देखिए भविष्य की झाँकी स्वप्नों के माध्यम से

June 1996

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स्वप्न यों तो सभी को आते हैं, पर जन-सामान्य को दिखाई पड़ने वाले सपनों में से अधिकाँश में अचेतन मन का भटकाव ही रहता है। ऐसे सपनों के दृश्य बेसिर-पैर के, औंधे-सीधे होते हैं। जिनमें किसी प्रकार की क्रमबद्धता का सर्वथा अभाव होता है किन्तु यदि भावनाओं को थोड़ा भी परिष्कृत-परिमार्जित कर लिया जाय तो सार्थक और उच्चस्तरीय स्वप्नों को देखा व स्मरण रखा जाना सम्भव हैं जिनमें अनागत भविष्य की महत्वपूर्ण सूचनाएँ निहित हों ‘अण्डरस्टैडिंग ह्ममैन विहेवियर’ के ग्यारहवें खण्ड के ‘टुमारे टुडे’ शीर्षक के अंतर्गत देश-विदेश के अनेकों मूर्धन्य मनीषियों के ऐसे कितने की विवरण छपे है। जिनने अनागत भविष्य की संभाव्य घटनाओं को प्रत्यक्ष देखा था। जो यथार्थता की कसौटी पर बाद में सही उतरी। ऐसे व्यक्तियों में निष्णात् इंजीनियर व कुशल ब्रिटिश यान चालक जे0 डब्ल्यू0 डुने प्रख्यात है, जिन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘एन एक्सपेरीमेंट विद टाइम’ में ऐसे अगणित घटनाक्रमों का उल्लेख किया है। एक स्थान पर इस पुस्तकें में उन्होंने लिखा हैं कि एक बार जब वे बोअर युद्ध के दौरा दक्षिण अफ्रीका में नियुक्त थे, तो रात को एक नाटकीय स्वप्न देखा। ऐसा लगा कि वे एक पहाड़ी ढलान पर खड़े -खड़े ऐसे ज्वालामुखी को देख रहे है, जो फटने ही वाला है। इस भीषण नरसंहार का अनुमान कर वे चिल्ला-चिल्ला कर लोगों को संचेत करने लगे और तुरन्त ही फ्रांसीसी अधिकारियों से उनकी सहायता की अपील की। उन्हें अन्यत्र ले जाने के लिए वायुयान भेजे जाने का आग्रह किया। इसी बीच उन्होंने देखा कि इस भयंकर प्राकृतिक आपदा से लगभग चाह हजार लोगों की जानें चली गई । अनेक लोग अपंग-अपाहिज बन गये । बच्चों के करुण-क्रंदन और बड़ों के आर्तनादयुक्त चीत्कार से इस मध्य उनकी आँखें खुल गई। इस प्रकार की अनेक घटनाओं को ‘डूने ड्रीम्स’ नामक अपनी प्रसिद्ध पुस्तक में उन्होंने संकलित किया है, जिसका प्रकाशन प्रथम बार सन् 1930 में हुआ। जब यह पुस्तक समकालीन ब्रिटिश मनोवैज्ञानिक डॉ0 जे0 सी0 बार्कर के हाथ लगी, तो वे पढ़ने के बाद उनके तार्किक मन में इस प्रकार के विचार कुलबुलाने लगे कि जब भावी घटनाओं का पूर्वाभास समय रहते ही मिल जाता है, तो क्या मानवीय प्रयासों द्वारा इस माध्यम से जन-धन की हानि टाली जा सकना संभव नहीं? और यदि शक्य है तो ऐसे प्रयास क्यों न किये जाये? इस प्रकरण पर उन्होंने गंभीरतापूर्वक विचार किया। चूँकि डॉ0 बार्कर को भी डूने जैसे ही सपने आते थे और उनमें से अधिकाँशतः सही सिद्ध होते थे इसलिए भी डॉ0 बार्कर ने इस दिशा में विशेष रुचि दिखायी। घटना सन् 1933 की है। रात्रि में डॉ0 बार्कर ने एक लोक हर्षक विभीषिका का रोमाँचक दृश्य देखा। वेल्स क्षेत्र की गगनचुम्बी पर्वतमालाओं की उपत्यिका में बसा एक गाँव काई लगे बृहद् शैलखण्डों के यकायक स्खलन होकर लुढ़क पड़ने के चपेट में आ गया हैं खण्डहर हुए मकानों की छतों छप्परों के नीचे दबकर अगणित लोगों की जानें चली गई । तराई क्षेत्र में चल रहें विद्यालय के लगभग सभी छोटे-बड़े बच्चे इस प्राकृतिक आपदा में धराशायी हो गये। बच्चों की असहाय हृदयस्पर्शी करुण चीत्कार से यकायक वे जग पड़े। सींचने लगें आज इस स्वर्ण अवसर को हाथ से जाने न दूँगा। बचाव का जितना प्रयत्न संभव हो सकेगा, करूंगा। इससे जहाँ एक ओर जान-माल की क्षति को रोका जा सकेगा, वहीं दूसरी ओर ऐसी महत्वपूर्ण सूचनाओं का लाभ व्यक्ति और समाज को मिलते रहने से वे स्वप्न की साक्षातता को समझ सकेंगे और भविष्य में उन्हें झुठलाने , इनकी उपेक्षा करने की बजाय समय रहते चेत कर इनका फायदा हस्तगत कर सकेंगे । “इसी उधेड़बुन में प्रातः हो चला। सूर्य निकालते ही लन्दन के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय दैनिक पत्र ‘इंवनिंग स्टेंडर्ड’ के प्रातः संस्करण के मुख पृष्ठ पर सुर्खियों में ‘वार्निंग इम्पीडियेट क्लीयरिंग हाउस, उवर्टिग कैलोसिटी’ शीर्षक के अंतर्गत सनसनी खेज सूचना प्रकाशित करायी। पर होनी को टाला नहीं जा सका। दुर्भाग्य से समाचार पत्र उस दिन उक्त क्षेत्र में समय पर नहीं पहुँच सका। जब पहुँचा तब तक काफी देर हो चुकी थी। फिर भी सूचना मिलते ही लोग माल-असबाब के साथ सुरक्षित क्षेत्र की ओर भागने लगे। घटना ठीक अपने निश्चित समय में घटी, जिसमें काफी प्रयासों के बाद भी बहुतों की जान गई। ‘स्वप्न संकेत द्वारा बचाव’ - इस विद्या के प्रणेता डॉ0 बार्कर स्वयं भी इस घटना के दौरान ग्रामीणों की सुरक्षा -व्यवस्था करने में अपनी जान गँवा बैठे। इस प्रकार अनागत भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के नियन्त्रण और फेरबदल काने जैसे अति महत्वपूर्ण शोध कार्य को और आगे नहीं बढ़ाया जा सका। इसी विपदा ने इस शोध कार्य का पटाक्षेप कर दिया। इसी प्रकार क्लीवलैण्ड के जुलियस डिटमैन ने एक बार स्वप्न देखा कि निकटवर्ती बाँध अचानक टूट गया है और बड़ी संख्या में उस क्षेत्र में जान-माल की क्षति हुई है। वह स्वयं भी उसकी चपेट में आ गया है एवं डूबता - उतरता पानी में बहा जा रहा हैं हाथ पैर थक कर चूर हो गये और अब वह डूबने ही वाला हैं इस घबराहट की स्थिति में उसकी नींद खुल जाती हैं तब प्रातःकाल होने की वाला था। थोड़ी देर ओर रुककर बाँध अधिकारियों से डिटमैन ने अपने सपने की बात बतायी। चार अधिकारी अविलम्ब बाँध के निरीक्षण के लिए निकल पड़े। निरीक्षण के दौरान बाँध के एक जगह उन्हें एक बड़ा सुराख नजर आया, जिससे पानी बड़ी तेजी से बाहर निकल रहा था। तुरन्त स्थानीय लोगों को इसकी सूचना दे दी गई और किसी सुरक्षित स्थान में चले जाने को कहा गया। इधर सुराख को बन्द करने का प्रयास किया जाने लगा, पर सारी प्रयत्न निरर्थक साबित हुए। सुराख का आकार निरन्तर बढ़ता हो चला जा रहा था। जब जलप्रवाह को रोकना और सुराख बन्द करना हर प्रकार बेकाबू सिद्ध हुआ, तो काम करने वाले मजदूर व अधिकारी भी जल्दी ही वहाँ से अन्यत्र चले गये। एक घंटे बाद बाँध टूट गया, पर तब तक उस क्षेत्र की आबादी करीब-करीब खाली हो चुकी थी। हाँ , फसल और मकान अवश्य बर्बाद हो गये। एक स्वप्न ने व्यापक जन हानि को बचा लिया। यही नहीं, सपनों द्वारा यहां-कदा गढ़े धनों की सूचना भी मिल जाती है। बेट्टी फाक्स हैम्पाशयर इंग्लैंड के एक गरीब किसान की पत्नी थी। दोनों परिश्रमपूर्वक खेत में काम करते और उससे जो कुछ भी प्राप्त होता, उसी से अपना जीवन चला रहे थे। किसी की पत्नी अत्यन्त सात्विक विचारधारा की थी। एक दिन उसने स्वप्न में देखा कि योद्धा की वेशभूषा में कुछ लोग मिट्टी के नीचे कुछ दबाकर शीघ्रता से भाग रहे है। वेट्टी फाक्स ने इस ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया पर एक सप्ताह बाद फाक्स को पुनः वही स्वप्न दिखाई पड़ा तो उसकी उत्सुकता कुछ बढ़ी। फावड़ा लेकर स्वप्न में निर्दिष्ट स्थान को उसने खोदा, तो नीचे सोने-चांदी के सिक्कों से भरा एक घड़ा मिला। उसकी दरिद्रता मिटी और दंपत्ति धनवान बन गए। धन का उन्होंने दूसरों को लाभ पहुँचाने वाले कार्यों में ही सार्थक सुनियोजन किया।

एक बार श्री अरविन्द ने अपने एक ऐसे शिष्य को सपने में देखा, जिसका चेहरा काफी वीभत्स था । वास्तविक जीवन में उनके शिष्य का चेहरा ऐसा बिल्कुल नहीं था। छह वर्ष बाद उनका वह सपना सच निकला। उस शिष्य का चेहरा स्वप्न में देखे। दृश्य की भांति की कुरूप हो गया था। उपरोक्त घटनाओं में स्वप्न दृष्टा के जीवनक्रम शुद्ध, सात्विक थे। ‘सादा जीवन उच्च विचार’ को वे अपना आदर्श मानते और व्यावहारिक जीवन में उनका अधिकाधिक पालन करते थे। विचारणाएं एवं भावनाएं उच्च स्तर की थी यदि हर व्यक्ति अपने जीवन को इस आदर्शवादी साँचे में ढाल सके, भाव संवेदनाओं को सात्विक बना सकें, तो उच्चस्तरीय व सार्थक स्वप्न एवं समष्टि का भली -भांति हित साधन कर सकते हैं। स्वप्न मात्र मृगमरीचिका नहीं है।, उनमें से कई सोद्देश्य होते हैं। मानवीय मस्तिष्क रूपी कल्पवृक्ष से जुड़ी इस विधा के महत्व को स्वीकारी व इस दिशा में प्रगति के प्रयास किए जाने चाहिए।


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