसित किये गये कम्प्यूटर नामक यंत्र से सूचना, शिक्षा, प्रसारण एवं प्रेस प्रकाशन के क्षेत्र में इतनी तेजी से गति आएगी, यह किसी ने भी तब नहीं सोचा था, जब 1943 में प्रोग्रामबेल इलेक्ट्रानिक के रूप में प्रो. मैक्सन्यूमैन न इनकी खाज की थी। आश्चर्य की बात है कि कम्प्यूटर की भाषा का आधार 1666 ई. में विल्हेम लिबनीज द्वारा आविष्कृत बाइनरी डिजिटल भाषा बनी। तब किसी ने कम्प्यूटर के बारे में सोचा भी नहीं था। कंप्यूटर के बारे में सोचा भी नहीं था। कम्प्यूटर के इलेक्ट्रानिक सर्किट 1952 में बनाए तेजी से विकास होते-होते इनका छोटा स्वरूप माइक्रो कम्प्यूटर के रूप सामने आया । इससे पूर्व के कम्प्यूटर बड़े भारी-भरकम एक फैक्टरी की मशीनों के रूप में देखते थे।

1989 में आई.बी.एम. पीसी / एक्स टी के साथ ही कंप्यूटर का विकास आरम्भ हुआ एवं विण्डोज के 1984-1985 में आगमन के साथ ही एक ऐसी यात्रा आरम्भ हो गयी जो विण्डोज 15, मोडम एवं इलेक्ट्रॉनिक मेल (डाक) तक आ पहुँची है। कंप्यूटर अब थिंक पैड के रूप में एक छोटे रजिस्टर के रूप में, मात्र 3-4 पौण्ड वजन के यात्रा में ले जाए जाने लगे है एवं जहाँ चाहे जैसा इनका उपयोग किया जा सकता है, अब नेटवर्किंग उपग्रहों के माध्यम से हो जाने के बाद एक ऐसा सुपरततीकी राजमार्ग तैयार हो गया है।, जिस पर आप जब चाहें जैसे चाहें सूचनाएँ भिजवा सकते है-मँगवा सकते हैं। इन्टरनेट ने वस्तुतः एक विलक्षण क्रांति पैदा कर दी है। सारे आँकड़े पूरी पाठ्यपुस्तक, संगीत की पूरी गीतमाला से लेकर विभिन्न भाषाओं की वर्णमालाएँ अब तक ‘फ्लापी’ या सी डी , (कॉम्पेक्ट डिस्क) में कैद कर कभी भी, कहीं भी भू-उपग्रहों के माध्यम से मात्र कुछ मिनटों में उधर से उधर भेजी जा सकती है।

लगभग सात वर्ष पहले जहाँ इसका प्रयोग मात्र 500 व्यक्ति सारे विश्व में कर रहे थे, वहाँ अब प्रायः 6 से 7 करोड़ व्यक्ति इसका नित्य उपयोग अपने-अपने पर्सनल कम्प्यूटर्स के माध्यम से कर पारस्परिक सूचनाओं का आदान-प्रदान कर रहे है। इससे किसी भी व्यक्ति की डाक नियमित रूप से तत्क्षण भेजी जा सकती है एवं नित्य प्रतिपल विश्व में क्या घट रहा है , यह भी जाना जा सकता है आश्चर्य की बात है कि इतने विशाल नेटवर्क जिसे ‘वर्ल्ड वाइड वेब’ (W.W.W) कहते हैं, का कोई भी स्वामी ,संचालक या नियंत्रणकर्ता नहीं हैं विश्वभर में फैले हजारों कम्प्यूटर नेटवर्क एक दूसरे से जुड़कर इसका संगठित स्वरूप बनाते हैं। अपने संसाधनों द्वारा या किसी भी माध्यम से टेलीफोन की एस.टी.डी. लाइन नेटवर्क के द्वारा जुड़ने के लिए हर कोई स्वतन्त्र है। वैसे नेशनल साइंस फाउण्डेशन का उस पर काफी कुछ नियन्त्रण है। तथ्यतः यही संस्था इंटरनेट को स्थापित करने हेतु मूलरूप से उत्तरदायी है। अन्य संस्थाओं में एडवाँस नेटवर्क एण्ड सर्विसेज एवं आई.बी.एम. आदि ने इसके आधारभूत ढाँचे का खड़ा करने तथा तकनीकी रूप से विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

भारत में यह विदेश संचार निगम लिमिटेड द्वारा महानगर टेलीफोन निगम अथवा टेली-कम्यूनीकेशन विभागों के माध्यम से संचालित किया जा रहा है। पूरे विश्वभर के स्तर पर इण्टरनेट पर कार्य करने में मात्र उतना ही शुल्क लिया जाता है, जितना कि एस.टी.डी. की पल्सरेट्स की दरें होती है। कोई चाहे तो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की मदद से अपनी ‘वेबसाइट’ भारत में अपने कम्प्यूटर पर अथवा विदेश के किसी परिचित नोडल केन्द्र पर स्थापित करवा सकता है। कई कंपनियाँ नाममात्र के शुल्क पर डाक के आदान-प्रदान की प्रक्रिया प्रतिदिन कम्प्यूटर पर नियमित रूप से करती रहती है। अब भारत में कई निजी कम्पनियाँ सक्रिय हो गयी है क्योंकि जन-जाग्रति विगत एक वर्ष में बड़ी तेजी से आयी है।

इंटरनेट की कार्यप्रणाली के बारे में इतना विस्तार से विज्ञान के प्रारम्भिक आविष्कारों से लेकर अब तक के इतिहास सहित इसलिए लिखा जा रहा है ताकि सब कोई विज्ञान की उस विधा से परिचित हो सकें, जिसने सूचना क्षेत्र में जबर्दस्त क्रान्ति पैदा कर आज मानव-मानव में दूरी को कितना घटा दिया है। इस विधा को समझना हो तो वस्तुतः यह जटिल न होकर बड़ी सरल, उपयोगी एवं बड़ी द्रुतगति से कार्य करने वाली सेवा है। हर व्यक्ति के अपने रजिस्टर्ड सर्वर्स (सूचना संकलन-संप्रेषण केन्द्र) होते हैं, जिनमें आवश्यक जानकारियाँ एकत्रित होती रहती है। उपभोक्ता अपने कम्प्यूटरों को टेलीफोन लाइनों के साथ जोड़ देते हैं एवं समूचा डाटा कम्प्यूटर में स्वतः आता रहता है। मोडम ही वह यंत्र है जो कम्प्यूटर में लगा होता है एवं आँकड़ों को टेलीफोन लाइन से लेकर पढ़ने योग्य, सुनने योग्य आँकड़ों या सूचना में बदल देता है जो उपभोक्ता चाहे अपने कम्प्यूटर में जो वाँछित है, उन आँकड़ों या डाक को या भेजी सूचनाओं को संग्रहित कर सकता है, उनको प्रिण्टर पर छाप सकता है, अथवा उनका रिकार्ड अपने पास काम्पेक्ट डिस्क (सी. डी.) या फ्लॉपी में सुरक्षित रख सकता है।

कोई भी व्यक्ति भारत में बैठे-बैठे अमेरिका, जापान या न्यूजीलैण्ड-आस्ट्रेलिया के किसी भी स्थान पर उपलब्ध यातायात, होटल सुविधाएँ मौसम की जानकारी, रेल व वायुयान में आरक्षण की सुविधा से लेकर बैंकों से लेन-देन, राजनैतिक व खेलकूद जगत में कौन आगे है-पीछे है की स्थिति , विश्व के किस पुस्तकालय में क्या-क्या पुस्तकें किन-किन विषयों पर है- यह जान सकता है। विभिन्न समाचार पत्र, टाइम-न्यूजवीक जैसी पत्रिकाएँ अब घर बैठे अपने कम्प्यूटर पर देखी जा सकती है व तुरन्त उन्हें कोई संदेश भेजना हो तो भेजना हो तो भेजा जा सकता है।

शाँतिकुँज-गायत्री परिवार भी इंटरनेट द्वारा वर्ल्ड वाइड वेब से जुड़ गया है। इससे विचार-क्रान्ति की प्रक्रिया को विश्वव्यापी बनाया जा सकेगा। अब अमेरिका, कनाडा, इंग्लैण्ड साऊथ अफ्रीका, सिंगापुर , आस्ट्रेलिया के कई परिजन इस सेवा से सीधे जुड़े हुए हैं। शाँतिकुँज में नियमित रूप से समाचार अब ई-मेल से आने लगे हैं। अब प्रयास यह कि ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान के प्रयोगों के निष्कर्ष व्यक्तित्व परिष्कार सम्बन्धी आध्यात्मिक प्रतिपादनों सम्बन्धी आध्यात्मिक प्रतिपादनों पूज्यवर की अमृतवाणी से लेकर विभिन्न सूचनाएँ जो गायत्री, यज्ञ , ध्यान पुरश्चरण साधना महापूर्णाहुति से सम्बन्धित होंगी इससे भेजी जाती रहेंगी, वेदमंत्रों से लेकर उपनिषद् तथा भारतीय संस्कृति सम्बन्धी सारी जानकारियाँ सारे विश्व के करोड़ों व्यक्तियों को यदि इस माध्यम से आकर्षित कर इस अभियान से जो युग-निर्माण के निमित्त ऋषिचेतना ने खड़ा किया है, जोड़ दें तो किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यही विज्ञान व अध्यात्म के समन्वय की इक्कीसवीं सदी कही वैचारिक क्रान्ति का आधार बनेगा, इसमें कोई सन्देह किसी को नहीं होना चाहिए।


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