चर्चिल रिटायर हुए। उनके एक मित्र ने सोचा। क्यों न उनके राजनीति के परिपक्व अनुभवों का लाभ उठाया जाय। वह चल पड़ा बात करने चर्चिल से। उसने देखा, इस बुढ़ापे में भी चर्चिल स्वयं अपनी फूलों की बगीचों में निराई-गुड़ाई में लगे हैं। उसने चर्चिल से कुछ राजनीति के प्रश्न पूछे चर्चिल ने कहा। छोड़ो अब बीती बातें। वे तो समाप्त हो गई वहीं। अब तो मुझ से फूलों की बगीचे की, शास्त्रों के अध्ययन की, ईश्वर चिन्तन की बातें करो तो मुझे अच्छा लगेगा। राजनीति के मील के पत्थर बहुत पीछे छूट गये। व्यर्थ की माथा-पच्ची से क्या लाभ? व्यर्थ से तो सार्थक चिन्तन सब तरह श्रेष्ठ और हितकर है।