भानुमती का पिटारा और अलादीन का चिराग अपने करिश्मों के लिए प्रसिद्ध है। परंतु इन दोनों के चमत्कारों के योगफल से भी शायद वह मुमकिन नहीं, जो अपना मन कर दिखाता है। इसकी जादुई क्षमताएँ अलौकिक एवं अनोखी है। साथ ही इसके रंग भी इतने है कि कभी-कभी तो खुद को भी पहचानना मुश्किल हो जाता है, क्या यह हम ही है ? अथवा क्या यह अपना ही मन है ? उसकी विद्युत चुम्बकीय तरंगों की घट-बढ़ इसकी क्षमताओं को आश्चर्यजनक ढंग से बदल देती है। कभी इसमें पड़ी दरार एक ही अस्तित्व में दो अलग-अलग व्यक्तियों के अनुसार विशिष्ट चुम्बकीय तरंगों का प्रयोग कर इन दोनों व्यक्तियों को समान रूप से विकसित भी किया जा सकता है।
कुछ ऐसा ही संयोग एक महिला की मनोभूमि में प्राकृतिक यप से घट गया और यह एक ही महिला, अर्लीनग्राण्ट तथा कैण्डों जोन्स नामक दो अलग हीमिकाओं में काम करती रही। एक बार अर्लीनग्राण्ट सेनफ्रांसिस्को से ताइवान गई। वहाँ अच्छे होटल में ठहरी, घूमने का आनन्द लिया। ताइपेई नामक सुन्दर जगह की सैर की तथा वापस सेनफ्रांसिस्को आयी। यह प्रवास एक सप्ताह का था। मॉडलिंग एजेन्सी में काम करने के कारण उसके कार्यालय वालों ने उससे पूछताछ की कि वह कहाँ गई हुई थी। सभी को बहुत आश्चर्य हुआ, जब उसने कहा कि उसे कुछ पता नहीं है, जबकि प्रवास का पूरा प्रमाण उपलब्ध था। वह सब कुछ आश्चर्यजनक एंग से भूल गयी थी।
यह क्रम एक-दो बार और एक-दो दिन नहीं, पूरे बारह साल तक अनेकों बार चलता रहा। परन्तु हर बार आने के पश्चात् वह बीता हुआ सब भूल जाती थी। ग्राण्ट इतनी सुन्दर , बुद्धिमान और अपने काम में इतनी दक्ष थी कि कोई उसके दुहरे व्यक्तित्व की कल्पना नहीं कर सकता था। ग्राण्ट के रूप में वह अमेरिका में 40 वें से 50 वें दशक में अनगिनत पत्रिकाओं के मुखपृष्ठ पर स्वयं को सुशोभित कर चुकी थी, जबकि कैण्डी जोन्स के व्यक्तित्व में वह यायावर थी और इस रूप में उसने पैसिफिक युद्ध क्षेत्र में दो साल की कठोर यातनाएँ सहन की। इस बात की पुष्टि आकलैण्ड के डाक्टर एवं सी. आई. ए. के सदस्य एरील जेन्सन ने अपने दस्तावेजों में की है।
हिप्नोटिज्म के विशेषज्ञ डा. जार्ज इस्टरब्रुक्स ने इस विषय पर काफी अनुसंधान किया है। उन्होंने इस पर अनेकों प्रयोग किए कि किस तरह बहु व्यक्तित्व के प्रत्येक आयामों को अलग−अलग किया जाय। प्रयोग के दौरान उन्होंने उन्हीं व्यक्तियों को चुना तो कई रूपों में जीते थे। इन्हें उन स्थानों पर भेजा गया जिनसे वे सम्बन्धित हों, परन्तु उन्हें इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं हासिल हो सकी। एक विशेष सम्मोहन संकेत से ही इनसे कुछ पता लगा पाना सम्भव हो पाया। कोलगेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर इस्टाब्रुक्स ने पाया कि इन्हें भय या डर दिखाकर रहस्यों को अनावृत नहीं किया जा सकता। क्योंकि ऊपरी नहीं किया जा सकता। क्योंकि ऊपरी तौर पर ये स्वयं अपने मन के रहस्यों से अनजान है।
कैण्डी जोन्स अपने इस रूप में राजनीति, सैन्य-गतिविधियों से सम्बन्धित थी, जबकि अर्लीनग्राण्ट रिसेप्सनिस्ट केसाथ मॉडलिंग का काम करती थी। एक दशक बाद अर्लीन ने न्यूयार्क आकाशवाणी के प्रसिद्ध उद्घोष लाँग जॉन नेबल से शादी की। शादी के कुछ समय बाद उसे दौरा पड़ा और युद्ध कैदी का सारा रहस्य गलने लगी। नेबल को हैरानी हुई कि ऐ सामान्य रिसेप्सनिस्ट का जासूसी जैसे कामों से क्या वास्ता। काफी दिनों के बाद वह सामान्य हो सकी और अपने पुराने व्यक्तित्व में वापस लौट आयी। विख्यात लेखक डोनाल्ड बेन्स ने ‘द कण्ट्रोल ऑफ कैण्डी जोन्स’ में उसके दुहरे व्यक्तित्व का रोचक वर्णन प्रकाशित किया है।
बहुव्यक्तित्व का अध्ययन करने वाले पत्रकार जेम्स. एल. मूरी ने इसे दो प्रकार का बताया है। पहला है, रेडियो हिप्नोटिक इन्द्रा सीरिब्रल कन्ट्रोल तथा दूसरा है इलेक्ट्रॉनिक डिसेसिएशन ऑफ मेमोरी। मूरी के अनुसार इस तरह के बहुव्यक्तित्व एक खास ध्वनि से पहचाने जाते हैं। ऐसे लोगों के मस्तिष्क से एक विशेष प्रकार की तरंग निकलती है, जो व्यवहारों में अचानक परिवर्तन ला देती है और व्यक्ति अनायास ही दूसरी तरह के काम करने लग जाता है ई. डी. ओ, एम. में एसिटोकोलीन नामक हार्मोन की मुख्य भूमिका रहती है। यह हार्मोन विद्युत आवेश को इन्द्रियों से मस्तिष्क तक पहुँचाता है। स्मृति केन्द्र इसे रिकार्ड कर लेता है। एसिटोकोलीन स्नायु में एक तरह की वायरिंग का काम करता है। जब यह सक्रिय हो जाता है तो व्यक्ति अतीत में किए गए सारे कामों को भूल जाता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि दोहरे व्यक्तित्व में सम्भवतः यही प्रक्रिया होती होगी।
मन की विद्युत चुम्बकीय तरंगों में जब दरार पड़ती है , तो बहुव्यक्तित्व या दोहरे व्यक्तित्व का जन्म होता है और जब इनमें बढ़ोत्तरी होती है तो व्यक्ति की स्मृति क्षमता अत्यधिक बढ़ जाती है। अपनी इसी क्षमता के कारण इजराइल के मास्टर जासूस एलीकोहेन सुपर मेमोरी के रूप में विख्यात थे। उन्हें एक बार देखी हुई चीज याद रखने की अद्भुत क्षमता थी। इनका दिमाग एक फोटो सेल के रूप में काम करता था। उसने 1967 में अजराइली युद्ध में अपनी इस सुपर मेमोरी का प्रयोग किया था। वह शत्रु की असंख्य सेना को देखते ही उसकी सभी प्रकार की सेना, रणनीति, संख्या आदि का पूरा विवरण दे देता था। सारा देखा आ दृश्य वीडियो कैमरे की तरह अंकित कर लेता था।अनगिनत कैदियों एवं अन्यान्य लोगों को पारिवारिक, साँस्कृतिक, व्यावसायिक आदि असंख्य बातों की एवं उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी की विभिन्न जानकारियाँ याद कर लेना उसके लिए आम बात थी। जरूरत पड़ने पर कम्प्यूटर की तरह समय-समय पर उससे ये जानकारियां ले ली जाती थी।
डब्लू. एच. बोवार्ट ने अपनी पुस्तक ‘आप्रेशन माअण्ड कन्ट्रोल’ में मानव मन के ऐसे अनेकों चमत्कारों का वर्णन किया है। उनके अनुसार शरीर में बायोइलेक्ट्रिक, बायेमैग्नेटिक एवं बायोप्लाज्मिक कई तरह की ऊर्जाएँ क्रियाशील रहती है। मन का जादू ही इन्हें नियन्त्रित एवं सक्रिय करता है। मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं। कि ध्यान की मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि ध्यान की प्रक्रिया इसे अपेक्षाकृत अधिक जाग्रत करती है। इससे न केवल स्मृति, बल्कि व्यवहार भी प्रभावित होता है। सन् 1983 में लोमा लीडा व्ही. ए. हास्पिटल के डॉ. एस. एडी ने अपनी मनःशक्ति से मशीन के प्रभाव को समाप्त कर दिया था। वह अपनी चेतना के उच्चतर आयामों में पहुंचकर वहाँ के दृश्यों एवं घटनाओं का यथावत् वर्णन कर देते थे। इसके पास भी गजब की स्मरण शक्ति थी।
डॉ. एस. एडी का कहना है कि मस्तिष्क के आगे से पीछे की ओर यदि लो वोल्टेज करेंट प्रवाहित किया जाय तो जाग्रत चेतना की निरस्त किया जा सकता है। सिराकुज व्ही. ए. अस्पताल के डॉ. राबर्ट बेकर ने भी इस बात कर समर्थन किया है कि मजबूत चुम्बकीय प्रवाह भी स्मृति का नाश कर सकता है। बोवार्ट के मतानुसार माइकोवेव्य की निश्चित आवृत्ति से मस्तिष्कीय तरंगों में परिवर्तन हो जाता है तथा भ्रमात्मक स्थिति पैदा हो जाती है। वैज्ञानिक सर्वेक्षणों से पता चला है। कि सन् 1960 सू 80 के दशक में नाभिकीय आयुधों की तरंगों से लोगों के मन, विचार व व्यवहार बुरी तरह गड़बड़ा है।
सही माने में मन एक तरह की तरंग ही तो है, जो अपनी समान आवृत्ति की तरंगों से प्रभावित होता रहता है। सन् 1975 में रूस ने जबर्दस्त रेडियो संकेतों को प्रक्षेपित किया था। इसे वुडपेकर ट्राँसमिशन के रूप में जाना जाता है। यह ट्राँसमिशन 3,26 ओर 17.54 मेगाहटर्ज का था, जिसने मुख्यतः 6 से 11 हर्जज की मस्तिष्कीय तरंगों पर प्रभाव डाला। वुडपेकर के अनुसार इ. एल. एफ. पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक प्रदूषण फैलाता है, जिससे मौसम परिवर्तित होने के ही साथ मानसिक हलचलें भी तेज होती है। पेन्सेकोला लैबोरेटरी के शोध अध्ययन में कहा गया है कि एयर फोर्स तथा रासायनिक आयुधों के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक राडार वाले क्षेत्र के पास रहने वाले व्यक्तियों को अप्रत्याशित मानसिक परेशानियाँ झेलनी पड़ती है।
मन की दोहरी अथवा बहुआयामी कार्यप्रणाली के बारे इंग्लैण्ड के फ्रेडरिक डब्लू.एच. मेयर्स. फ्राँस के अल्फ्रेड विनेट और पियरी जेनेट तथा अमेरिका के विलियम जेम्स ने काफी खोज-बीन की है। इन्होंने अपने अध्ययन में मन एवं स्मृति के अनेक तथ्यों को स्पष्ट किया है। विलियम जेम्स के अनुसार मन की तरंगों को नियन्त्रित , अभिवर्द्धित करके कोई भी अद्भुत क्षमताएँ अर्जित कर सकता है। स्मरण शक्ति के मामले में उन्होंने एक अँग्रेज आर्थर भौतिकी, रसायन, मेडिसिन तथा भाषा विज्ञान के प्राध्यापक है इन्हें अरबी का भी अच्छा ज्ञान हैं।
उनके अनुसार इससे आगे का स्तर अतीन्द्रिय क्षमता का हैं। वैसे इसका अनुभव कम ही लोग प्राप्त कर पाते हैं। क्योंकि वे अपने मन की तरंगों को वातावरण की हलचलों के प्रभाव से बचाकर उच्चस्तरीय आयाम तक ले जाने में प्रायः असफल रहते हैं। हालाँकि प्रकृति ने हर छठवें प्रकृति ने हर छठवें बच्चे में इसके बीज सँजो रखे है। कैनोलिया विल्बर के अनुसार जो इसे विकसित कर लेते हैं उनका आई. कयू. दो सौ से अधिक पहुँच जाता है। साथ ही इनमें दूरश्रवण ,
दूरदर्शन आदि की क्षमताएँ क्रमशः प्रकट होने लगती है। डॉ. डेविड कौल ने एक ऐसे व्यक्ति का उल्लेख किया है जो एक सेकेंड के हजारवें से कम समय में हजारों में हजारों प्रकार की सुगंध को पहचान लेता है।
मन की आश्चर्यजनक क्षमताओं के परिप्रेक्ष्य में डेनयल कीस ने बिलोंमिलोगन नामक महिला से साक्षात्कार किया तथा उन्होंने इसे ‘द माइण्ड ऑफ बिली मिलीगन ‘के नाम से प्रकाशित किया। बिली में गजब की स्मरण शक्ति थी। साक्षात्कार के दौरान उन्होंने बताया कि जब वह एक माह की नवजात शिशु थीं तब उनका ऐक्सीडेंट हो गया था। उनका अस्पताल में किस तरह आप्रेशन किया गया, उसका पूरा विवरण वे इस तरह से सुना गयी, मानों अभी यह कल की घटना हो।
‘नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ’ के डा. फ्रैक फुटनाम का तर्क है कि असाधारण मानसिक क्षमता वाले व्यक्तियों की मानसिक तरंगें कुछ अलग तरह की होती हैं ‘लायल यूनिवर्सिटी’ के डा. राबर्ट डीबरों की मान्यता है कि ऐसे व्यक्तियों में घाव जल्दी भरने लगते हैं। इनके शरीर की कोशिकाओं की जीवन-शक्ति भी अपेक्षाकृत अधिक रहती है, जिससे ये जल्दी स्वस्थ हो जाती है। डा. अब्रेजल रोग को अचेतन की याददाश्त मानते हैं। उनके अनुसार अपने मन की तरंगों को नियन्त्रित करने वाला अचेतन को परिवर्तित कर सकता है। जिससे सभी तरह के रोगों का निवारण सम्भव है।
रूस के स्टानीस्लेवेस्की का दावा है कि उन्होंने राजयोग के द्वारा अपने मन पर नियंत्रण कर लिया था। इस प्रक्रिया में उन्होंने आश्चर्यजनक मानसिक शक्तियाँ अर्जित कीं। उनका मानना है कि यदि मन को विद्युत चुम्बकीय तरंगों को यदि यौगिक रीति से बाँटा जा सके तो दुर्योग-सा लगने वाला विभाजित व्यक्तित्व सचमुच दो अलग-अलग समर्थ एवं सशक्त व्यक्तियों में बदल सकता है।
डा. जेनीफर अपनी पुस्तक ‘माइण्ड एण्ड मिस्ट्री ‘
में कहते हैं कि ध्यान एवं योगाभ्यास आज के प्रदूषित युग में अपरिहार्य एवं अनिवार्य है। इससे हम तनावमुक्त रह सकते हैं। इस प्रक्रिया से मन की तरंगेँ इतनी समर्थता अर्जित कर लेती है कि वे अनेक दुष्प्रभावों से अपने आप बची रहती है। यही नहीं यदि इस अभ्यास को जारी रखा, जा सके तो असामान्य स्मरण शक्ति, अतीन्द्रिय क्षमताएँ एवं अलौकिक सामर्थ्य प्राप्त होती है। अपने व्यक्तित्व को अनेक हिस्सों में बाँट कर उनसे अलग-अलग काम लेना इस साधना का उच्चस्तरीय आयाम है। इस साधना के अनुभवी ही जानते हैं कि भानुमती के पिटारे के अजूबे एवं अलादीन के चिराग के चमत्कार और कहीं नहीं अपने मन में ही है।