ब्रह्मकमल (Kahani)

August 1997

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महर्षि जावालि ने उस पर्वत पर ब्रह्मकमल खिला देखा। शोभा और सुगन्ध पर मुग्ध होकर ऋषि को समीप आया देख, पुष्प प्रसन्न तो हुआ, पर साथ ही आश्चर्य व्यक्त करते हुए आगमन का कष्ट उठाने का कारण भी पूछा। जावालि बोले- तुम्हें शिव-सामीप्य का श्रेय देने की इच्छा हुई, सो अनुग्रह के लिए तोड़ने आ पहुँचा। पुष्प की प्रसन्नता खिन्नता में बदल गई। उदासी का कारण महर्षि ने पूछा, तो फूल ने कहा- शिव सामीप्य का लोभ संवरण न कर सकने वाले कम नहीं । फिर देवता को पुष्प जैसी मधुमक्खियों जैसे छोटे कृमि-कीटकों की कुछ सहायता करता रहता , तो क्या बुरा था |  आखिर उस क्षेत्र को खद की भी तो आवश्यकता थी, जहाँ से उगा और बढ़ा । ऋषि ने पुष्प की भाव-गरिमा को समझा और वे उसे यथास्थान छोड़कर वापस लौट आए।


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