दार्शनिक हिक्री (Kahani)

June 1996

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

दार्शनिक हिक्री उन दिनों तंवा में रहते थे। कई लोग उनसे उलझी गुत्थियां सुलझाने सम्बन्धी परामर्श करने आते । एक दिन एक व्यक्ति अपनी पत्नी समेत उनके पास पहुँचा और उसकी आलस्य तथा कंजूसी की बुराई करने लगा। सचमुच यह दोनों बुराइयाँ उसमें थी भी। हिक्री ने उस औरत को स्नेहपूर्वक पास बुलाया। एक हाथ की मुट्ठी बाँधकर उसके सामने की- और पूछा-”यदि यह ऐसे ही सदा रहे, तो क्या परिणाम होगा, बताओ तो, लड़की?” औरत सिटपिटाई तो, पर हिम्मत समेटकर बोली-”यदि सदा यह मुट्ठी ऐसी ही बँधी रही, हाथ अकड़ कर निकम्मा हो जायेगा।” किक्री इस उत्तर को सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और दूसरे हाथ की हथेली बिलकुल खुली रखकर फिर पूछा-”यदि यह हाथ ऐसे ही खुला रहे, तो फिर इस हाथ का क्या हस्र होगा जरा बताओ तो? औरत ने कहा-”ऐसी हालत में यह भी अकड़ कर बेकार ही हो जायगा।” किक्री ने उस औरत की भरपूर प्रशंसा की और कहा -”यह तो बुद्धिमान भी है और दूरदर्शी भी। मुट्ठी रहने और हाथ सीधा रहने के नुकसान को यह अच्छी तरह जानती है। बेटी, इस विवेक का उपयोग अपने जीवन में भी करना, इससे तुम्हारे जीवन में सुख-सौभाग्य बढ़ेगा।” पति -पत्नी प्रणाम करके चल दिए। युवती ने सन्त की बात पर गौर किया। समझ में आया कि मैं एक ही स्थिति में रही और आलस्य बरतती रही, तो हाथ की तरह अकड़ जाऊंगी । उसने सक्रियता अपनायी। पति का साथ देकर आय बढ़ाई बचत की और सदुद्देश्य के निमित्त उदारतापूर्वक खर्च किया।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118