निर्भीक, सिद्धांतवादी होता है लोकसेवी

June 1996

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घटना स्वतन्त्रता पूर्व की है। जब भारत पराधीन था और अंग्रेज अधिकारी यहाँ अपनी विलासिता तथा वैभव का सब साज-सामान, जन-सुविधाओं की परवाह किए बिना ही जुटाया करते थे। ऐसे ही विलासी अधिकारी थे संयुक्त प्रबन्धक गवर्नर सर हारकोर्ट बटलकर। वे जहाँ भी जाते, उनकी इच्छित वस्तु हर दशा में उपस्थित करनी होती, वह चाहे उस समय, उस स्थान पर उपलब्ध हों या न हों। अपना शौक पूरा न होने पर उनका क्रोध भी फट पड़ता था और वे न जाने क्या कर बैठें इस अवस्था में इसलिए सम्बन्धित लोग उनसे भयभीत ही रहते थे। अपने विलास- वैभव और शौक-मौज के लिए बटलकर साहब -नवाब-साहब’ के नाम से प्रसिद्ध हो गये थे।

बटलकर, पान्त की राजधानी लखनऊ से कभी-कभी तफरीह के लिए प्रयाग भी जाया करते थे। वहाँ उनके ठहरने की व्यवस्था राजभवन में होती थी। राजभवन में उनके जल-विहार के लिये एक बड़ा कुण्ड बनवाया गया था, जिसमें उनके प्रवास काल में पानी भरा जाता और बटलकर निश्चिन्त हो जल-क्रीड़ा का आनन्द लेते थे।

उन दिनों इलाहाबाद में भारी जल संकट चल रहा था। थोड़े ही समय के लिए नलों में पानी आता और लोग-बाग दौड़ पड़ते अपने बर्तन, टीन के कनस्तर लेकर ताकि शीघ्र टीन के कनस्तर लेकर ताकि शीघ्र अपना क्रम आने पर पर्याप्त पानी की व्यवस्था कर सके। उन्हीं दिनों बटलकर साहब का आगमन हुआ। अन्य अधिकारीगण जल बिहार की व्यवस्था करने के लिए जल कुण्ड में पानी भरने हेतु दौड़ पड़े। परन्तु तत्काल प्रबन्ध न हो सका। होता भी कैसे सर्व-साधारण के लिए पीने के पानी का भी अभाव हो तो जल कुण्ड में लाखों गैलन पानी कहाँ से इकट्ठा होता। अधिकारीगण और गवर्नर के सेवक नगर पालिकाध्यक्ष के निवास स्थान की और दौड़े।

नगर पालिकाध्यक्ष थे बाबू पुरुषोत्तमदास टण्डन जो अपनी कर्तव्यनिष्ठा और सादगी के कारण राजर्षि कहे जाते थे। राजर्षि टण्डन इस पद की जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए अहर्निश व्यस्त रहते थे। साथ ही अपनी आय में से भी मात्र उतना अंश स्वयं के लिए रखते जितना कि अत्यावश्यक होता । अति साधारण स्तर का जीवन व्यतीत कर प्रतिभा और धन लोक सेवा के लिए सर्वसाधारण की चिंता और सुव्यवस्था के लिए लगाते थे। सादा, सरल और मितव्ययी जीवन ही उनके निर्वाह का मूल सूत्र था। गवर्नर के कर्मचारी उनके पास पहुँचे और अपनी बात कही। राजर्षि ने कर्मचारियों की बात को गम्भीरता-पूर्वक सुना और समझाने के स्वर में कहा- “नागरिकों के लिये पीने के पानी की ही उचित व्यवस्था नहीं हो पा रही है। जल पूर्ति के साधनों में इतनी गड़बड़ी है कि सर्वसाधारण को बड़ी परेशानियाँ और कठिनाइयाँ सहनी पड़ रही हैं, तो गवर्नर साहब के जल-विहार की व्यवस्था किस प्रकार की जा सकती है?

टण्डनजी ने इस प्रकार से समझाया और अपनी विवशता बतायी तो गवर्नर के कर्मचारी क्रोधित हो उठे और किसी भी दशा में जल कुण्ड का प्रबन्ध करने के लिए दबाव डालने लगे।”कुछ भी हो”- सेवकों ने कहा- “गवर्नर साहब के लिए जल व्यवस्था तो करनी ही पड़ेगी। सामान्य जनता को थोड़ी कठिनाई और सही।” इस पर टण्डन जी भी उबल पड़े ओर बड़ी निर्भयतापूर्वक कहा- “ जाओ अपने गवर्नर से कह देना कि टण्डन जी जल कुण्ड में पानी की व्यवस्था नहीं कर रहे हैं। सामान्य जनों की तकलीफें बढ़ाकर विलासियों के लिए मैं साधन नहीं जुटाऊँगा।”

स्वतन्त्रता पूर्व के समय में इतनी निर्भीकता के साथ अपने सिद्धांतों पर दृढ़ रहकर साथ अपने सिद्धांतों पर दृढ़ रहकर काम करने वाले अधिकारी-नेता राजर्षि टण्डन ही थे।


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