बिना परिश्रम का धन - शैतान का

June 1996

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आँख मलते हुए उसने पलकें झपकाई। उसके चेहरे पर अभी भी भय और आश्चर्य मिश्रित भाव थे वह हड़बड़ा कर उठा और लगभग दौड़ते हुए बुढ़िया की चारपाई तक पहुँचा। पास पहुँचकर वह सहम गया, बुढ़िया की बेजान आंखें उसे घूर रही थी। वह अब इस दुनिया में नहीं थी। बरसों का साथ एकाएक छूट जाने पर उसकी आँखें बरस पड़ी। रात समाप्त होने के थी। उसने चारों ओर देखा, उसके जहन पर अभी भी सपने का असर था। अपने का एक हिस्सा सच होने की वजह से वह सोचने के लिए विवश था, की दूसरा हिस्सा भी सच होगा। बुढ़िया की लाश दफनाने की फिक्र थी। इसलिए पादरी के पास गया। पादरी ने जब बूढ़े का दुःख सूना तो पहले चुप रहा। फिर बोला- “तुम्हारे पास रुपये है?” “मैं गरीब हूँ फादर।’ हाथ जोड़कर लगभग गिड़गिड़ाते हुए उसने वाक्य पूरा किया-”मेरे पास इस समय एक भी पैसा नहीं है।” “मुझे अभी फुर्सत नहीं हैं, तुम चले जाओ।” इतना कहकर पादरी ने दरवाजे बन्द कर लिए। बेचारे बूढ़े ने कब्रिस्तान का रास्ता पकड़ा और कुदाल से स्वयं कब्र खोदने में जुट गया। अचानक बूढ़े की कुदाल एक घड़े से टकराई बूढ़ा चक्कर में आ गया। उसे ऐसा लगा जैसे घड़े से उठने वाली टन्न की आवाज घड़े से न उठकर उसके मस्तिष्क से उठी हो। उसने मिट्टी हटाई। देखा तो सोने की अशर्फियों से भरा घड़ा रखा है। वह खुशी से फूला न समाया। उसने सोचा कि अब उसकी बुढ़िया बहुत अच्छे ढंग से दफना दी जाएगी । वह पादरी ओर रिश्तेदारी को दावत भी दे सकेगा। बस उसने झटपट उस घड़े को उठाया और घर लौट गया। जेब में दस अशर्फियाँ डाल जी, बाकी छिपाकर रख दी। उसके देखे गए स्वप्न को दूसरा अंश भी सही था। वह फिर से पादरी के पास गया। पादरी तो पहले उसे देख कर झल्लाया लेकिन उसके हाथ में अशर्फियों की चमक देखकर उसकी आवाज कोमल हो गयी। वह तुरन्त उस बूढ़े के साथ जाने के लिए तैयार हो गया। सोचा, इतना धन तो बड़े-बड़े धनवानों को दफनाने पर भी नहीं मिलता। बुढ़िया को दफनाए जाने के बाद बूढ़े ने सभी को दावत दी । भोजन करते समय पादरी सोच रहा था कि इस बूढ़े के पास इतना धन आया कहाँ से? इसलिए जैसे ही सब भोजन करके चले गए। उसने उस बूढ़े को अकेले में बुलाकर पूछा-”तुम्हारे पास अचानक इतना धन आया कहाँ से? यदि तुमने सारी बाते सच-सच नहीं बताया तो में तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूँगा।” इस धमकी से बूढ़ा घबरा गया। उसने अशर्फियों से भरा घड़ा मिलने की बात सच-सच बता दी। पादरी के मन में चैन न था। वह बूढ़े के मन में चैन न था। वह बूढ़े के स्वप्न के अन्तिम हिस्से का लाभ उठाने की फिराक में था। आखिर उसने एक तरकीब सोची और रात होने का इन्तजार करने लगा। पादरी के पास एक बूढ़ा बकरा था। रात होते ही उसने बकरे को मार डाला फिर उसकी खाल, सींग और दाढ़ी निकाली। खाल को ओढ़कर पत्नी से बोडडडडडडड कि उसे सुई’ डोरे से सिल दे। इसके बाद बकरे के सींग अपने सिर पर लगाए। उसकी दाढ़ी के बाल अपनी दाढ़ी में लगाए। अब वह भयानक शैतान की शक्ल का दिख रहा था। अपनी शक्ल की भयानकता से सन्तुष्ट होकर वह बूढ़े के घर जा पहुँचा। दरवाजा खटखटाते ही पादरी की तरकीब से अनजान बूढ़े ने किवाड़ खोल दिए। उसके होश-हवास गुम हो गए। उसने बड़ी हिम्मत करके पूछा-”तुम कौन हो?” “शैतान”- पादरी ने अपनी आवाज को खौफनाक बनाते हुए कहा-”तुम मेरा धन लेने आए हो। मैंने तुम्हारी गरीबी पर दया की थी। साया धन इसलिए दिखाया था कि आवश्यकतानुसार तुम ले सको पर तुम ठहरे लालची, तुमने सारा का सारा हड़प कर लिया। अब तुम्हारा काम हो गया मेरा धन वापस कर दो। “ बूढ़ा की आंखें के सामने अपना बीता हुआ समय नाच गया। जिसमें उसने एक देवदूत को देखा जो उसे बता रहा था कि “ तुम्हारी बुढ़िया का समय समाप्त हो गया, में उसे लेने आया हूँ। इसे जब तुम दफनाने जाओगे, तो तुम्हें सोने की अशर्फियों से भरा घड़ा मिलेगा पर तुम इसे मत लेना, क्योंकि जो धन बिना मेहनत किए मिलता है वह शैतान का होता है बूढ़े ने कांपते हाथों से सोने से भरा घड़ा उठाया और पादरी को थमा दिया। उसे देवदूत की चेतावनी सच्ची लगी। पादरी इतना धन पाकर बहुत खुश हुआ। वह घर आकर पत्नी से बोला कि उसकी खाल के टाँके काट दे। पत्नी ने जैसे ही चाकू चलाया तो पादरी चिल्ला पड़ा। क्योंकि अब तक खाल शरीर से चिपक चुकी भी। जिस जगह से काटा गया था वहाँ से खून बहने लगा था। दोनों बड़े हैरानी में पड़ गये। उन्होंने खाल निकालने की बहुत कोशिश की , पर सफल न हुए। मजबूरन पादरी को उसी शक्ल में रहना पड़ा गाँव में सभी को यह बात मालूम हो गयी। पादरी ने बूढ़े को धन वापस करना चाहा, परन्तु उसने शैतान का धन कहकर वापस लेने से इन्कार कर दिया। पादरी को भी अब यह बात समझ में आ गयी थी कि बिना मेहनत किए मिलने वाला धन शैतान का होता है। उसे अपनी करनी पर पछतावा हो रहा था, गाँव के लोग भी उसे बुरा - भला कर रहे थे।


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