इन साहसी पक्षियों से हम कुछ तो सीखें

November 1995

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सुगम सुविधाजनक, आराम तलबी की जिन्दगी आज के आदमी का लक्ष्य बनी हुई है। वह अधिक से अधिक शौक -मौज से भरे दिन काटना चाहता है ओर विलासिता में निमग्न रहने के साधन ढूँढ़ता है। तथाकथित बड़े लोगों की आज कल यही प्रवृत्ति है। वे अधिक धन और सुविधा सामग्री इसी प्रयोजन के लिए जमा करते हैं।

छोटा कहा जाने वाला वर्ग धन की कमी की वजह से नहीं, उत्साह और उमंगों की दरिद्रता के कारण छोटा है और दिन-दिन और भी अधिक गिरता जाता है। उसे आलस्य और प्रमाद खाये जाता है। जब भूख विवश करती है तो कुछ करने को खड़ा होता है और उतने ही हाथ-पैर हिलाता है जितने के बिना कि पेट का गड्ढा नहीं भरता। इसके बाद उसे भी आलस्य प्रमाद, व्यसन आदि झगड़े, गप-शप और आवारागर्दी की सूझती हैं अपने आपके सम्बन्ध में बेखबर यह लोग कितना गन्दा गलीज जीवन क्रम अपनाये रहते हैं यह देखकर दया आती है, आवारागर्दी के समय को यदि वे शरीर-वस्त्र-मकान और जो कुछ उनके पास है उसे स्वच्छ बनाने में ही लगा लिया करें तो इतने मलीन तो न दीखें। पिछड़ेपन में निर्धनता और अशिक्षा भी कारण हो सकती है पर सबसे बड़ा कारण है मानसिक छोटापन। उसी व्यापक छूत की बीमारी को हम इस देश के पिछड़ेपन का मूलभूत कारण भी कह सकते हैं।

आरामतलबी या आलसीपन यह दोनों ही संजीव चेतन प्राणी की अन्तरात्मा की मूल प्रकृति के विपरीत है। यदि अन्तःकरण को दुर्बुद्धि ने मूर्छित न कर दिया हो तो उससे सदा साहसिकता का परिचय देने की-शौर्य प्रवृत्ति उमड़ती रहती दिखाई देगी। बहादुरी और वीरता के प्रतिफल ही सच्चा आनन्द और संतोष दे सकते हैं, इसे छोटे पक्षी भी जानते हैं।

चिड़ियों में बहुत ऐसी होती हैं जो बदलती हुई ऋतुओं का आनन्द लेने के लिये लम्बी यात्राएँ करती हैं। इसमें उन्हें काफी श्रम करना पड़ता है और भारी जोखिम उठानी पड़ती है तथा मनोयोग का प्रयोग करना पड़ता है, पर वे बेकार झंझट में क्यों पड़ें-चैन के दिन क्यों न गुजारे की भाषा में नहीं सोचती वरन् इस प्रकार साहसिकता का परिचय देने में आन्तरिक प्रसन्नता एवं सन्तोष का अनुभव करती हैं। इसके लिए उनमें भीतर से ऐसी उमंग उठती है जिसे पूरा किये बिना रहा ही नहीं जाता। पेट कहीं भी भरा जा सकता है और दिन कहीं भी काटे जा सकते हैं, यह मरी हुई जिन्दगी है जिसे मनुष्य भले ही पसन्द करे, पर पशु-पक्षियों से लेकर कीट-पतंगों तक कोई भी उसे पसन्द नहीं करता। कुछ चिड़ियाँ तो ऐसी हैं जो अपनी साहसिक यात्राओं द्वारा सम्भवतः मनुष्य को भी उत्साही, परिश्रमी, साहसी और महत्त्वाकाँक्षी होने की प्रेरणा करती हैं।

सितम्बर के प्रथम सप्ताह में भारत में ऐसे अनेक रंग-बिरंगे पक्षी दिखाई पड़ते है जो गर्मी और बरसात में नहीं थे। यह पक्षी जर्मनी, साइबेरिया, चीन, तिब्बत आदि सुदूर देशों से हजारों मील की लम्बी यात्रा करके आते है। तिघारी, चैती, हंसक, पैतरा, सुरखाव, लालसर आदि प्रमुख हैं। इनमें पैर के अँगूठे के बराबर ‘स्वेट पेनिकल’ जैसे छोटे और 25 पौण्ड भारी आदम कद सारस जैसे बड़े पक्षी भी होते हैं। यह लम्बी यात्रा सप्ताहों तथा महीनों की होती है। आहार की सुविधा, ऋतु-प्रभाव से बचाव और सैर-सपाटे का आनन्द यह इस लम्बी यात्रा का उद्देश्य होता है। आश्चर्य यह है कि यह अपनी यात्रा अवधि पूरी करके नियत समय पर ही अपने स्थानों को लौट जाते है और अपने पुराने पेड़ों और पुराने घोंसलों में ही जाकर फिर बस जाते है। भारत में भी वे मारे-मारे नहीं फिरते वरन् यहाँ भी वे अपने नियत स्थान बनाते हैं और जब तक जीवति रहते हैं प्रायः इन दोनों क्षेत्रों में अपने नियत स्थानों पर ही निवास करते हैं।

इन पक्षियों की लम्बी यात्राएँ, ऊँची उड़ानें आश्चर्य जनक हैं। बागटेल 2000 मील की लम्बी यात्रा करके बम्बई के निकट एक मैदान में उतरते हैं और फिर विभिन्न स्थानों के लिये बिखर जाते हैं। गोल्डन फ्लवर पक्षी अमेरिका से चलते हैं। पतझड़ में भारत में विश्राम करते हैं फिर थकान मिटाकर अटलांटिक और दक्षिण महासागर पार करते हुए दक्षिण अमेरिका जा पहुँचते हैं। आते समय वे समुद्र के ऊपर से उड़ते हैं और जाते समय जमीन के रास्ते लौटते हैं। अलास्का में उनके घोंसले होते हैं और वहीं अण्डे देते हैं। हर वर्ष प्रायः वह दो ढाई-हजार मील की यात्रा करते हैं। पृथ्वी की परिक्रमा तीन हजार मील की है। इस प्रकार वे लगभग पृथ्वी की एक परिक्रमा हर वर्ष पूरी करते हैं। आर्कटिक टिटहरी इन सब घुमक्कड़ पक्षियों से आगे हैं। उत्तरी ध्रुव के समीप उसका घोंसला होता है। पतझड़ में वह दक्षिणी ध्रुव जा पहुँचती है। वसन्त में फिर वापस उत्तरी ध्रुव लौट आती है। जर्मनी के बगुले 4 महीने में करीब 4000 मील का सफर पूरा करते हैं। रूसी बत्तखें भी 5000 मील की लम्बी यात्राएँ करती हैं यह पक्षी औसतन 200 मील की यात्रा हर रोज करते हैं। टर्नस्टान इन सबसे अधिक उड़ती है उसकी दैनिक उड़ान 500 मील के करीब तक की होती है साथ ही उसका 17 हजार फीट की ऊँचाई पर उड़ना और भी अधिक आश्चर्यजनक है। समुद्र पार करते समय उड़ने की ऊँचाई तीन हजार फीट से अधिक नहीं होती।

पक्षी विज्ञान के विज्ञानियों ने यह पाया है कि बाह्य दृष्टि से उनके सामने कोई ऐसी बड़ी कठिनाई नहीं होती जिसके कारण उन्हें इतना बड़ा जोखिम उठाने के लिए विवश होना पड़े। आहार की-ऋतु प्रभाव की घट-बढ़ होती रह सकती है, पर दूसरे पक्षी भी तो उन्हीं परिस्थितियों में किसी प्रकार निर्वाह करते हैं। फिर इन सैलानियों चिड़ियों को ही ऐसा विचित्र उमंग क्यों उठती है। इस प्रश्न का उत्तर उनकी वृक्क ग्रन्थियों में पाये जाने वाले विशेष हारमोन रसों से मिलता है। जिस प्रकार कुछ बढ़े हुए हारमोन अपने समय पर काम-वासना के लिए बेचैनी उत्पन्न करते हैं, लगभग वैसी ही बेचैनी इस प्रकार की लम्बी उड़ान भरने के लिए इन पक्षियों को विवश करती है। वे अपने भीतर एक अद्भुत उमंग अनुभव करते हैं ओर वह इतनी प्रबल होती है कि उसे पूरा किये बिना उनसे रहा ही नहीं जाता। यह उड़न हारमोन न केवल प्रेरणा देते हैं वरन् उसके लिए उनके शरीरों में आवश्यक साधन सामग्री भी जुटाते हैं। पंखों में अतिरिक्त शक्ति, खुराक का समुचित साधन न जुट सकने की क्षतिपूर्ति करने के लिए बढ़ी हुई चर्बी-साथ उड़ने की प्रवृत्ति, समय का ज्ञान, नियत स्थानों की पहचान सफर का सही मार्ग जैसी कितनी ही एक से एक अद्भुत बातें है जो इस लम्बी उड़ान और वापसी के साथ जुड़ी हुई हैं। उन उड़न हारमोन्स को पक्षी के शरीर, मन और अंतर्मन में इस प्रकार के समस्त साधन जुटाने पड़ते हैं जिससे उनकी यात्रा प्रवृत्ति तथा प्रक्रिया को सफलतापूर्वक कार्यान्वित होते रहने का अवसर मिलता रहे।

प्रकृति नहीं चाहती कि कोई प्राणी अपनी प्रतिभा को आलसी और विलासी बनाकर नष्ट करें। प्रकृति इन यात्रा प्रेमी पक्षियों को यही प्रेरणा देती है कि वे विभिन्न स्थानों के सुन्दर दृश्य देखें, और वहाँ के ऋतु प्रभाव एवं आहार-विहार के हर्षोल्लास का अनुभव करें। अपनी क्षमता और योग्यता को परिपुष्ट करें।

मनुष्य में आराम तलबी की प्रवृत्ति इतनी घातक है कि वह कुछ महत्वपूर्ण काम कर ही नहीं सकता। अपनी प्रगति के द्वारा किसी को रोकना हो तो उसे काम से जो चुराने की आदत डालनी चाहिए और साहसिकता का त्याग कर विलासी बनने की बात सोचनी चाहिए। ऐसे लोगों को मुँह चिढ़ाते हुए-उनकी भर्त्सना करते हुए ही यह उड़न पक्षी विश्व निरीक्षण, विश्व भ्रमण करते रहते हैं-ऐसा लगता है।


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