रहस्यों से भरे ये विचित्र संयोग

August 1997

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मानव जीवन एवं प्रकृति जगत में कई बार विचित्र संयोग देखे जाते हैं। सामान्यजन इन्हें चमत्कार, दैवी प्रयास या भाग्य कहकर चुप हो जाते हैं। परन्तु वैज्ञानिकों के लिए इस तरह की घटनाएँ सदा से चुनौती का विषय रहीं हैं। चमत्कार कहकर वे स्वयं को नासमझ या पिछड़ा हुआ घोषित नहीं करना चाहतें, फिर भी उन्हें झुठला नहीं पाते। इसी कारण अपवाद कहकर बहुधा उन्हें टाल दिया जाता है। इतने पर भी संयोग किन्हीं अकाट्य नियमों से बन्धे हुए हैं और रहस्योद्घाटन की अपेक्षा रखते हैं।

इस संदर्भ में सुविख्यात लेखक एवं दार्शनिक आर्थर कोस्लर ने संयोगों को अद्भुत चमत्कार मानते हुए कहा है कि-वे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, उन्हें नकारा नहीं जाना चाहिए। उन्होंने ऐसी अनेकों घटनाओं के विश्लेषण के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि जीव विज्ञान और भौतिक विज्ञान सम्बन्धी आधुनिक खोज प्रकृति की उस मूल शक्ति की ओर प्रबल संकेत करती है जो अव्यवस्था में भी व्यवस्था बनाए रखती है। इसी को देखकर लगता है कि हमारे ज्ञान से परे कोई शक्ति काम कर रही है।”

अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘ द रुट्स आफ कॉइन्सीडेन्ट ‘ में कोस्लर ने स्पष्ट लिखा है कि हम निस्सन्देह संयोगपरक चमत्कारों से घिरे हुए है , जिनके अस्तित्व की अब तक हम उपेक्षा करते रहें है। यही कारण है कि इन्हें अन्धविश्वास से अधिक कुछ माना नहीं गया है। यह रहस्य मनुष्य सदियों तक नहीं समझ पाया कि सूक्ष्म जगत कितना अद्भुत , कितना विलक्षण है , ऐसी कितनी ही घटनाएँ इसकी साक्षी हैं।

दार्शनिक कोस्लर ने प्रख्यात मनोवेत्ता कार्ल गुस्ताफ जुँग की एक पुस्तक का हवाला देते हुए लिखा है कि जुँग ने संयोगों के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए उन्हें-सिन्क्रोनिसिटी अर्थात् सहसामयिकता नाम दिया जाता है। जुँग ने सहयोगी सुप्रसिद्ध भौतिकविद् बुल्फ गैंग पाउली ने तो यह बात कहकर बला टाल दी थी कि संयोग ऐसे सिद्धान्तों के दिखाई देने पाले चिन्ह है , जिनकी खोज नहीं की जा सकती। लेकिन जुँग ने इतने से ही संतोष नहीं किया , वरन् अपनी खोज को आगे भी जारी रखा। ऐसी हर बात पर जो कारण और परिणाम के सम्बन्धों पर पूरी न उतरती हो , अचेतन का प्रभाव होता है , ऐसा जुँग का मत था। उनका कहना था कि-” यह अचेतन मन ही स्मृतियों का ऐसा गुप्त आकार है जिससे विभिन्न मस्तिष्क एक दूसरे को अपनी बात पहुँचाते हैं “।

सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक मनीषी एलन वान ने अपनी कृति ‘ इनक्रेडिबल काॅइन्सीडेन्स ‘ में कोस्लर की मान्यताओं का प्रतिपादन करते हुए संयोग सम्बन्धी ऐसी १५२ घटनाओं का विस्तारपूर्वक उल्लेख किया है जिनका प्रत्यक्षतः ढूँढ़ने पर कोई कारण नहीं मिलता। ये घटना- प्रसंग अनेकों वैज्ञानिकों को इतने रोचक लगे कि उनसे चुप नहीं बैठे रहा गया। पिछले ५०-६० वर्षों की ऐसी सभी घटनाओं का खोज- बान की व यह पाया गया कि कोई अदृश्य सत्ता , जिसकी अभी खोज नहीं हो पाया है, ऐसे संयोगों के मूल में काम करती है। विख्यात गणितज्ञ डॉ. एड्रियन डाब्स ने विभिन्न परीक्षणों के उपरांत बताया कि इस निखिल ब्रह्माण्ड में ऐसी शक्तियाँ निरन्तर गतिशील रहती हैं जो राडार की तरह भावी सम्भावनाओं का पूर्ण संकेत देती हैं। अपनी उक्त पुस्तक-द रुट्स ऑफ काइन्सीडेन्स” में कोस्लर ने डॉ. डाब्स के विचारों का उल्लेख करते हुए ये कहा है कि सन्देशवाहक शक्तियाँ मनुष्य की ज्ञानेन्द्रियों के सतत् संपर्क में रहती हैं एवं मस्तिष्क में एक प्रकार से पूर्वानुभूती को जन्म देती है।

“इनक्रेडिबल काइन्सीडेन्स” पुस्तक में ऐलन वान ने एक घटना का उल्लेख किया है। प्रिंस एडवर्ड द्वीप के निवासी कोगलान की टैक्सास स्थित गाल वेस्टन नामक स्थान पर सन् १८९९ में एक यात्रा के दौरान मृत्यु हो गयी। उन्हें वहीं के मकबरे में शीशे की परतों से मढ़े हुए ताबूत में दफना दिया गया। एक वर्ष भी पूरा नहीं हुआ था कि सितम्बर १९०० में गाल वेस्टन द्वीप में भीषण तूफान आया और कब्रिस्तान में पानी भर गया। तूफान की स्थिति में ही कोगलान का ताबूत मक़बरे से निकल कर बहता-बहता मैक्सिको की खाड़ी जा पहुँचा। वहाँ से वह ताबूत फ्लोरिडा का चक्कर काट कर अटलांटिक महासागर में आ गया। क्रमशः पानी का प्रवाह उसे उत्तर दिशा में ले गया। आठ वर्ष बाद अक्टूबर १९०८ में प्रिंस एडवर्ड द्वीप के कुछ मछुआरों ने तूफानी लहरों के बीच पड़े डिब्बे को पानी में तैरते पाया तो उत्सुकतावश किनारे लाकर उसे खोलकर देखा। कोगलान का नाम अंकित देख वे तुरन्त पहचान गये। यह समुद्री किनारा उसके गाँव से कुछ ही मील दूरी पर था। कोगलान के शव को उचित सम्मान के साथ उस गिरजे के कब्रिस्तान में पुनः दफना दिया। यह ताबूत भटकते-भटकते किस प्रकार आठ वर्ष बाद मृतक के जन्म स्थान पर पहुँच गया, इस पर आश्चर्य होना स्वाभाविक है।

ख्यातिलब्ध लेखक रिचर्ड बाँक ने अपनी कृति ‘ नथिंग बाइचाँस ‘ में इसी तरह की स्वयं के साथ घटी एक घटना का वर्णन किया है। बाँक सन् १९६६ में अमेरिका के मध्य पश्चिम क्षेत्र में दो फलक वाले एक विमान में यात्रा कर रहे थे। यह विमान दुर्लभ प्रकार का डेट्राइट पी-ए टाइप का था। अमेरिका में उस समय इस तरह के केवल आठ विमान ही बने थे वे विश्व भर में केवल इतने ही थे। विस्काँन्सिन स्थित पायीरो नामक स्थान में रिचर्ड न यह विमान अपने सहचालक मित्र पायलट को चलाने के लिए दिया। विमान उतारते समय साथी से थोड़ी भूल हो गई और विमान क्षतिग्रस्त हो गया। वे लिखते हैं कि- “हमने दबाव को रोकने वाले एक पुरजे को छोड़कर शेष प्रत्येक पुरजे की मरम्मत कर दी थी। इस एक पुरजे की मरम्मत इस लिए न हो सकी कि उसके दुर्लभ होने से वह भाग कहीं भी मिलना सम्भव न था। तभी एक व्यक्ति आया जिसने स्वयं ही उत्सुकतावश उनकी परेशानी पूछी। संयोगवश उसकी विमानशाला में उस विमान के उपयुक्त ४० वर्ष पुराना एक पुर्जा मिल गया और हम अपने वायुयान की मरम्मत कर उसे चला पाने में कामयाब हो गये। यह एक संयोग ही था कि उस अपरिचित इलाके में ठीक वही पुरजा मिल गया जिसे खोज कर हम हार गये थे।”

न्यूजीलैंड के कुक जलडमरु-मध्य में दो शौकिया नाविक महिलाएँ अपना सप्ताहांत बिता रहीं थी। इसी बीच उनकी नाव एक समुद्री चक्रवात में फँस कर उलट गयी। दोनों महिलाएँ कुछ दूर तक तैरी, पर किनारा दूर था, नजदीक कोई दूसरा साधन नहीं था। इसी बीच एक मृत ह्वेल मछली की लाश पानी में तैरती हुई उनके समीप लहरों के साथ आ गयी। वे उस पर चढ़कर उसे नाव की तरह खेती हुई किनारे पर आ गयीं और सकुशल घर पहुँच गईं। इसे संयोग के अतिरिक्त और क्या कहा जाएगा ?

घटना सन् १९७३ की है। फैलमाउथ-अमेरिका के एडविन रॉबिन्सन नामक एक व्यक्ति की आँखों की ज्योति एक सड़क दुर्घटना में चली गयी थी। उसके चिकित्सक डा. विलियम टेलर परीक्षणोंपरांत बताया कि अब नेत्र-ज्योति का सही होना सम्भव नहीं है। संयोगवश १९८२ की जुलाई में वे अकेले घर लौटते हुए भयंकर वर्षा वाले तूफान में फँस गये। पेड़ के नीचे शरण पाने के लिए उन्होंने अपनी धातु की छड़ी का प्रयोग किया तभी जोरों से विद्युतगर्जन हुआ और उन्हें लगा कि समीप ही बिजली गिरी है। वे धक्का खाकर गिर पड़ा । लेकिन पाँच मिनट बाद जब किसी तरह उठे तो पाया कि उनका श्रवण यंत्र तो बेकार हो निकल गया, लेकिन वे इसके बिना भी सुन सकते हैं। आँखों से उन्हें सबकुछ दिखाई भी दे रहा था। प्रसन्न मन वे वापस घर लौटे। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार यह विज्ञान के समझ में न आ सकने वाले कई वैचित्र्यपूर्ण संयोगों में से एक है, जिसका कोई समाधान नहीं दिया जा सकता है।

मैरी गैलेन्ट प्रान्त के फ्रांसीसी गवर्नर की तीन वर्षीय पुत्री एक समुद्री यात्रा पर पिता के साथ थी। रास्ते में वह बीमार पड़ी और मर गयी। उसकी लाश बोरे में सीकर बन्द कर दी गयी ताकि उसे जल में उपर्युक्त स्थान पर डाला जा सके। कुछ समय उपरान्त देखा गया कि जहाज में पालतू बिल्ली लाश के पास चक्कर काट रही है। आमतौर से बिल्ली लाश से दूर रहती है। सन्देह हुआ कि कहीं बच्ची जीवित तो नहीं है। २४ घंटे बीत चुके थे, फिर भी बोरा खोला गया तो देखा कि लड़की की हलकी-हलकी साँसें चल रहीं हैं। उसकी चिकित्सा हुई और वह ठीक हो गयी। बड़ी होने पर उसका विवाह फ्राँस के राजा लुई चौदहवें के साथ हुआ और वह ८४ वर्ष के आयु तक जीवित रही।

सन् १८२५ की एक घटना है। पश्चिमी जर्मनी के वाइफ कस्बे में समुद्र तट पर भयानक समुद्री तूफान आया। असंख्यों परिवार उसमें डूब गये, फिर भी पालने से बंधे दो बच्चे जीवित अवस्था में किनारे पर पड़े पाये गये, किसी माता ने इन बच्चों के तैरने की सुविधा सोचकर पालने से बाँध दिया होगा। वे डूबे नहीं, किनारे आ लगे। उन्हें एक समुद्री जहाज के मालिक ने उठाया और उनका पालन-पोषण किया। बड़ा होने पर वे पालने वाले के उत्तराधिकारी बनें और जहाजों के मालिक कहलाए। जिन्दगी उन्होंने समुद्र में ही बिताई और अंततः किसी समुद्री तूफान में फँस कर जहाज समेत समुद्र के गर्भ में समा गये।

कैन्सास के आर्थर स्टिवैल ने एक लम्बा रेलमार्ग बनाने की जिम्मेदारी ली थी। काम ठीक तरह आरम्भ नहीं हो पाया था कि एक अप्रत्याशित झंझट आ खड. हुआ। इस जमीन पर एक व्यक्ति ने अपने अधिकार का दावा ठोक दिया। और कोर्ट से निषेधाज्ञा निकलवा कर काम रुकवा दिया। बहुत समय तक इस अवरोध के बाद आर्थर ने सपना देखा कि जमीन का असली मालिक कोई कर्से नामक व्यक्ति है। खोज की गयी। कर्से मर चुका था। उसके उत्तराधिकारी भी इस जमीन के बारे में अनभिज्ञ थे। पर जब सपने के हवाले से उसने जबरन कागजों की खोजबीन करायी, तो ऐसे प्रमाण मिल गये जिनमें वे लोग ही जमीन के असली मालिक सिद्ध होते थे। अन्ततः उन लोगों से समझौता करके रेलवे लाइन का काम फिर चालू किया गया और वह यथासमय पूरा भी हो गया। यह काम पूरा होने पर उसे करोड़ों का लाभ हुआ।

इन्हें संयोग कहें या अदृश्य दैवी सहायता, पर हैं ये अपने आप में बड़ी विचित्र और अबूझ। इनकी गुत्थी सुलझाने में विज्ञानवेत्ता अभी तक सफल नहीं हुए है। एक ऐसी ही घटना ओहियो के फिलिप रैडल नामक व्यक्ति के साथ घटित हुई। फिलिप के दाहिने फेफड़े. में दुर्घटनावश एक गोली लगी और वह इतनी गहरी घुस गयी कि उन दिनों के साधनों को देखते हुए उसे निकालना सम्भव न था। शल्य चिकित्सकों ने असमर्थता व निराशा व्यक्त की और आपरेशन करने से इनकार कर दिया। घायल फिलिप ऐसे ही अस्पताल में पड़ा रहा। एक दिन उसे जोरों की खाँसी आयी और गोली मुँह के रास्ते बाहर निकल गयी।

प्रकृति-जगत और जीव-जगत में इस तरह के कितने ही चित्र-विचित्र संयोग घटित होते रहते हैं। वे लगते तो संयोग, अदृश्य दैवी सहायता या भाग्य जैसे है, पर वस्तुतः उनके पीछे विश्व-व्यवस्था के किन्हीं अकाट्य नियमों को काम करते समझा जा सकता है और उन रहस्यों का पता लगाने हेतु नये सिरे से प्रयास-पुरुषार्थ आरम्भ किया जा सकता है।


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