जरा ईश्वर पर विश्वास करके तो देखे

June 1996

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

ब्रिटेन निवासी बावन वर्षीय थायर नामक महिला की परमात्मा में गहरी आस्था थी। वह धर्म के कार्यों में पूरी श्रद्धा के साथ लगी रहती थी । अपने शारीरिक स्वास्थ्य के परीक्षण के लिए वह हर वर्ष डॉ0 विलियम ए॰ नोलेन के पास पहुंचती थी। नवम्बर माह के एक दिन वह अपने चिकित्सक के पास निदान के लिए पहुँची । डॉक्टर को धर्म में किसी प्रकार की श्रद्धा न होने पर भी वह एलेन के आकर्षक व्यक्तित्व से प्रभावित था। डॉ0 नोलेन को अन्य शारीरिक परीक्षणों के उपरान्त मलाशय के परीक्षण में यह संदेह हुआ कि एलन को एक विशेष प्रकार का कैंसर हो सकता है। मलाशय में उस तरह के ट्यूमर का उभार भी मौजूद भा, उस उभार का एक छोटा-सा टुकड़ा काटकर उसे हिस्टोपैथालाफजिकल परीक्षण के लिए भेजा। रिपोर्ट के लिए तीन दिन बाद वापस आने के लिए चिकित्सक ने परामर्श दिया। तीन दिनों बाद पैथोलोजिस्ट की रिपोर्ट आयी, जिसका निष्कर्ष था कि उभार एक प्रकार के असाध्य कार्सीनाइड नामक ट्यूमर का है। जो प्रायः आमाशय छोटे आँत अथवा बड़ी आँत पैदा होता है। जबकि एलेन के केस में वह मलाशय में उत्पन्न हुआ था। डॉ0 विलियम ने बिना किसी संकोच के एलेन थाँयर को कैंसर एवं उसकी प्रकृति के विषय में विस्तृत रूप में बता दिया। साथ ही यह चेतावनी भी दे दी कि शीघ्र उपचार की व्यवस्था बनायी नहीं गयी तो यह ट्यूमर पूरे मलाशय में तुरन्त फैलकर अधिक गम्भीर संकट खड़ा कर सकता है। तथा जान तक ले सकता है। ऑपरेशन की निर्धारित तिथि को प्रातः डेढ़ बजे फोन द्वारा डॉ0 नोलेन को पता चला कि श्रीमती एलेन वहीँ भर्ती है। तथा छाती के तेज दर्द से परेशान है। दर्द एवं सोने की तेज दवा देने का भी कुछ परिणाम नहीं निकला है। तुरन्त आने को कह कर डाक्टर ने टेलीफोन का चोंगा रख दिया। हॉस्पिटल बेड पर पड़ी श्रीमती एलेन दर्द की पीड़ा से छटपटा रही थीं डाक्टर को देखते ही उनके होठों पर हल्की मुस्कान तैरने लगी। दर्द के विषय में पूछे जाने पर एलेन ने बताया कि इस तरह की पीड़ा जाने पर एलेन ने बताया कि इस तरह की पीड़ा पहले कभी नहीं हुई थी। यह प्रथम अवसर है। हृदय एवं फेफड़े की गति और लय को सुनने के बाद डॉ0 विलियम पाया कि फेफड़े की सतह पर द्रव्य एकत्रित होता जा रहा है। जो हाट्र फैल्योर को जन्म दे सकता है। हृदय की धड़कन 70 प्रति मिनट से बढ़कर 100 प्रति मिनट हो गयी थी, जबकि रक्तचाप सामान्य दर 130 । 74 से घटाकर 72। 57 हो गया था। ये सभी संकेत इस बात के प्रमाण थे कि स्थिति ठीक नहीं है। इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम मशीन द्वारा इ0 सी0 जी0 लेने पर भी इसकी पुष्टि हुई।

यह स्थिति देखकर डॉक्टर ने ऑपरेशन का पूर्व निर्धारित कार्यक्रम बदल दिया तथा प्रस्तुत हुए नये संकट को दूर करने के लिए हृदय की गति सामान्य लाने के लिए दवाएं तथा श्वासावरोध के लिए ऑक्सीजन दी। उन्होंने पूरी तरह आराम करने का परामर्श एलेन को दिया। कुछ ही दिनों में एलेन की हालत सामान्य हो गयी। हृदय एवं फेफड़े सामान्य ढंग से कार्य करने लगे। दो सप्ताह बाद परीक्षण हेतु आने पर डॉ0 विलियम ने ऑपरेशन करने पर उसके पूरी शरीर में फैलने व मृत्यु तक होने की बात कही। इस पर श्रीमती एलेन बोली - “डॉक्टर । मुझे ऐसा लगता है कि अब ऑपरेशन की जरूरत नहीं पड़ेगी। परमात्मा की कृपा से मैं अब अच्छी हो जाऊँगी । “लगता है। भगवान ने बड़ी आपदा को छोटे में बदलकर नया जीवन दे दिया है।” डॉक्टर को यह मालूम था कि श्रीमती एलेन एक धर्मनिष्ठ महिला है। तथा उनकी ईश्वर के प्रति गहरी आस्था है। सम्भव है भावातिरेक में वे ऑपरेशन कराने से इन्कार कर रही हों यह सोचकर उन्होंने निर्णय दो दिन बाद के लिए छोड़ दिया। पर डॉक्टर विलियम को यह अच्छी तरह मालूम था कि बिना उपचार के यह कैंसर का ट्यूमर किसी भी तरह गल नहीं सकता। दो सप्ताह बाद श्रीमती एलेन डॉ0 विलियम के पास पुनः परीक्षण के लिए पहुँची । पहुँचते ही उन्होंने कहा-”डाक्टर । मैं अब पूरी तरह स्वस्थ और नीरोग अनुभव कर रही हूँ तथा मुझे लगता है मलाशय का वह ट्यूमर भी अब समाप्त हो गया है। “शुरू में तो डॉक्टर ने उनके इस कथन को वहम मात्र माना, पर उस समय आश्चर्य का ठिकाना न रही जब परीक्षण के उपरान्त ट्यूमर का कही कोई नामोनिशान न मिला। आश्चर्यचकित डॉक्टर से एलेन बोली” यह ईश्वर की कृपा का प्रतिफल है। हृदय रोग के रूप में मुझे किसी अपने अविज्ञात बुरे कर्म का दण्ड मिल गया। मुझे संकेत मिल गया था कि उसकी सहायता अवश्य मिलेगी। यह सब उसका ही चमत्कार है। डॉ0 विलियम ने अपने संस्मरणों में लिखा है- “किसी ईश्वरीय सत्ता में विश्वास न होते हुए भी मैंने उस धर्मनिष्ठ महिला की प्रार्थना की शक्ति को स्वीकार न करने का कोई ठोस आधार नहीं पाया। उस महिला का हँसता-मुस्कुराता चेहरा जब कभी भी मैं देखता हूँ तो सोचता हूँ कि अपने वैज्ञानिक तथ्यों का मुझे एक बार नये सिरे से विश्लेषण करना चाहिए तथा उस विश्वास को पाने का प्रयत्न करना चाहिए। जिसके द्वारा उक्त महिला ने असम्भव को भी सम्भव कर दिखाया। “


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles