वैधव्य का भार सहते हुए भी माँ ने पुत्र का पालन कर उसे बड़ा किया; किन्तु पुत्र तो अपनी वृद्धा माता को निराश्रित छोड़ तांत्रिक साधना करके शक्ति पाने घर से निकल पड़ा। देव शर्मा नामक इस युवक ने अपनी ताँत्रिक सिद्धियों के बल से अपना चीवर लेकर उड़ते दो कौओं को भस्म होते देख वह अभिमान से भर उठा।
एक सद्गृहिणी के द्वार पर वह भिक्षा देने में देर होते देख वह क्रोध से भर उठा, तो गृहिणी बोली-”महात्माजी। आप शाप देना जानते है; पर मैं कोई कौआ नहीं हूँ, जो भस्म हो जाऊँ। जिस माँ ने तुम्हें जीवन भर पाला उसे त्याग कर मुक्ति के लिए भटकते आप मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।”
“यह सुन देव शर्मा को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने पूछा-”आप कौन-सी साधना करती हैं?” कर्तव्य साधना।” देव शर्मा भी ताँत्रिक साधना छोड़ अपनी माँ की सेवा करने चल पड़ा।