सन् १८५७ की प्रथम भारतीय क्रान्ति का वेग अपनी पूरी तीव्रता पर था। बस ऐसा लगता था, सारे देश की धरती से अँग्रेजों का शासन अब गया, तब गया। अंग्रेज सरकार हैदराबाद राज्य को भी इसकी लपटों से बचा न सकी। यहाँ पर सर सालारजंग नामक एक अँग्रेज परस्त दीवान शासन चला रहा था। उसकी निर्दयता के किस्से मशहूर थे।
हैदराबाद के समीप जौरापुर नाम की छोटी सी रियासत थी। यहाँ के राजा किशोरवय का था। हैदराबाद के जालिम दीवान और बेईमान निजाम की नजर जौरापुर पर थी।
जौरापुर का यह राजा देशप्रेमी था। १८५७ की क्रान्ति की चिंगारी उसके हृदय में ज्वाला बन चुकी थी। रुहेलखण्ड में रहने वाले पठानों और अरब लोगों की एक सेना बनाई और अंग्रेज सेना पर बिजली बनकर टूट पड़ा ।
अँग्रेजों के लिए उसकी वीरता सिरदर्द बन गयी। चालाक दीवान सालारजंग ने उसे फसाने के लिए एक कुटिल चाल चली। तेजस्वी और पराक्रमी बालक राजा दीवान की धूर्तता को न भाँप सका और उसकी चाल में फँस गया। सालारजंग ने उसे कैद कर लिया।
कैद करने के पश्चात सालारजंग ने तरुण राजा से पूछा-बोलो तुम्हारे कितने साथी हैं? साथियों के नाम भी बताओ।”
“नहीं बताऊँगा । मैं किसी का नाम नहीं बताऊँगा। जोशपूर्वक तरुण राजा ने कहा।
उससे राज उगलवाने के लिए फिरंगियों ने दूसरी तरकीब काम में ली। उस बालक कैदी के पास उसके एक परिचित अंग्रेज अफसर निडोज टेलर को पूछताछ के लिए भेजा। निडोज टेलर ने बड़े प्यार के साथ उससे पूछा-” देखो बेटा! तुम तो अंग्रेज सरकार की नीति से अच्छी तरह परिचित हो। उसके पूर्व कि वे तुम्हारा अहित करें, तुम अपनी बुद्धि से काम लो और अपने साथियों के नाम बता दो।”
“टेलर अप्पा ! मैं आपसे आज भी उतना ही प्रेम करता हूँ, जितना पहले करता था। लेकिन यह मेरे देश का सवाल है। मैं अपने प्राण बचाने के लिए अपने देशवासियों के साथ गद्दारी नहीं कर सकता। अँग्रेज सरकार मुझे तोप से ही क्यों न उड़ा दे। देशद्रोही की तरह, कायर की तरह विदेशियों की गुलामी स्वीकार करने से तो शूरवीर की तरह शहीद हो जाना अधिक अच्छा रहेगा।”
“मेरी बात मान लो। मैं तुमसे बड़ा हूँ। मैं तुम्हें गलत सलाह नहीं दे सकता। मैं तुम्हारा अहित नहीं चाहता।” अँग्रेज टेलर ने उसे मनाने की कोशिश की।
“नहीं टेलर अप्पा ! जौरापुर के बालक राजा के स्वर में पर्याप्त दृढ़ता थी- “मैं अपने देश के साथ, अपने साथियों के साथ गद्दारी नहीं कर सकता।”
“समझ से काम लो मेरे बेटे!” टेलर के स्वर में उसे न समझा पाने की हताशा झलकने लगी, नाम बता दो और सम्मान सहित आजाद हो जाओ।”
“धिक्कार है ऐसी आजादी को .... टेलर अप्पा, मैं उन लोगों में से नहीं हूँ, जो यातना के भय से टूट जाते हैं। आप देखना मैं शहीद हो जाऊँगा, लेकिन अपने साथियों का नाम नहीं बताऊँगा
जौरापुर का राजा किसी भी तरह टस से मस नहीं हो रहा था। हार कर निडोज टेलर ने एक नयी चाल चली। अगले दिन वे पुनः बालक राजा के पास पहुँचे और स्नेहपूर्वक पूछा-कहो बेटे कैसे हो ?”
“ कल से अधिक मजबूत। अपने इरादे पर अटल।”
“ मैं यह बात नहीं कर रहा हूँ। अच्छा तुम मेरी एक बात मानोगे ?”
“ सिर्फ नाम बताने को न कहें बाकी आपकी सभी बातें मानने के लिए तैयार हूँ।” “तो फिर चलो अँग्रेज रेजीमेण्ट से मिलकर समझौता कर लो।”
“कैसा समझौता?” जौरापुर के राजा ने चौंककर कहा, फिर कुछ पल रुककर मुस्कुराते हुए बोला-” टेलर अप्पा! आप समझौते की बात कर रहें हैं। मैं तो उनसे मिलना तक पसंद नहीं करता। मैं जौरापुर का राजा हूँ राजा। तोप के मुँह पर मरना पसंद करता हूँ और यह मौत उतनी बुरी नहीं है, जितनी कि देश के साथ गद्दारी कर जीने में है।”
निडोज टेलर हारकर बिना कुछ बोले चले गये। वे अंग्रेज रेजीमेण्ट के पास पहुँचे और जौरापुर के बालक राजा का निर्णय सुना दिया। अंग्रेज रेजीमेण्ट ने उसे फाँसी की सजा सुना दी।
निडोज टेलर पुनः उस साहसी किशोर के पास पहुँचे। बोले- “बेटा! मुझे दुःख है कि अँग्रेज रेजीमेण्ट ने तुम्हें माफ नहीं किया।”
“ मैं थूकता हूँ ऐसी माफी पर।” जोश में वह बोल पड़ा ।
“ टेलर अप्पा! जीवन में मौत सिर्फ एक बार आती है अब यह हमारा काम है कि वह शान से आये। हम उसका स्वागत करें। हम यदि कर्तव्य से गिरते हैं तो वह हमारे लिए कलंक बन जायेगी।”
“ मेरे लिए कोई काम हो तो कहो?” निडोज टेलर ने संवेदना जताते हुए कहा।
“ हाँ टेलर अप्पा! आप से एक प्रार्थना है। आप ऐसी व्यवस्था करवा दें कि मुझे फाँसी न देकर तोप से उड़ाया जाये। मेरी दृष्टि में फाँसी चोरों के लिए है और मैं चोर नहीं देशभक्त हूँ। अगर आपने मेरे लिए तोप के मुँह से उड़ने का प्रबन्ध कर दिया तो आप स्वयं देखेंगे कि मैं कितनी शान और शान्ति के साथ भारतमाता की जय बोलते हुए तोप के मुँह की ओर अटल खड. रहूँगा।”
“नहीं नहीं।” टेलर ने लगभग काँपते स्वर में कहा-मैं कोशिश करूँगा कि तुम्हें मृत्युदण्ड न दिया जाये। अच्छा तो यही रहेगा कि तुम्हें काला पानी भेज दिया जाये।”
“आप ऐसा न करें टेलर अप्पा। काले पानी की सजा से तो मैं तोप की मौत अधिक बेहतर समझता हूँ। कैद तो मेरी प्रजा का छोटे से छोटा पहाड़ी आदमी भी रहना पसन्द नहीं करेगा, फिर मैं तो उनका राजा हूँ। जिऊँगा तो एक वीर की तरह और मरूँगा तो भी एक वीर की तरह।
जौरापुर के राजा के इस वक्तव्य के बाद निडोज टेलर ने बहुत दौड़-धूप की और किसी तरह उसकी सजा को परिवर्तित करवा कर ही दम लिया। लेकिन टेलर को क्या मालूम था कि यह देशभक्त बालक काला पानी की कैद कभी भी स्वीकार नहीं करेगा ?
जिस दिन उसे काला पानी के लिए ले जाया जा रहा था, तभी उसने अपने पास वाले सिपाही की पिस्तौल छीनकर पलक झपकते ही अपने ऊपर गोली दाग ली।
सभी उसके इस बलिदान पर हतप्रभ रह गये। जौरापुर का बारह वर्षीय बालक राजा अब अमर शहीद सुवीर कृष्णमाचारी हो गया। अनेक कंठ बरबस उसकी जय बोल उठें।