विलक्षण सम्मोहक सामर्थ्य निहित है संगीत में

May 1997

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संगीत की स्वर लहरियाँ वातावरण में सम्मोहक उल्लास का सृजन करती है ।जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे इसकी लय-ताल पर जिन्दगी अपने आप थिरकने लगती है। सदियों सहस्राब्दियों से इनसानी सभ्यता इसके जादुई प्रभाव से परिचित -प्रभावित है। सामगान से लेकर दीपक राग, मेध मल्हार तक भाँति-भाँति के सुरीले स्पन्दन मानव प्राणों को स्फूर्ति -उल्लास देते रहे है। विज्ञान के इस युग में शोध, अनुसंधान की कसौटियों पर कसे जाने से इसकी आभा में और अधिक निखार आया है। न्यूरोलॉजिस्टों के अनुसार इसके द्वारा शारीरिक संरचना में भी परिवर्तन सम्भव है। मैकगील यूनिवर्सिटी माण्ट्रियल के न्यूरोलॉजिस्ट राबर्ट जटारे का कहना है कि नवजात शिशुओं में संगीत के प्रति कुछ अधिक ही जागरुकता होती है।

यूँ तो भाषा और संगीत दोनों ही भाव-संचार का माध्यम है, लेकिन संगीत ध्वनि स्पन्दनों की विशिष्ट लय-ताल से समन्वित कर प्रसारित करता है। इसकी झंकृति से हर हृदय झंकृत हो जाता है। परन्तु भाषा शब्दों की संरचना है, जो अन्य भाषा-भाषी लोगों के सर्वथा प्रभावहीन है। संगीत के स्वर सांस्कृतिक सृजन के प्रतीक भी है और तनाव से मुक्ति का साधन भी। इन दोनों के पारस्परिक सम्बन्ध के बारे में टोरोंटो यूनिवर्सिटी को डेवलपमेंट साइकोलॉजिस्ट सेण्ड्र ट्रेहब का कहना है कि संस्कृति के बगैर संगीत की सम्भावना न्यून होती है। अपने देश में इसी सांस्कृतिक समृद्धि के बलबूते ही संगीत का इतना विकास हो पाया है।

पश्चिमी देशों में संगीत का इतिहास छठवीं शताब्दी से शुरू होता है। इस सदी में ग्रीक दार्शनिक पाइथागोरस ने संगीत स्वरों को पहली बार गझातीय ने संगीत स्वरों को पहली बार गणितीय पद्धति से विश्लेषित किया। आज सारी दुनिया में ‘ओक्टेव इक्चीवैलेन्स’ (ह्रष्ह्लड्डक्द्ग श्वह्नह्वद्बड्ढड्डठ्ठड्डठ्ठष्द्ग) पद्धति से संगीत का प्रचलन है। पश्चिमी दुनिया का पाप साँक राक-रैप तथा अन्य संगीत मुख्यतया पहले चौथे एवं पाँचवें स्केल पर आधारित है। उसे ष्टस्नत्र (सी एफ जी) के नाम से जाना जाता है। सन् 1974 में 3400 वर्ष प्राचीन संगीत का पता चला। इसे सुमूरियन मानते हैं। जिसमें भारतीय पद्धति के अनुसार सात स्वर है। अध्ययन करने वाले विशेषज्ञों का मत है कि सुमेरियन संगीत का विकास भारतीय संगीत से ही हुआ होगा।

संगीत के सुरीले प्रभाव का अध्ययन करने वाली ट्रेहब तथा उनक सहयोगियों का कहना है कि गीत का चौथा और पाँचवाँ माध्यम स्वर बालक के हाव-भाव में परिवर्तन ला देता है। यह स्वर जब जटिल हो जाता है, तो वयस्कों के लिए कर्णकटु साबित होता है। यह जैविक कारक जो जन्म से लेकर अन्तिम साँसों तक अपना परिचय बखूबी देता रहता है। गीतों के मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययप काफी अर्सें से चल रहा है। न्यूरोलॉजी के विशेषज्ञों के अनुसार मस्तिष्क का बायाँ हेमीस्फियर भाषा सम्बन्धी क्रियाओं के लिए तथा दया, संवेदना , भावना आदि को संचालित करता है। बायें हेमीस्फियर भाषा सम्बन्धी क्रियाओं के लिए तथा दया, संवेदना, भावना आदि को संचालित करता है। बायें हेमीस्फियर का ‘ब्रोकाएरिया’ क्षतिग्रस्त को जाने से बोलने की क्षमता समाप्त हो जाने से बोलने की क्षमता समाप्त हो जाती है। इसी क्षेत्र का यदि वरनिक एरिया ठीक हो तो बालपे की सामर्थ्य वापस आ सकती है। संगीत के लिए वैसे मस्तिष्क विशेषज्ञ दायें भाग को ज्यादा उत्तरदायी मानते हैं। परन्तु आधुनिक अन्वेषणों से पता चला है कि संगीत की गूँज समस्त मस्तिष्क को प्रभावित करती है।

भाषा एवं संगीत के लिए मस्तिष्क के दो अलग-अलग हेमीस्फियर के न्यूरोसर्किट काम करते हैं। इस बात की पुष्टि रूस के विसारिओन शेवलीन ने की थी। उन्होंने कई ऐसे लोगों के ऊपर अपने प्रयोग किए जो बोल नहीं सकते थे। लेकिन इन्होंने भी गीतों के द्वारा अभूतपूर्व शान्ति एवं उल्लास हासिल किया। विश्वविख्यात संगीतकार मौरिस रैवेल का मस्तिष्कीय ज्ञान शून्य थौ वे बोल भी नहीं पाते थे। संगीत साधना ने उन्हें न केवल सुनने-समझने की ताकत दी वरन् उन्हें संगीत साम्राज्य का सिरमौर बना दिया। इससे स्पष्ट होता है कि संगीत का जादू भाषा से ऊपर उठकर बोलता है। ऐसे अनगिनत लोग है, जो शिक्षा के क्षेत्र में नौसिखिया होते हुए भी सुप्रसिद्ध संगीतकार सिद्ध हुए है ईशावेल पेरेट्रज के अनुसार संगीत एक ही समय में सृजनात्मक, संवेदनात्मक एवं विचारात्मक कार्यों को सम्पादित करता है। इस विधा की समुचित जानकारी रोगोपचार से लेकर भावना के उच्चस्तरीय आयामों तक पहुँचा सकती है। भारतीय शास्त्रीय संगीत की पद्धति में वह सारा गुण परिलक्षित होता है। वैज्ञानिकों का एक बड़ा वर्ग इस सत्य को स्वीकारने लगा है।

संगीत का असर मस्तिष्क के लिए भाग पर कैसा होता है-पेरेट्रज तथा उनके सहयोगियों ने इस पर काफी खोज की है। उन्होंने अपने प्रयोग के दौरान दो तरह के मस्तिष्क रोगियों पर संगीत के प्रभाव को परखा। सुनाए गए गीतों के राग एवं लय के परिवर्तनों के परीक्षण के लिए बायें तथा दायें मस्तिष्क रोगियों से पूछताछ की गयी। बायें मस्तिष्क के रोगी राग परिवर्तन की सामान्य जानकारी दे पाए, जबकि दायें मस्तिष्क के रोगी अच्छे ढंग से जानकारी देने में सक्षम हुए। इस प्रयोग के परिणाम से पेरेट्रज ने निष्कर्ष निकाला कि लय एवं राग अविच्छिन्न रूप से जुड़े होने पर भी मस्तिष्क उसे भिन्न-भिन्न अनुभव करता है।

‘राग’ मोनोलिथिक तत्व नहीं है। यह दो भागों में बँटा होता है, नोट्स एवं रूपरेखा राग के उतार-चढ़ाव का अन्तर सामान्य होता है। सेण्ट्रा का कहना है कि बच्चे राग के परिवर्तन को समझते हैं लेकिन उसकी रूपरेखा पर कोई क्रिया जाहिर नहीं करते।

संगीत से मस्तिष्क का सम्पूर्ण भाग झंकृत हो उठता है। इसका प्रयोग मैकगील विश्वविद्यालय के राबर्ट ने किया। इन्होंने स्वरों को चालू कर ‘पैट स्कैन’ द्वारा मस्तिष्क के विभिन्न भागों पर होने वाले परिवर्तनों को रिकार्ड किया। मस्तिष्क के दायें टेम्पोरल लोब को सुपीरियर टेम्पोरल गाडरस कहते हैं। यह क्षेत्र स्वर के प्रति अति संवेदनशील होता है। स्वर तन्त्र के बजने से इसमें एक हल्की हलचल हुई और मस्तिष्क का सारा भाग इस धुन से सक्रिय हो गया। वैज्ञानिकों ने यह भी पाया है कि संगीत आनुवाँशिक गुणों का वाहक भी होता है। सात-आठ साल के बच्चों में दक्ष संगीतकार का गुण पाया जाना इसका द्योतक है।

इधर हाल में विज्ञानवेत्ताओं ने संगीतकारों की मस्तिष्कीय संरचना में विकास की कुछ विशेष सम्भावनाएँ जताई है। हेनरीक हेन यूनिवर्सिटी के न्यूरोलॉजिस्ट गटफ्राइड श्लगल के अनुसार इसका कार्पस कैलासम अपेक्षाकृत बड़ा होता है। शारीरिक नियन्त्रण करने वाला मोटर फंक्शन कार्पस कैलोसम के आगे के आधे भाग से संचालित होता है श्लेगल के मतानुसार इसी वजह से संगीतकार के वाद्ययन्त्रों एवं हाथों के बीच अद्भुत नियन्त्रण देखा जा सकता है। इस भाग के संवाहक स्नायु अति संवेदनशील एवं मजबूत होते हैं। जो दोनों हेमीस्फियर के मध्य सन्तुलन बनाए रखते हैं। श्लेगल की टीम ने एक और संरचना की कार्यपद्धति का अन्वेषण किया। सामान्यतया टेम्पोरल लोब का प्लेनम टेम्पोरल दायें भाग की अपेक्षा बायें भाग में बड़ा होता है ।यह कार्टेक्स भाषागत विषयों के लिए ही जिम्मेदार होता है, जबकि संगीत से सम्बन्धित लोगों में यह भाषा एवं संगीतों के लिए कार्य करता है।

अब सवाल यह उठता है कि भाषा से संगीत उत्पन्न हुआ या फिर संगीत से भाषा। इसका जवाब चार्ल्स डार्विन ने देने की कोशिश की है डार्विन का विश्वास है कि संगीत का जन्म प्रोटोह्यूमैन पुरुषों एवं महिलाओं के बीच आकर्षण से हुआ। ये राग एवं लय से आनन्दित होते थे। वैदिक काल की ओर झाँकने से पता चलता है कि संगीत भाषा का विकास हुआ। चारों वेद महाकाव्य है। सामवेद तो तमाम गीतों का संगीत बद्ध संकलन है। काव्य में तमाम बातों को एक साथ कहने की सुविधा होती है। इसलिए सम्भवतः विकास की प्रक्रिया में संगीत से भाषा की उत्पत्ति हुई हैं कई विकासवादी भी इस तथ्य से सहमत है। इस बात को और अधिक जानने के लिए डर्टमाउथ के वैज्ञानिकों ने एक कम्प्यूटर मॉडल बनाया है। इनके विश्लेषण के अनुसार आदिमानव में भाषा स्पृहणीय भले रही है, परन्तु संगीत का अपना विशिष्ट स्थान रहा है। इन्होंने बताया कि शास्त्रीय संगीत साँस्कृतिक सृजन का प्रतीक है, जो कई न्यूरॉन्स पद्धतियों को दर्शाता है।

इस विषय में विशद् अध्ययन करने वाले भारुच का मानना है कि गीत मूलतः समूहों में अधिक प्रयोग किया गया। हालाँकि सासा मार्च या मूलगीत धुन इससे सम्बन्धित नहीं है। फिर भी निर्विवाद तथ्य है कि संगीत एक समय एक समाज और पूरे क्षेत्र में भावनाओं के संचार का माध्यम था । यह भावनाओं के संचार का माध्यम था। यह भावनाओं के संकेतों का प्रतीक था, जबकि भाषा विचारों का स्पष्टीकरण भावना विचारो से पूर्व आती है। शायद इसी बात को लेकर भारुच ने संगीत को महत्वपूर्ण माना है।

सैण्ड्राट्रैहब ने माँ एवं बच्चे के बीच नैसर्गिक धुन की व्याख्या की है, शिशु माँ की धड़कनों से उत्पन्न लय ताल से आनन्दित रहता है। यह माँ की भावना एवं सूक्ष्म ब्रह्मांडीय तरंगों को डिकोड करता है कुछ वैज्ञानिकों का मानना है, कि नवजात शिशु में संगीत का बीज प्रसुप्त रूप से रहता है। कुछ भी हो इसका जुड़ाव व्यक्ति की संवेदना से शाश्वत है। तभी तो इसको सुनते ही हृदय के तार अपने आप ही झंकृत हो जाते हैं।

इसके चमत्कार को जानने के लिए मनोविज्ञानी जान श्लोबोडा ने इंग्लैण्ड के 83 रेताओं पर प्रयोग परीक्षण किया। ये श्रोता मनोरोगी थे। जो भय, दर्द, संदेह पीड़ा आदि व्यथाओं से पीड़ित थे। उन्हें लगातार अच्छे परिवर्तन पाए गए। इनकी हिंसक वृत्ति में कमी आयी एवं शालीनता-विनम्रता भाव जागने लगा था। वाडलिंग सीन स्टेट यूनिवर्सिटी ओयों बायो साइकोलॉजिस्ट जैक पैक शैप के अनुसार संगीत में मनुष्य की दिव्य क्षमताओं को जाग्रत करने की शक्ति निहित हैं

उनके अनुसार गीतों में एक निश्चित आवृत्ति होती है संसार में हर पदार्थ एक निश्चित आवृत्ति से बना हैं अगर किसी स्वर द्वारा इससे तारतम्य बिठाया जा सके तो जड़ से चेतन तक में लिचलें उत्पन्न हो सकना सम्भव है, शास्त्रीय संगीत में दीपक राग से दीपों का जलना, मेघ मल्हार से वर्षा होना प्रसिद्ध हैं इसके लिए समय, प्रहर का विशेष ध्यान देना पड़ता है। संगीत रूपी इस सूक्ष्म विज्ञान को अनावृत कर प्रकृति से बहुत कुछ लाभ लिया जा सकता है

संगीत से मानसिक कुशलता में होने वाली अभिवृद्धि को भी विज्ञान-विदों ने अपने प्रयोगों में स्वीकारा है सन् 1992 में कैलीफोर्निया युनिवर्सिटी के मनोविज्ञानी फ्राँस रसर, गार्डनशा और कैथराइन ने इस पर अनेकों प्रयोग किये। उन्होंने मोजार्ट इफेक्ट द्वारा कॉलेज के 36 छात्रों का आई. क्यू. परीक्षण से पूर्व वाद्य यन्त्रों की धुन सुनायी गयी। 15 मिनट तक इस धुन सुनायी गयी। 15 मिनट तक इस धुन में तल्लीन होने के बाद अच्छा रहा। एक अन्य प्रयोग में तीन साल के बच्चों को 9 महीने तक पियानो से गीत एवं धुन सुनायी गयी। इसके प्रयोग के परिणाम बहुत अच्छे रहे। इनकी मस्तिष्कीय क्षमताओं में 35 प्रतिशत की अभिवृद्धि पायी गयी। बायो फिजिसिस्ट मार्टिन गार्डनर इन निष्कर्षों को सही बताते हुए कहते हैं। कि संगीत आंतरिक न्यूरान्स की साँकेतिक भाषा हैं जो मस्तिष्क के समस्त कार्टेस में फैले है। संगीत न केवल इनके क्रिया-कलापों को सुचारु करते हैं बल्कि उनमें बढ़ोत्तरी करते हैं।

वैज्ञानिक समुदाय इस बारे में काफी आशान्वित है कि आज के अशांत, उद्विग्न एवं कलह ग्रस्त समाज में संगीत का शीतल स्वर नूतन चेतना का संचार कर सकता है व्यक्ति के विचारों एवं भावनाओं को सृजन की ओर मोड़कर कई रचनात्मक कार्य करा सकता है। लेकिन यह तभी सम्भव है जब अश्लील एवं फूहड़ गीतों का छोड़कर सुमधुर शास्त्रीय पद्धति पर आधारित सद्भावपरक गीतों एवं धुनों को प्राथमिकता दी जाए।


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