स्थूल लीला संवरण और उसके बाद - सूक्ष्मीकरण साधना और तदनंतर गायत्री जयंती २ जून, १९९० को परमपूज्य गुरुदेव ने अपनी स्थूल गतिविधियों को विराम दिया तो एक बार फिर लोगों को लगा, अब इस मिशन का क्या होगा ? महाप्रयाण से पूर्व परमपूज्य गुरुदेव ने स्वयं ही यह बात स्पष्ट कर दी थी कि वे अभी अपना स्थूल शरीर भर छोड़ रहे हैं, लम्बे समय तक वे अपने सूक्ष्मशरीर से शान्तिकुञ्ज में बने रहेंगे और सत्र-संचालन अपने हाथ में बनाये रखेंगे। डाक्टर्स भी इस बात की पुष्टि करते हैं, जब तक मस्तिष्क गर्म रहे तब तक ‘क्लिनिकल डेथ’ घोषित नहीं की जाती सो शान्तिकुञ्ज स्थित उनकी सक्रियता एक प्रश्न रहित यथार्थ है। इस सच को लाखों लोगों ने १९९१ के श्रद्धाञ्जलि समारोह में देखा। रोते हुए अर्जुन को अपना विराट् स्वरूप दिखाकर भगवान् श्रीकृष्ण ने युद्ध के लिए जिस तरह सहमत किया, उसी तरह देवसंस्कृति संग्राम के लिए परमपूज्य गुरुदेव की सूक्ष्म सत्ता न गायत्री परिवार रजामंद किया। वंदनीया माताजी ने उसी तरह सारी कमान अपने हाथों में सँभाल ली, जिस तरह देवी भागवत् में तीनों कालों में विश्रामरत भगवान् विष्णु की अनुपस्थिति में भगवती दुर्गा ने देवताओं का सेनापतित्व सँभाला। परमपूज्य गुरुदेव की अन्तरंग व्यवस्थापिका, वाह्य रणक्षेत्र का इतना कुशल संचालन करेंगी शायद यह विश्वास बहुतों को न रहा हो।
*समाप्त*