विशेष लेखमाला-5 -परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी

November 1995

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गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्

आप में से अधिकाँश व्यक्ति यह सोच रहे होंगे कि मैं यहाँ था परन्तु व्याख्यान क्यों नहीं दिया। विशेष कारण वश व्याख्यान न दे सका। बेटे। मैं अपने जीवन भर प्रयोग करता रहा हूँ। कौन-कौन से प्रयोग किया हूँ।

पहले ब्राह्मण बनने का प्रयोग किया कि ब्राह्मणत्व के क्या-क्या चमत्कार हो सकते हैं। मैंने उसे अपने जीवन में इसे धारण करके देखा है और पाया है कि इसमें सफलताएँ भी हैं तथा चमत्कार भी है। ब्राह्मण जीवन किसे कहते हैं? किफायतसार जीवन को कहते हैं। ब्राह्मण उसे कहते हैं जो अपना खर्च कम से कम में चला सकता हो तथा अधिक से अधिक अपना धन, अकल, मेहनत, समाज में लगा सकता है जिससे उसके जीवन का लक्ष्य समाज का लक्ष्य पूरा होता हो। जिस आदमी ने अपनी जरूरतें बढ़ा रखी हैं, उस आदमी को कुछ बचता ही नहीं है।

हमें कहना होगा कि अध्यात्मवादी बनने के लिये किफायतशाली बनना होगा, ब्राह्मण बनना होगा। हमने इसका प्रयोग किया है तथा लाभ पाया है। हमने अपना खाने, पीने तथा रहने का ढंग ब्राह्मण का रखा है। अपने जमीन के बाबत जो कुछ हमें मिला था, उसे गायत्री तपोभूमि के लिये दान कर दिया। मैंने अपनी पत्नी से पेशवा ब्राह्मणों की उपमा देते हुये कहा कि आपको भी यह जीवन जीना चाहिये। पेशवा के राम टाँक ने अपने गुरु के पत्नी के आदेश पर सब कुछ दे दिया था। इन्होंने भी अपने सारे गहने गायत्री तपोभूमि के लिये लगा दिया। पैसों के दृष्टि से हम खाली हाथ हो गये, परन्तु शक्ति बहुत मिल गई।

मित्रो! धन की और बल की शक्ति नहीं होती है। वह ब्राह्मणत्व की शक्ति होती है। यह मैं आपको यकीन दिला सकता हूँ। मैं ब्राह्मण था और अब भी ब्राह्मण हूँ। जो कुछ भी आप देख रहे हैं यह ब्राह्मणत्व का चमत्कार है। इस दुनिया में मित्रों, एक ही बिरादरी रह गई है जिसका नाम बनिया है। बाकी सारी बिरादरी मर गई हैं-एक ही जिन्दा है वह है बनिया। सारे के सारे क्षेत्र में बनिया ही बनिया छाया है। ब्राह्मण कही नहीं परन्तु हम ब्राह्मण हैं, इस पर हमें गर्व है तथा संतोष है। अगर कोई अपने को ब्राह्मण बना सकता हो, अपने खर्च और लागत को कम कर सकता हो तथा नीयत में ब्राह्मणत्व है तो हमें प्रसन्नता होगी, परन्तु आपके नीयत में तो चाँडाल बसा हुआ है। आदमी को गरीब भी होना पड़ेगा, यह हमने ब्राह्मण का प्रयोग करके देखा है।

दूसरा साधु का जिसका नाम तपस्वी है। हमने अपने सारे छिद्रों को बन्द कर दिया। यह दूसरा कदम है। काँटे पर चलने वाले का नाम तपस्वी नहीं हैं ठंडे पानी से नहाने वाले का नाम तपस्वी नहीं हैं उस आदमी का नाम साधु और तपस्वी है जिसने अपने आप को तपाया, उसका नाम तपस्वी है, उसका नाम साधु हैं हमने अपने आप को तपाया है। अकल की दृष्टि से आदमी से ज्यादा बेईमान, बहरूपिया कोई नहीं है। हमने अपनी अकल को ठीक कर लिया है। आप भी मारे डंडों से अपनी अकल को ठीक करें हमने अपने हर चीज को तपाया, भीतर वाले हिस्से को भी तपाया। हमने अपने मन को, बुद्धि को तपाया है, पर आपकी बुद्धि तो ऐसी चाँडाल है, ऐसी पिशाचिनी है कि क्या कहें। किसी के जिन्दगी की समस्या को हल करने का सवाल था तो आपकी अकल-आपकी बुद्धि ने ऐसी मक्कारी की, कि क्या कहना। पैसे से लेकर समय तक हमने केवल समाज के लिये खर्च किया। यह कसा हुआ जीवन हमारा तपस्वी का जीवन है। मन्त्रों में शक्ति है, गलत बात नहीं है। देवताओं में शक्ति है, यह भी गलत नहीं है किन्तु अगर कोई आदमी तपस्वी है तो वह हर काम को कर सकता है। अपने अनुष्ठान काल में हमने किसी से बात नहीं की, कोई भी अन्य चीज नहीं खाया। जो की रोटी एवं छाछ बस यही दो चीजें हम खाते रहे।

जैसे हमने अनुष्ठान खत्म किया कि एक व्यक्ति आये जो नकली रेशम बनाते थे, उन्होंने कहा कि हम आपको गुरु बनायेंगे। उन्होंने सवा रुपया हमारे हाथ पर रखा। इस पर हमने सोचा कि तब तो हम ब्राह्मण नहीं हो सकते हैं, हम मजदूर है। उन्होंने कहा कि ब्राह्मण को तो लेना चाहिए। यह आज से लगभग 35-40 साल पहले सन् 1945-1946 की बात है उस सज्जन को लेकर हम बाज़ार गये। उस जमाने में ठण्डी में बिछाने के लिये पुराने कपड़ों के तथा रुई की हाथ से बनी दरिया दो रुपये में मिलती थीं। उससे वही चीजें खरीद कर जरूरतमंदों में बाँट दिया, पर अपने लिये हमने उसे स्वीकार नहीं किया। हमारी अकल एवं जो भी चीज हमारे पास थी उसे हम हमेशा बाँटते चले गये। उस आदमी ने कुछ दिनों के बाद हमारे पास दो सौ रुपये भेजे। हमने उसे गायत्री तपोभूमि के मन्दिर बनाने में लगा दिया। यह वह पहला आदमी था जिसने हमें पैसा भेजा था। यह घटनाएँ सुना रहा हूँ मैं आपको अपने तपस्वी जीवन की। इसी तरह हमारे सारे कार्य होते चले गये। कोई काम हमारा रुका नहीं।

एक प्रयोग वाणी के संयम का हम सुनाते हैं आपको हम चाहते थे कि हम मौन धारण कर लें। तथा बैखरी वाणी का प्रयोग कम करें। हमने जितना व्याख्यान दिया है, दुनिया में शायद ही कोई व्यक्ति व्याख्यान दिये होंगे। हमारे व्याख्यानों से लोगों के कायाकल्प हो गये जैसे रामकृष्ण परमहंस के व्याख्यान से हुआ था जो लोग रीछ का तमाशा, रीछ का व्याख्यान सुनने आये उनको कोई फायदा नहीं हुआ। जिन लोगों को हम व्याख्यान देते हैं, उसे सूँघ कर जब देखते हैं चख कर के देखते है आदमी वैसी है? घटिया है या वजनदार? तो वे हमें छोटे छोटे आदमी घटिया आदमी दिखाई पड़ते हैं। हमें वजनदार आदमी दिखाई नहीं पड़ता है। वजनदार आदमी माने सिद्धान्तों के आदमी” सिद्धान्तों को सुनने वाले, मानने वाले, उस पर चलने वाले, सिद्धान्तों को जीवन में उतारने वाले कोई नहीं दिखाई पड़ता है। लोगों पर गुस्सा न करके अपने पर गुस्सा न करूँ तो क्या करूँ? आपको मालूम है जब आदमी मरने को होता है तो बहुत से आदमी मिलने आते हैं बहुत-सी शक्ति खर्च होती है। कोई कहता है ताऊ जी अच्छे हैं, कोई कहता है कि हमें आशीर्वाद दे दीजिये। इससे बातें करने में बहुत शक्ति खर्च होती है। इसमें भीतरी शक्ति बेहद खर्च होती है। इसलिये हमने विचार किया है हम मिलना बन्द कर देंगे। हम अपनी वैखरी वाणी को दूसरे काम में खर्च करेंगे। वैखरी वाणी कम हो जायगी, तब पश्यति वाणी, मध्यमा वाणी का उपयोग करेंगे। ताकि हम ज्यादा काम कर सकें। बिना बातचीत किये ही हम ज्यादा काम कर सकते हैं। तथा वातावरण को गर्म कर सकते हैं। बेटे! अरविन्द घोष ने महर्षि रमण ने इस प्रकार का प्रयोग किया था और सारा हिन्दुस्तान गर्म हो गया था।

बैखरी वाणी के माध्यम से अनावश्यक शक्तियाँ खर्च होती चलीं जाती हैं। इसलिये मैंने विचार किया कि अब इसका खर्च कम करेंगे। भगवान की शक्ति बहुत है अबकी बार मैंने प्रयोग किया। अब बोलने की बात कम करता जाऊँगा। इस काम में समय को कम खर्च करता जाऊँगा और लोगों से बातें कम करता जाऊँगा, कारण अधिकाँश लोग अपनी राम कहानी लेकर आते हैं अनावश्यक भीड़ आ जाती है और कहती है कि हमारा मन नहीं लगता। बेकार की बातें लोग करते है, यह नहीं कि मतलब की बातें करें। बेकार की बातें करने में अब हम समय खर्च नहीं करेंगे। वाणी से बात नहीं होगी। तो क्या आप निष्ठुर हो जायेंगे। नहीं बेटे हमने ब्राह्मण के बाद संत के रूप में कदम बढ़ाया है। संत उसे कहते है जिसका मन करुणा से लबालब भरा हुआ होता है। जो दाढ़ी बढ़ा लेता है, रंगा हुआ कपड़ा पहन लेता है, ध्यान कर लेता है, उसे संत नहीं कहते हैं। करुणा से भरा हुआ व्यक्ति ही संत कहलाता है। जब तक हम हैं तब तक हम समाज के लिये काम करते रहेंगे। हमारी दुकान बराबर चालू रहेगी।

एक हमारा प्याऊ जो कभी सूखेगा नहीं। जो पसीने से लथपथ हो गये है, थक गये हैं, हमारे प्याऊ पानी हमारे तपस्या में से उनको देते रहेंगे, उन्हें हरा-भरा बनाये रखेंगे। आप हमारे प्याऊ से सब लोग पानी पी सकते हैं। ब्राह्मण, संत का जीवन चलता रहेगा। हम प्याऊ बंद नहीं कर सकते हैं। हमने एक चिकित्सालय डिस्पेन्सरी खोला है। जो भी दुःखी हमारे पास आये, हमने उसे छाती से लगाया। उसकी बीमारी का, दुःखी का बराबर ख्याल रक्खा। संत का काम भाव संवेदना का है। हमें अपने बच्चे को खिलाना है, बच्चों की देख भाल करनी है, बच्चों को गुब्बारा बाँटना है, बच्चों के चेहरे पर मुसकराहट देखनी है। ये चीजें देखकर हमको खुशी होती है हम बच्चों के स्कूल चलाते हैं। इसका मतलब क्या है। हमारा अस्पताल चलता है, डिस्पेन्सरी चलती है। प्याऊ चलाने से क्या मतलब है। यह आध्यात्मिक बात है। यह संत की बातें हैं। तो क्या आप संत की दुकान बन्द कर देंगे? नहीं, बंद नहीं करेंगे, जब तक हम जिन्दा हैं। आगे भी चलता रहेगा।

आप लोगों को हमने काफी बार कहा है हजार बार कहा है कि आपकी जो समस्यायें हैं उसे आप लिखकर देवें। आप आधा घण्टे भी भगवान का नाम नहीं ले सकते हैं आप कहते है कि हम आपके रास्ते पर चल सकते हैं। बेकार की बातें मत करिये। तराजू हमारे पास है। हम जानते हैं, हमारा भगवान जानता है कि आप क्या हैं। इसलिये हमने इस बार यह कहना शुरू कर दिया कि आप हमारा समय नष्ट करने के बजाय लिखकर दे जाइये। आप यहाँ न ध्यान करने आते हैं, न पूजा करने आते है न मतलब की बात करने आते है केवल घूमने आते हैं, किराये खर्च करते है। आप हमें बेअकल समझते हैं। हमें आपकी नस-नस जानते हैं। इसलिये हमने वैखरी वाणी से बोलना बन्द कर दिया। हमारे गुरु हमसे वैखरी वाणी से नहीं बोलते पश्यति वाणी से बोलते है परावाणी से बोलते है। आपकी बातों को हमने सुन लिया है और कहा है कि बेकार की राम कहानी कहकर मेरा समय क्यों खराब करते हैं। मुझे राम कहानी से क्या मतलब है आप मतलब की बात कहिये।

साथियों, हमारे मौन धारण करने का एक और कारण है। आप यह मत सोचिये कि मैं अपना प्याऊ बन्द करने जा रहा हूँ। हमें बच्चों को खिलाने का शौक है। हमें बच्चों को प्यार करना, उन्हें गुब्बारा देना बहुत प्यारा लगता है। स्वयं घोड़ा बन जाना तथा उसकी पीठ पर बैठ लेना तथा घुमाना बहुत प्यारा लगता है।

हम जो भी सहायता आपकी कर सकते हैं, वह अवश्य करेंगे, परन्तु आपको भी स्वयं में संवेदना पैदा करनी होगी। हमने लोगों से वायदे कर रखे हैं, खास का बिहार और राजस्थान वालों से जहाँ हमारा जाना हुआ नहीं गायत्री तपोभूमि से आने के बाद हम कहीं नहीं गये। गुजरात में दो बार चक्कर लगाये, मध्यप्रदेश में दो चक्कर लगाकर आये हैं। यू.पी. में भी एक चक्कर लगा कर आये हैं, बिहार एकदम खाली पड़ा है, और हम राजस्थान में भी कही नहीं गये है। अब इन प्रांतों में जाना ही होगा। दो महीने हम जायेंगे ही, जाना ही होगा। हम जब यहाँ रहेंगे नहीं तो आपसे बातें कैसे करेंगे। इसलिये हमने कहा है कि आप उपासना करिये, जप करिये ताकि आपको उस समय परा एवं पश्यन्ती वाणी से दिशा दे सकूँ। अन्यथा मैं अपने मौन की शक्ति प्रेषित करूँगा तो तो आपको नुकसान होगा।

मेरे गुरु के व्याख्यान देने का कार्य बन्द हो गया तो क्या उनकी शक्ति कम हो गई? हम नहीं बोल रहे हैं, हमारा गुरु बोल रहा है। आप भी उनकी शक्ति से बोलेंगे। प्रज्ञापुराण जब आप पढ़ेंगे, और लोग सुनाएँगे तब वह आपकी वाणी में नहीं बल्कि मेरे गुरु के वाणी में होगा जिसमें अधिक ताकत होगी। आपकी वाणी में कोई ताकत नहीं होगी, आप ऐसे ही बकवास करते रहेंगे। आपका असर दो कौड़ी का होगा हमारे गुरु बोलेंगे तो असर होगा। प्रभाव पड़ेगा। हम मौन हो जायेंगे तो हमारी शक्ति बढ़ जायेगी। हमारी परा एवं पश्यन्ती वाणी व ताकत बढ़ जायेगी। हमारी परा एवं पश्यन्ती वाणी व ताकत बढ़ जायेगी। आप मेरी उस वाणी सुनें तो आपके आँखों में पानी आयेगा, भाव संवेदन जागेगी। इससे हम आपकी सहायता ज्यादा कर सकेंगे।

आप क्या सोचते हैं कि आप लोगों के ऊपर हमारा कोई असर नहीं पड़ता है। यह हमारा मौन ब्राह्मणत्व है। यह तपस्वी की वाणी हैं हमने सेवा करने में संत की इस प्रवृत्ति को जिन्दा रखा है, कि हम समाज की सेवा करेंगे आज व्यक्ति की सेवा ज्यादा है, समाज का सेवा गौण हो गयी है।

हमारे मरने के बाद आप देखेंगे कि गुरुजन के मरने के बाद उनका समय, धन, श्रम किस काम में खर्च हुआ है। हमारी शक्ति एवं सामर्थ्य बच्चों को खिलाने में, अस्पताल खोलकर मरीजों व सेवा में खर्च हुआ है। हमने अभी तक समस्त को चालीस प्रतिशत दिया है और लोगों व दुखियारों को पाँच प्रतिशत दिया है। अब हमारे मन है कि इसका हिस्सा बढ़ाया जा सके। जब हम मौन धारण कर लेंगे तो हमारा ब्राह्मण और जाग जायेगा, उस समय हम व्यक्तियों की भी ज्यादा सेवा कर सकेंगे। इस सेवा कर सकेंगे। अभी तक हमारी सहानुभूति का अंश ज्यादा है, सेवा का हिस्सा कम रहा है। हमने सहानुभूति दिया है तथा पाया है। अगर हमने किसी की एक किलोग्राम सेवा की है तो उसमें पाँच सो पर सहानुभूति भी है। उस समय हम साधन सम्पन्न एवं समर्थ थे पर अगले दिनों जब जीवात्मा व हम और ऊपर उठा लेंगे तब हम अधिक कर सकेंगी। आपके लिये हमने कुछ किया या नहीं? इसका सबूत देखना हो तो दृष्टि पसार कर देखिये कि कुछ हुआ है तो ही या पचास लाख आदमी हमसे जुड़े हैं, अन्यथा इतने आदमी कहाँ से आते? यह हम काम कहते है। कि कुछ नहीं हुआ। 50 लाख आदमी हमारे एक इशारे पर खड़े हो सकते हैं। इतने शक्तिपीठ कहाँ से बन गये? 50 लाख मुट्ठियां 50 लाख लोगों का एक घण्टे का समयदान कुछ मायने रखता है।

हम अपने ब्राह्मण को फिर जिन्दा करेंगे। संत दानी होता है। आदमी को दानी बनने के लिये संत बनना होगा। हम ब्राह्मणत्व और सत, को पुनः जिन्दा करेंगे। ब्राह्मण जमा करता है, संत उसे खर्च कर देता है। हमने निश्चय किया है, विचार किया है कि जिन्दगी के उन आखिरी क्षणों में अपने ब्राह्मण एवं संत को साधकर सबके लिए एक मिसाल स्थापित कर दूँ।

क्या हम जिन्दगी भर, अपने बीबी-बच्चों को ही खिलाते रहेंगे? जिस पर मनुष्य का भविष्य टिका है, क्या उसके लिये कुछ नहीं कर सकेंगे? अपने लिये अधिक, समाज के लिये इतना कम। यह कैसे होगा? मेरे गुरु ने दुखियारों की सेवा, समाज की सेवा कम किया है, परन्तु उसने सारे विश्व को हिला दिया है। दूसरों के दुःखों को देखकर यह सोचते हैं कि इसके लिए हम क्या करें? उस समय मैं रो पड़ता हूँ तथा उसे सहायता किये बिना मेरा मन नहीं मानता है। यह क्रम चलेगा ही। परन्तु एक काम और है इनसान को ऊँचा उठाने का हम सोचते हैं कि और वह है यदि यह काम भी किया होता तो मजा आ जाता। आप जितने लोग बैठे हैं, अगर उनको हम फुटबाल की तरह ऊँचे उठाये होते तो मजा आ जाता। आप लोगों उछाल दे तो आप में से हर एक आदमी हनुमान, ऋषि, विवेकानंद दिखाई पड़ेगा। आप लोगों में से एक भी आदमी ऐसा नहीं जो विवेकानंद न हो। आप में से एक भी आदमी ऐसा नहीं जो रैदास की तुलना में गरीब हो। परन्तु आप इतने भारी हैं कि आपके सेल्स काम नहीं कर रहे हैं, आपके हाथ उठ नहीं पा रहे है। मानसिक दृष्टि से एक-एक बेड़ियाँ इतनी भारी हैं जैसे हजार मन की हों। ऐसे में आपको कैसे उठाऊ। आपकी बेड़ियों को मैं काटूँगा। क्योंकि हमारे बाद इन बच्चों को खिलाने वाला, नर्सिंग होम चलाने वाला कहाँ से लायेंगे। यह अस्पताल बन्द हो जाने पर आपके अनुभव के बिना इनका आपरेशन कौन करेगा? इनसान को उठाया नहीं जा सकता तो बात कैसे बनेगी?

इसी काम के लिए हम समय लगाना चाहते हैं। अकाल हमारे समय का है आप तो केवल पूजा-केवल पूजा के पीछे पड़े हैं। देवी-देवता के पीछे लगे है कि मनोकामना पूरी हो जाये। किसी दिन मेरे दिमाग में गुस्सा आ गया तो पूजा को ही बन्द कर दूँगा और कहूँगा कि इसी के पीछे पड़ा हैं। पूजा के चक्कर में पड़ा है। पूजा से आज्ञा चक्र जागेगा। सुन लेना एक दिन मैं पूजा को गालियाँ दूँगा, यदि यही रटता रहा कि सब पूजा से मिल जायेगा, और यही समझता रहा कि माला घुमाने को पूजा कहते हैं देवी-देवता को पकड़ने का नाम पूजा है। अज्ञानी लोग भ्रमित लोग मनुष्य को दबाने तथा चक्कर में डालने के नाम को पूजा कहते हैं। देवी-देवताओं को पकड़ने के लिये, मनोकामना पूर्ण करने के लिये जो आपने पूजा का स्वरूप बना रक्खा है। वह बहुत ही घटिया रूप है। पूजा ऐसी नहीं हो सकती, देवता ऐसे नहीं हो सकते, आध्यात्म ऐसा नहीं हो सकता, ध्यान ऐसा नहीं हो सकता, जैसा कि आप लोगों ने समझ रखा है, कि अगरबत्तियाँ चढ़ाएँगे, चावल चढ़ाएँगे, शक्कर की गोली चढ़ाएँगे और मनोकामना पूर्ण हो जायेगी। इतना घटिया आध्यात्म नहीं हो सकता है जैसा कि आप लोगों ने सोच रखा है। आपकी पूजा घटिया, आपके देवता घटिया सब घटिया है। इसको समझना चाहिए।

हर रोज चिट्ठियाँ आती हैं, हर शाखाओं में मारकाट-मारकाट। मुझे मैनेजर बनाइये, इस मैनेजर को निकालिये। हमने शाखा तथा शक्तिपीठें इसलिए नहीं बनाई थीं, देवता को इसलिए नहीं बैठाया था कि लोगों का अहंकार बढ़े। हमने ट्रस्टी इसलिए नहीं बनाया कि इसे बरबाद करो हमने स्वयं गलती की इन लोगों मालिक, ट्रस्टी बना कर इनके अहंकार स्वार्थपरता को आगे बढ़ा कर अब पंचायत समितियों में जिस प्रकार झगड़ा होते है। हमारे शक्तिपीठों में भी हर जगह चाँडाल पन है हमें क्या दिखता नहीं। क्या हमने शक्तिपीठें इसीलिये बनाई थीं, पूजा इसीलिये प्रारम्भ किया था, इसलिये संगठन बनाया था कि आप लोग अहंकारी बन जाइये और आपसे में ही एक दूसरे की टाँग खिंचाई कीजिये। आप ऐसी पूजा को बंद कीजिये। पूजा मत कीजिये, यह घटियापन बन्द कीजिये। आप नास्तिक हो जाइये, भले ही, पर आप इस तरह के संगठन बनाना बन्द कर दीजिये। आप शक्तिपीठों को बनाना बन्द कर दीजिये।

यहाँ हम एक बात अवश्य कहेंगे कि आप आध्यात्मिकता के मौलिक सिद्धान्तों को समझिये। पूजा को पीछे हटाइये, आध्यात्मिकता के मौलिक सिद्धान्तों को समझिये। आप यह मत सोचिये कि गुरुजी ने चौबीस-चौबीस लाख का जप किया था नहीं, हम और चौबीस लाख के जप करने वालों का नाम बता सकते हैं जो आज बिलकुल खाली। एवं छूँछ हैं। जप करने वाले कुछ नहीं कर सकते हैं, हम ब्राह्मण की भक्ति, संत की शक्ति जगाना चाहते हैं। आप राम का नाम लें न लें। अब तो मैं यहाँ तक कहता हूँ कि अब माला जप करें या न करें एक माला जप करे या 81 माला जप करें, परन्तु मुख्य बात यह है कि आप अपने ब्राह्मणत्व को जगाइए। प्याऊ को कौन चलाएगा। हनुमान चालीसा पाठ करने वालों ने कितनों का भला किया है? ब्राह्मणों ने भला किया है, संतों ने भला किया है। ब्राह्मण की वाणी में संतों की तपस्या में बल होता है। आपको इसी प्रकार कोई मिल जायेगा तो आप नास्तिक हो जायेंगे। आप पूजा का महत्व बढ़ाते हैं। खबरदार ब्राह्मणत्व का महत्व बढ़ाइये, संतों का महत्व बढ़ाइये। अध्यात्म इन लोगों के द्वारा ही टिका हुआ है।

आपके पास बैंक में धन जमा नहीं है तो चेक कैसे काट सकते हैं। आपकी बैंक में पूँजी होनी चाहिए पहले जमा तो कीजिये कुछ। केवल पूजा से ही काम चलने वाला नहीं हैं हमारी सबसे बड़ी पूजा समाज की सेवा है हमें लाखों आदमियों की ही नहीं, वरन् सारे विश्व की सेवा की है। हमने अपनी अकल, धन अनुष्ठान, वर्चस् सभी इसी में लगाया है। हमने खेती करने वालों, मकान बनाने वालों को देखा है कि सेवा के नाम नगण्य हैं।

आप अकेले चले। हमारे गुरु अकेले चले हैं। हम अकेले चले है। आप भी अकेले चलिये संगठन के फेर में मत पड़िये। आपको बोलना नहीं आता है। आप कहते हैं कि व्याख्यान सिखा दीजिए? आप कौन है? हमें बतलाइये। भाषण से क्या होगा। आप हमारी बात मानिए। आपको बोलना नहीं आता है तो हम क्या करें। आप पोस्टमैन का काम करिये। हम बोलना सिखा देंगे। लड़कियों को सिखा दिया था। महाराज जी हमें भी बोलना सिखा दीजिये। आप त्याग करके तो हमें बतलाइये। जवाहर लाल नेहरू एवं शास्त्री जी को गाँधी जी ने खादी बेचने को कहा था। वे घर-घर जाकर खादी बेचते थे। घर-घर धकेल गाड़ी लेकर जाते थे तथा लोगों से कहते थे कि आप खादी पहनिये। बेटे खादी बेचते थे। हाँ बेटे खादी बेचते थे।

आप अपने आप को निचोड़िये। ये हमारा बेटा, यह हमारी पत्नी। देखना यही तुझे ऐसा मारेंगे कि तुझे याद रहेगा। हमारा बेटा हमारी पत्नी यही रटता रहेगा कि कुछ समाज के लिए भगवान के लिये भी करेगा। नहीं गुरुजी हम तो हनुमान चालीसा पढ़ते हैं, गायत्री चालीसा पढ़ते है। अरे स्वार्थी कहीं का, तेरी तो अकल खराब हो गयी है। अहंकार बढ़ गया है।

हमने आप में से हर किसी को कहा है कि आप ब्राह्मण बनिये। नहीं गुरुजी, हमने तो चंदा इकट्ठा कर लिया, तो हम क्या करेंगे इसका? आप आदमी तो बने नहीं पहले आप आदमी बनना सीखें। आप घटियापन छोड़िये, सुबह से शाम तक काम कीजिये। पात्रता बढ़ाइये।

ऋषियों ने अपने रक्त को एक घड़े में भरा था, जिससे सीताजी उत्पन्न हुई थीं। आपको भी संस्कृति की सीता की खोज करनी है। समाज के लिए, संस्कृति के लिए आप भी अपना समय अपना पैसा निकालिये, अपना रक्त निकालिये। आप अपने आप को निचोड़िये तो सही। निचोड़ने के नाम पर अँगूठा दिखाते है। त्याग के नाम पर जीभ निकालते हैं बकवास के नाम पर, घूमने के नाम पर बिना मतलब के आडम्बर बना रखे हैं। अपने आप को निचोड़िये। आप अपने को यदि निचोड़ेंगे तो फिर देख लेना आप क्या बन जाते हैं। हमने आप को को निचोड़ा तो देखिये क्या बन गये।

अगर आपने अपने आप को निचोड़ दिया तो हमारा एक काम जरूर करना और वह यह कि हमारे विचार-हमारी आग को लोगों तक पहुँचाना हम लेखक नहीं है। हमारे लिखे शब्दों में से आग निकलती है। विचारों की आग भावनाओं की-क्राँति की आग निकलती है आज जनता भी प्यासी, हम भी प्यासे हमारे विचारधारा ही आग है। हम आग उगलते हैं। हम लेखक नहीं हैं। हमारे लेखनी में से निकलती है आग, मस्तिष्क में से निकलती है आग, हमारी आँखों में से निकलती है-आग हमारे विचारणा की आग, भावनाओं की आग, संवेदनाओं की आग को आप घर-घर पहुँचाइये। आप में से हर आदमी को लाल बहादुर शास्त्री, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल होना चाहिए। गाँधी जी के आदेश पर वे खादी धकेल पर रखकर बेचने गये थे।

ईसाई मिशन की वाली महिलाएँ भी घर-घर जाती हैं और यह कहती हैं कि हमारी 1 पैसा की किताब जरूर खरीदिये। अगर अच्छा न लगे तो कल मैं वापस लूँगी।

अरे यह किताब बेचना नहीं है, बाबा, मेरे विचार को घर-घर पहुँचाना है। आप लोगों के जिम्मे हमारा एक सूत्री कार्यक्रम है। आप जाइये अपने को निचोड़िये। आपके घर का खर्च यदि 1000/- रुपये है तो निचोड़िये इसको और उसमें से बचत को ज्ञान या के लिये खर्च कीजिये। हमारी आग को बिखेर दीजिये, वातावरण को गरम कर दीजिये, उससे अज्ञानता को जला दीजिये। आप लोग जाइये ओर अपने आपको निचोड़िये। ज्ञान घट का पैसा खर्च कीजिये। तो क्या हम अपनी बीबी को बेच दें? बच्चे को बेच दें? चुप कंजूस कहीं के? ऊपर से कहते हैं हम गरीब हैं। आप गरीब नहीं कंजूस हैं।

हर आदमी के ऊपर हमारा आक्रोश है। हमें आग लग रही है और आप निचोड़ते नहीं हैं इनसान का ईमान, व्यक्तित्व समाप्त हो रहा है। आज शक्तिपीठें, प्रज्ञापीठें जितनी बढ़ती जा रहा है। आपस के लड़ाई झगड़े बढ़ते जा रहे हैं, सब हविश के मालिक बनते जा रहे है। हम चाहते है कि अब पन्द्रह-बीस हजार में फूस के शक्तिपीठ प्रज्ञापीठ बन जाते तो कम से कम लोगों का राग-द्वेष अहंकार तो नहीं बढ़ता। आज आप लोगों से एक ही निवेदन है कि आप हमारी आग स्वयं बिखेरिये, नौकरी से नहीं सेवा से आप जाइये एवं हमारा साहित्य पढ़िये तथा लोगों पढ़ाइये, और हम क्या कहना चाहते थे। हम दो ही बात आपसे कहना चाहते हैं-पहला हमारी आग को घर-घर पहुँचाइये। दूसरा ब्राह्मण एवं संत को जिन्दा कीजिये ताकि हमारा प्याऊ एवं अस्पताल चल सके। ताकि लोगों का अपने बच्चों को खिला सकें तथा उन्हें जिन्दा रख सकें तथा मरी हुई संस्कृति को जिंदा कर सकें। आप 11 माला जप करते हैं-आपको बहुत-बहुत धन्यवाद। यह जादूगरी नहीं है। किसी माला में कोई जादू नहीं हैं मैं तो यहाँ तक कहता हूँ कि मनोकामना की मालायें, जादूगरी की माला में आग लगा दीजिये आग मनोकामना की माला, जादूगरी की माला, आ चक्र जागृत करने की माला को पानी में बहा दीजिये।

तो क्या करें महाराज जी? आप अपने ब्राह्मणत्व को जगा दीजिए, साधु को जगा दीजिये ताकि आप अपनी नाव स्वयं पार कर सकें। अन्यथा हम यहीं कहेंगे कि शायद हमारा तप कम है नहीं तो इसमें से कहीं न कहीं हमें ब्राह्मण, साधु मिल ही जाते।

आपके पास धन नहीं तो अपनी भावना, विचार, श्रद्धा तो समाज में बिखेर ही सकते हैं। वही बिखेरिये, संत बनकर अपना परिचय दीजिये। संत दानी होता है, संत उदार होता है।

हमारा मन था कि अपने बचे हुए शेष दिनों में ब्राह्मण तथा संत के काम अधिक से अधिक कर सकूँ। लोगों की मध्यमा वाणी से-परावाणी से अधिक से अधिक सेवा कर सकूँ यह हमारा मन है, मैं आपको एक ही बात कह सकता हूँ कि आप अपने को निचोड़िये निचोड़िये बचत कीजिए-आपके श्रम, समय, धन और विचारणा-भावना की समाज को जरूरत है संस्कृति को जरूरत है। इसे विलासिता में खर्च मत दीजिये। अगर किसी में ब्राह्मणत्व एवं संत जिन्दा है तो उसे निचोड़िये। उसे आप बिखेर दीजिये। हमने प्रार्थना की है कि यदि आप लोगों में कहीं भी किसी भी कोने में यदि ब्राह्मणत्व या संत जिन्दा हो तो वह जग जाये। उपासना-साधना के नाम पर आप जादूगरी बन्द कीजिये। देवता को गुमराह करने वाली, मनोकामना सिद्ध करने वाली पूजा बन्द कीजिये।

साधना किसे कहते हैं आपको मालूम नहीं? आप हनुमान जी की पूजा करते है, संतोषी माता की पूजा करते हैं यह मंत्र हैं, न यंत्र है न पूजा है। आप हनुमान जी, संतोषी माता को साधते हैं। अरे पहले अपने आपको तो साधिये न, पर यह जो जादूगरी आप करते है वह बदमाशी के सिवा कुछ नहीं है। अगर आप पूजा-उपासना करते हैं तो ठीक यह आपकी मर्जी है, पर यह न तो कोई मंत्र जप है, न भजन है यह मात्र धूर्तगीरी है। पूजा के नाम पर यदि आप ऐसी बदमाशी करते हैं तो आपकी मर्जी पर इससे कुछ होने वाला नहीं है। पहले आप समर्पण करना सीखिये, यह मोटी-मोटी बातें थी, जो हमने किसी तरह से आपसे कह दिया।

हमारे गुरुजी की यही मर्जी है कि हम आप में से हर आदमी में से ब्राह्मण तथा संत को जिन्दा करें और हम यही चाहते हैं कि अगर हमारे अन्दर बल हो तथा आपके अन्दर ब्राह्मणत्व तथा साधु हो तो वह जिन्दा हो जाय। इस विदाई के अवसर पर यही कहकर हम आप लोगों को विदा कर रहे हैं। मित्र, गुरुजी ने हमेशा दिया है आगे भी देते रहेंगे शर्त एक ही है कि आप अपनी ब्राह्मण तथा संत की प्रवृत्ति जिन्दा करें। आप जाइये एवं अपने-अपने कामों में जुट जाइये। ॐ शान्ति।

हर लोकसेवी सृजनशिल्पी के लिए प्रथम पूर्णाहुति की वेला में माननीय-पठनीय


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