काल का रहस्यबोध खोल रहा है-जादुई संसार

May 1997

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‘काल’ की महिमा न्यारी है। सृष्टि के सभी घटनाचक्र इसी के इशारे पर नाचते हैं इसके एक इंगित सं जीवन मृत्यु में बदल जाता है और मृत्यु नव जन्म का सरंजाम जुटाने लगती है। सिंहासनाधीश दर-दर की ठोकरें खाने लगते हैं ओर गरीब-दलित कहा जाने वाला विशाल साम्राज्य का स्वामी बनता है। काल की इसी रहस्यमयता को जानने के लिए सभ्यता के प्रारम्भिक दौर से अध्यात्मवेत्ता गहन साधनाएँ एवं कड़ी तपश्चर्याएँ करते रहे है। अब इस क्रम में विज्ञानवेत्ता भी प्रयत्नशील है काल का रहस्यबोध पाने के लिए वे सतत् शोध-अनुसंधान कर रहे है। इस क्रम में प्राप्त उनके निष्कर्ष हमें अचरज में डाल देते हैं।

क्वाँटम भौतिकी के विशेषज्ञों ने प्रतिपदार्थ के समान ही प्रति समय की खोज की है। और साइबरनेटिक सिद्धान्तानुसार समय को तरंग के समान प्रतिपादित कर इसे ऊर्जा का अक्षय स्रोत माना गया हैं यानि कि अब वैज्ञानिकों के मतानुसार ‘काल’ ही समस्त शक्तियों का शाश्वत स्रोत है। मूरीहोप ‘टाइम द अल्टीमेट एनर्जी’ में समय को क्रोनोलाती के नए आयाम से जोड़ती है। उनके अनुसार समय सापेक्ष है । ब्रह्मांड से लेकर सूक्ष्मतम कण तक दुनिया का प्रत्येक घटक परिवर्तनशील है, जो एक निश्चित प्रक्रिया के तहत संचालित होता है। यह परिवर्तन जैविक,सामाजिक एवं साँस्कृतिक स्तर पर भी होता है एल्ल्विच टाफ्लर ने अपनी सुप्रसिद्ध कृति ‘फ्यूचरशँक’ में इसे स्पष्ट किया है। उनके अनुसार , सृष्टि की समस्त प्रक्रियाओं का महत्वपूर्ण कारक है-समय या काल। समय के बिना परिवर्तन सम्भव नहीं।

क्वाँटम भौतिकी तथा अंतरिक्ष विज्ञान के शोध प्रयासों से प्रकृति और समय के कार्य को समझने में नयी दिशा मिली हैं । विख्यात वैज्ञानिक मूरी होप समय को दो भागो में बाँटती हैं-आन्तरिक समय एवं बाह्य समय। ग्रहों -उपग्रहों, तारकों की गति से उत्पन्न समय को आन्तरिक समय कहते हैं। बाह्य समय की परिकल्पना वैज्ञानिकों ने उस समय के लिए की है, जो भौतिक अवस्था से बाहर हैं यह हमारी इच्छा, की ओर उन्मुख हैं विज्ञान के नवीनतम अध्ययन स्पष्ट करते हैं कि जिस तरह इलेक्ट्रॉन बाँण्ड को तोड़ने से अनन्त ऊर्जा मिलती है, उसी प्रकार यदि ‘टाइम कोड‘ को विखण्डित किया जा सके तो अपरिमित शक्ति स्रोत को पाया जा सकता है । प्राप्त इस ऊर्जा में सम्पूर्ण ब्रह्मांड को परिचालित, नियंत्रित करने की क्षमता है। प्राचीन अध्यात्मवेत्ताओं को इस रहस्य का ज्ञान था, ऐसा आज का वैज्ञानिक समुदाय मानने लगा है। ध्यान की गहराइयों में काल के इसी रहस्यमय आयाम में प्रवेश कर वे अपनी चेतना में उन्नत शक्ति को हासिल करते थे।

काल की गणना सूर्य की परिक्रमा के अनुसार करने का प्रचलन है। सौरदिन मध्य रात्रि से प्रारम्भ होता है। नक्षत्रीय समय मध्य मकर रेखा के प्रथम बिन्दु को पार करते समय मापन को कहते हैं। यह क्षितिज से आकाशीय पिंडों के सम्बन्धित स्थान को संकेत करता है डिस्कवरी ऑफ फिजिक्स के अनुसार सौरवर्ष , सौर माह , सौरदिन तथा नक्षत्रीय वर्ष, माह व दिन से ही कैलेण्डर का प्रचलन हुआ। अंतर्ग्रही समय के मापन हेतु परमाणविक घड़ी का प्रयोग किया जाता है

कहावत है कि समय तीर की तरह भागता है और गुजरा हुआ समय वापस नहीं आता। वैज्ञानिकों ने इस लोक-प्रचलित कहावत का मद्देनजर रखते हुए अनेकों रहस्यों को उजागर किया। सन् 1927 में ब्रिटिश अंतरिक्षवेत्ता सर आर्थर एडिंगटन ने सापेक्षतावाद के तहत ‘एरो ऑफ टाइम’ यानि समय के तीर का अन्वेषण किया। क्वाँटम सिद्धान्त के जन्मदाता ववारनर हाइजेनबर्ग, विख्यात वैज्ञानिक थ्रोडिंगर तथा अपने युग के महान् विज्ञानवेत्ता आइन्स्टाइन ने समय के बारे में एक नयी बात बतायी। । उनके अनुसार काल गति को वर्तमान से भविष्य की ओर के दायरे में नहीं बाँध सकते। ऐसा भी हो सकता है कि समय वर्तमान से भूत की ओर चलने लगे। उनके इस प्रतिपादन से विज्ञान जगत में हलचल मच गयी, परंतु उनके तर्क तथ्य एवं प्रमाण सम्मत विवेचन को सभी को स्वीकार करना पड़ा।

विज्ञान मनीषी सटीफेन हाकिंग ने अपनी विश्वविख्यात रचना ‘द ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम ‘ में समय की सापेक्षिता पर काफी मूल्यवान विचार व्यक्त किये है। उन्होंने समय को एकीकृत गुरुत्वबल से जोड़कर -काल्पनिक समय’ की एक नई परिकल्पना दी है। इसके अनुसार इस स्थिति में दिशाओं का अस्तित्व विलीन हो जाता है, जबकि वास्तविक समय में दिशा का महत्वपूर्ण स्थान है इस क्रम में काल के तीन रूप प्रकाश में आए-

1- थर्मोडायनिमिक एरो ऑफ टाइम,

2- साइकोलॉजिकल एरो ऑफ टाइम,

3-कास्मोलाजिकल एरो ऑफ टाइम,

इसमें थर्मोडासनिमिक तथा कास्मोलाजिकल समय की दिशा भूत से भविष्य की ओर होती है, जबकि साइकोलॉजिकल समय भविष्य से भूत की ओर गमन करता है। इसी के आधार पर ही हम अपने मन में स्वयं के अतीत कोचलचित्र की भाँति देखते हैं।

अंतरिक्ष विज्ञान का विशद् अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक रोजर पेनरोज ने ‘द एम्परर्स न्यू माइण्ड में समय की एक नयी अभिव्यक्ति दी है। ये कहते हैं कि वर्तमान द्रव्य की अवस्था प्रकृति की सूक्ष्म चेतना की स्थूल परिणति है। इस वजह से सूक्ष्म प्राकृतिक हलचलों से पदार्थ में परिवर्तन आना अवश्यम्भावी है। इसमें हमें समय की प्रचलित परिभाषा से हटकर एक नया परिचय मिलता है समय का यही परिचय समष्टि स्तर पर ब्रह्मांडीय काल के रूप में जाना जाता है समय के इस रहस्यमय आयाम में पहुँचकर हमें स्थूल से सूक्ष्म होने और सूक्ष्म से स्थूल रूप प्राप्त करने के घटनाओं की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि वैज्ञानिक अभी इस बारे में कुछ अधिक नहीं जान पाए है, परन्तु उनका विश्वास है कि इसे जान लेने पर मृत्यु से परे जीवन का अस्तित्व और लोक-लोकान्तर के घटनाक्रम अधिक स्पष्ट हो सकेंगे।

डॉ. रुपर्ट होल्ड्रेक ने समष्टि चेतना में समय की अवधारणा ‘मार्फिक रेजोनेन्स’ के आधार पर की है। इनका कहना है कि कोई भी क्षेत्र भ्रूण की अन्तिम अवस्था के बाद ही विकास की प्रक्रिया में आगे बढ़ता है। इस तरह निर्माण होने के बाद से अन्त तक विकास सीधी रेखा में चलता है। प्रोफेसर फ्रेड ब्रह्मांड को चैतन्य माना है। इस क्रम में उनका ग्रन्थ ‘द इंटेलीजेन्ट यूनीवर्स बहुत महत्वपूर्ण है। इस ग्रन्थ के विवरण के अनुसार न केवल ब्रह्मांड का स्रष्टा चेतन है, बल्कि उसकी सृष्टि भी चेतन का नया रहस्य खोलते हैं। फ्रेड हायल के मुताबिक ‘परम चैतन्य काल’ ही इस सृष्टि का स्रष्टा है। इसके विभिन्न आयाम वस्तुतः काल के ही आयाम है। विकास के इस क्रम में वापस मुड़कर यदि मूल उद्गम तक पहुँचा जा सके तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।

विलियम ब्लैक ने ‘बियाण्ड द टाइम बैरियर’ में साइकोलॉजिकल एरो ऑफ टाइम का कुछ अधिक ही खुलासा किया है। इस क्रम में उन्होंने बतलाया कि इसके रहस्य को जानकर हम सब अपने निर्माण के इतिहास को भेदकर परिभ्रमण कर सकते हैं। प्राचीन भारतीय वाड्.मय में इस तरह की अनेकों कथाएँ मिलती है। योगवासिष्ठ में जिन्होंने लीलोपाख्यान पढ़ा है, वे इस ‘काल रहस्य’ को आसानी से समझ सकते हैं। इस बारे में फ्रेंच मनीषी सत्प्रेम ने ‘द डिवाइन मैटोरियलिज्म’ में श्री अरविन्द आश्रम की अधिष्ठात्री श्री माँ के जीवन की एक घटना का रोचक उल्लेख किया है। जब वह एक बार पेरिस में वहाँ के ‘गीमट’ संग्रहालय को देखने गयीं, तो वहाँ पर स्थित ममी ने सामने सजीव हो उठे। वह उनके पिछले कई जन्मों के घटनाक्रमों को कुछ इस तरह देखती रहीं, मानो वह उनके साथ वर्तमान में ही रह हो। काल का यह अद्भुत रहस्यबोध निःसन्देह हमारे सामने अलौकिक एवं आश्चर्यजनक संसार का खुलासा करता है।

वैज्ञानिक इस बारे में कहते हैं कि विगत समय का अवश्य ही कोई ऐसा अदृश्य सूत्र हमारे पास है। , जिसे ढंग से समझ लेने पर हम रहस्यमय सृष्टि के अनेकों अविज्ञात लोकों को जान सकते हैं वर्तमान मनोवैज्ञानिकों के प्रयास भी इन दिनों कुछ इसी ओर है। पाश्चात्य जगत में ‘अवचेतन’ के नाम पर तहलका मचाने वाले सी. जी. युँग ‘मेमोरीज ड्रीम्स एण्ड रिपलेक्शन’ में खुशी जाहिर करते हुए लिखते हैं कि मनोविज्ञान अवश्य ही उन्नत विज्ञान है, जिससे काल के रहस्य को जाना जा सकता है। इस क्रम में किए गए अनुसंधान इनसान को उसके भूत और भविष्य की झाँकी दिखा सकते हैं। तब त्रिकालदर्शी होना उसके लिए कोई अनूठी बात न होगी।

मानवीय चेतना के उच्चतर आयामों में देश-काल का बोध क्रमशः विलीन होता जाता है। ब्लैक होल में भी समय नहीं रह जाता । मानवीय अचेतन में डूबी विगत स्मृति को वर्तमान में सजीव करने का सुझाव मूरीहोप देती है। इस स्थिति में समय की दिशा ीत की ओर मुड़ जाती है। ये कहती है, स्मृति मस्तिष्क के बायें हेमीस्फियर में अचेतन रूप में अंकित रहती है। मनोवैज्ञानिक अपनी कुशल तकनीकों से इसे जाग्रत कर सकते हैं। खोज-बीन के इस क्रम में उनका मानना है कि यदि समष्टि के अचेतन यानि कि’ कलेक्टिव अनकाँशस’ को भविष्य में जाना जा सका तो सृष्टि के उद्भव विकास में काल की लीला को कम्प्यूटर में उतारा जा सकता है। तब हमें रामायण-महाभारत भी अपने वास्तविक रूपों में ऐसे किसी सुपर कम्प्यूटर प्रणाली द्वारा अपने टी. वी. सैटों पर देखने को मिल सकेंगे। नासा ने इस बारे में एक योजना भी बना ली है, ‘आर्मचेयर एडवेन्चर’ जिसके अंतर्गत चार अरब वर्ष पूर्व के इतिहास में यात्रा करने की कोशिशें जारी हैं ।

विज्ञानवेत्ता पाल डेविस ने मस्तिष्क के दो स्तरों की विशद विवेचना की है। उनके अनुसार इसके निम्नतम स्तर में न्यूरान्स के अंतर्संबंधों के बीच जैविक हलचल होती रहती है। उच्चतर अवस्था में न्यूरान्स का जटिल नेटवर्क होता है। न्यूरान्स की इन सूक्ष्म संरचनाओं में उन्नत आयामों की दिव्य अनुभूतियाँ भरी पड़ी है। बस जरूरी है तो इसका जागरण । ऐसा किया जा सका तो फिर विगत के इतिहास को दूरदर्शन के पर्दे पर विभिन्न कार्यक्रमों के समान देख सकते एवं स्वयं वहाँ यात्रा करने कल्पना महज कपोल-कल्पना बनकर न रहेगी।

अपने इस अध्ययन में पाल डेविस ने समय का अति सूक्ष्म विश्लेषण किया है। समय, परिस्थिति के अनुरूप सापेक्ष है । क्वाँटम थ्योरी के अनुसार तो समय भी ऊर्जा से भरी तरंग है जिसका अति सूक्ष्म माइक्रो सेकेण्ड न्यूरान की गतिविधियों से जाना जाता है।समस्त सृष्टि में एक समान आवृत्ति में समय लगभग बराबर होता है। अध्यात्मविज्ञान में मर्मज्ञ अपनी मंत्र-साधना के द्वारा चेतना की गहराइयों में मंत्र बीज के स्फोट द्वारा ‘टाइम कोड’ को विखण्डित करके अनन्त ऊर्जा को प्राप्त करते हैं। इस रहस्यमय विज्ञान को अब आधुनिक विज्ञानवेत्ता भी स्वीकार करने लगे है।

मूरीहोप ने अपने अध्ययन में वैयारिक तरंगों में सन्निहित ऊर्जा का भी विस्तार से उल्लेख किया है। यह समय की एक अवस्था से दूसरी अवस्था में बदलने के लिए जरूरी बल प्रदान करती हैं उनके अनुसार क्वाँटम संसार यानि कि तरंगमय संसार में यदि विचार तरंगों की ऊर्जा को संघनित किया जा सके तो टेलीपैथी के रूप में न केवल संवाद का संचार सहज होगा, बल्कि विचारों के सूक्ष्म आयामों से संपर्क करके आगत, सनागत को जानना भी सरल एवं सहज हो जाएगा। क्वाँटम विश्व में विचार भी मन की एक तरंग है। इसकी तरंग दैर्ध्य में बढ़ोत्तरी करके अनन्त दूरी की अकल्पनीय यात्रा कुछ पालों में पूरी की जा सकती है।

आइन्स्टाइन के सूत्र बताते हैं कि समय को आगे-पीछे ऊपर -नीचे सभी दिशाओं में लाना सम्भव है। यानि कि व्यक्ति वर्तमान से शुरू कर भविष्य की ओर तथा भविष्य से शुरू कर भूत की ओर भ्रमण कर सकता है। प्रख्यात भविष्य द्रष्टा एडगर केसीस इसी रहस्य को जानकर भूत एवं भविष्य के पारखी बने थे। जीन डिक्सन , नोस्ट्राउमस, स्वामी विवेकानन्द, महर्षि रमण, योगीराज अरविन्द ने काल के इसी रहस्य को जाना था। इक्कीसवीं सदी उज्ज्वल भविष्य का उद्घोष करने वाले परम पूज्य कुरुदेव के संपर्क में जो भी आए है, उन्हें पता है कि काल के रहस्य-ज्ञान के वह अद्भुत मर्मज्ञ थे। हेंस आइजेक कैम्ब्रिज के विख्यात परामनोविज्ञानी डॉ. कार्ल सार्जेन्ट ने ‘एक्सप्लेनिंग द अनएक्सप्लेण्ड’ नामक शोधग्रन्थ में वर्तमान में ही आगत-अनागत की प्रायोगिक सत्यता को अच्छे ढंग से निरूपित किया है।

मनोवैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों में पाया है कि सम्मोहित अवस्था में व्यक्ति अपने बीते हुए जीवन की समस्त घटनाओं का साक्षात्कार कर सकता है, इस सम्बन्ध में जे. ग्रीवन का ‘टाइमबर्थ’ ग्रन्थ उल्लेखनीय है। उनका कहना है कि सम्मोहन की स्थिति में व्यक्ति की चेतना पार्थिव समय को लाँघकर काल के किसी उच्चतर आयाम में प्रवेश कर जाती है। जहाँ भूत एवं भविष्यत् घटनाओं से सम्बन्धित सभी तथ्यों तथा प्रत्येक जानकारियों से संपर्क स्थापित किया जा सकता है। किस तरह वर्तमान के बन्धन को शिथ्ज्ञिल कर उन्नत आयामों से संपर्क स्थापित किया जा सकता है ? इसके जवाब में डब्लू. एच. डन ने अपने ग्रन्थ ‘एक्सपेरीमेण्ट विथ टाइम’ में कहा है कि जब हम सामान्य चेतनावस्था को शिथिल कर गहरी सुषुप्ति की स्थिति में पहुंचते हैं तो भूत और भविष्य उसी तरह आमतौर से वर्तमान अनुभव में आता है। इसका प्रायोगिक स्वरूप ध्यान ही है।

काल यात्रा की यान्त्रिक परिकल्पना पहली बार 1987-88 में ‘चार्ल्स पेलीग्रीनों यूनिवर्सिटी - न्यूयार्क के नाभिकीय वैज्ञानिक जेम्स पावेल ने की। उन्होंने इसे अनतरतारकीय उड़ान से सम्भव बताया । उनके अनुसार यह एण्टीमैटर राकेट से सम्भव हैं इसके पश्चात् नासा के राबर्ट जैस्ट्रो, जीलटार्टर, राबर्ट फारवर्ड और जान रेदर ने इस ओर गहन अनुसंधान किया। 1987 में पाल सीमन्स ने यह परिकल्पना करते हुए कहा कि आगामी शताब्दी के नाम से जानी जाएगी। इस दौरान काल यात्रा का यह पुरुषार्थी अभियान साकार हो सकेगा। वैज्ञानिकों ने इस काल यात्रा पर जाने के लिए विलक्षण -अन्तरताकीय यान की परिकल्पना की है। उनके अनुसार यह यानतारक पथ पर द्रव्य एवं प्रति द्रव्य की अभूतपूर्व ऊर्जा से संचालित होगा। चुम्बकीय पट्टी पर एण्टीप्रोटज्ञन धनात्मक की बजाय ऋणात्मक चार्ज होता है। जब यह एण्टी प्रोटान सामान्य अवस्था में आता है तो पूरा द्रव्य ऊर्जा में बदल जाता है इस तरह सीमन्स का मान्यता है कि द्रव्य को ऊर्जा में रूपांतरित करके हाइड्रोजन बम से सैकड़ों गुनी ज्यादा ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है, फिर काल यात्री तो समय की ऊर्जा का भी प्रयोग करेंगे, जिसके द्वारा वे एक आकाशगंगा से दूसरी आकाशगंगा तक इस तरह घूमें-फिरेंगे जैसे हम लोग न्यूयार्क से दिल्ली आते-जाते हैं।

‘बियाँण्ड द टाइम बैरियर’ में ए. टज्ञमस का प्रकाशित तथ्य बताता है कि वह समय दूर नहीं , जब समय के धरातल पर आगे या पीछे यात्रा करना वास्तविक एवं यथार्थ विषय होगा। ‘टाइम मशीन ‘ में एच.जी. वेल्स की अवधारणा भी इसी तरह प्रतिपादित है। मनीषी जान व्हीलर ने ब्रह्मांड में कुछ ऐसे ‘वार्महोल’ के बारे में प्रकाश डाला है, जिसमें से होकर समय की यात्रा अतीव सरल हो जाएगी। ब्लैक होल में भी समय का सारा मापदण्ड निष्क्रिय तथा समाप्त हो जाता है। उड़नतश्तरियों की रोमाँचक तथा वास्तविक अन्तर्ग्रहीय यात्रा पथ शायद यही ब्लैक होल, हृइट होल तथा वार्म होल होंगे।

अलबर्ट आइन्स्टाइन, बोरिस पोडस्कीतथा नाथन रोजेन का ई. पी. आर. प्रयोग कणों के लोकल और नानलोकल निष्कर्ष का ब्योरा देता है। लोकलिटीं में देश में देश और काल के प्रभाव का नियंत्रण होता है, जबकि यह प्रतिबद्धता क्वाँटम याँत्रिकी के तहत आइन्स्टाइन ने सिद्ध किया है कि दो कणों का सम्बन्ध आपस में अन्योन्याश्रित होता है। इसका एक कण यदि वाशिंगटन वाले कण को छेड़ने पर बम्बई का कण स्वतः प्रभावित हो जाएगा।

इस घटना को पाल डेविस ने अपने शोधग्रन्थ ‘द कास्मिक ब्लून्रिन्ट’ में दूरत्व का अलौकिक कार्य कहा है। सूक्ष्म कण सदा देशकाल से पूरे संचारित होने की क्षमता रखते हैं विचार भी ठीक इसी प्रकार तरंगों से तरंगित होता है। विचार की ऊर्जा तरंग मस्तिष्कीय न्यूरान को एक सुनिश्चित प्रक्रिया से उत्तेजित करती है। इस प्रकार ब्रेन कार्टेक्स में सूक्ष्म तरंग प्रवाहित होने लगती है। इसकी तीव्रता 70 मिलीवाट के बराबर होती है। ऊर्जा का यह प्रसार एक न्यूरान से होकर समस्त न्यूरान में फैल जाता है। विचार रूपी इस ऊर्जा करे इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंग के तहत प्रक्षेपित किया जाय तो काल यात्रा को एक नयी दिशा मिल सकती है। विज्ञानवेत्ता आई. वैटेव ‘स्टाकिंग द वाइल्ड पेण्डुलम’ में इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। यूनिफिकेशन थ्योरी के अनुसार , ध्वनि तरंग, प्रकाश , इलेक्ट्रो डाइनैमिक तथा नाभिकीय विकिरण न केवल पदार्थ में है, बल्कि मानवीय चेतना में भी मौजूद है।

मानवीय मन-मस्तिष्क की अद्भुत क्षमता का परिचय वैज्ञानिकों ने स्पष्ट रूप से स्वीकारा है। अध्यात्मवेत्ता व्यष्टि से समष्टि यात्रा भी मन को ही यान बनाकर करते रहे है। वैज्ञानिकों को तो काल यात्रा के यान्त्रिक सरंजाम जुटाने में अभी लगेगी। सारे साधन जुट जाने पर नहीं मालूम यह प्रक्रिया कितनी खर्चीली साबित हो। पता नहीं सबके लिए उपलब्ध भी हो अथवा नहीं, परन्तु हमें, हम सबको परमेश्वर ने शरीर एवं मन का बहुमूल्य उपहार बिना मूल्य सौंपा है। इसकी असीम सामर्थ्य जगाकर हम काल के विभिन्न आयामों को यात्रा बिना किसी अवरोध के कर सकते हैं। काल का यह रहस्यबोध न केवल हमारे सामने एक नया जादुई संसार खोलेगा, बल्कि हमारे व्यक्तित्व में अनेकों आश्चर्यजनक शक्तियों का भण्डार भी भरेगा।


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