स्वयं भगवान हमारे गुरु (Kavita)

November 1995

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स्वयं भगवान हमारे गुरु, परम सौभाग्य हमारा है। स्वयं नारायण नर तन धरे, हमारे बीच पधारे है॥

गुरु तो आते जाते पर, नारायण कभी-कभी आते। तभी अवतार हुआ करते-पाप धरती पर बढ़ जाते॥

ब्रह्मा ने स्वयं अवतरित हो-धरा का भार उतारा है। स्वयं भगवान हमारे गुरु, परम सौभाग्य हमारा है।

आज भी पापाचारों ने, धरा पर भार बढ़ाया है। मनुजता फिर अकुलाई है, दनुज दल फिर इतराया है॥

देवसंस्कृति ने देवों को, विकल हो पुनः पुकारा है। स्वयं भगवान हमारे गुरु, परम सौभाग्य हमारा है॥

दें सके तो दें जीवनदान, अन्यथा समयदान तो करें। न बन पाये यदि भामाशाह, अपेक्षित अंशदान तो करें॥

समर्पित करें उन्हें प्रतिभा, उन्हीं ने जिसे सँवारा है। स्वयं भगवान हमारे गुरु, परम सौभाग्य हमारा है॥

आरुणी और विवेकानंद, समर्पण की विधि बतलाते। स्वयं गुरु अपने जीवन से, शिष्य की गरिमा समझाते॥

शिष्य ने किया समर्पण तो, गुरु ने उसे निखारा है। स्वयं भगवान हमारे गुरु, परम सौभाग्य हमारा है॥

हमारे गुरु प्रज्ञावतार, चलो प्रज्ञा को धारण करें। दुष्ट चिंतन को करें निरस्त, मनुज का कष्ट निवारण करें॥

करें सद्चिंतन सर संधान ज्ञान से ही तम हारा है। स्वयं भगवान हमारे गुरु, परम सौभाग्य हमारा है॥

गुरु की जन्मभूमि पर आज गुरु को कुछ तो अर्पित करें। बाँटने जन-जन में गुरु ज्ञान-स्वयं को हम संकल्पित करें॥

शिष्य हैं तो सोंचे कितना, गुरु का कर्ज उतारा है। स्वयं भगवान हमारे गुरु, परम सौभाग्य हमारा है॥

--मंगल विजय


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