समाज से आंखें मूँदकर अपने स्वार्थ में ही लगे रहना सभी तरह से हेय, निषिद्ध और सामाजिक अपराध माना गया है।
गिरे हुओं को उठाना, पिछड़े हुओं को आगे बढ़ाना, भूले को राह बताना और जो अशांत है, उसे शान्ति दे देना, यही वस्तु ईश्वर की सच्ची सेवा है।