विल्सन इंग्लैण्ड से भारत में चिकित्सा अधिकारी बनकर आये थे। यहाँ आकर उन्हें भारतीय संस्कृति की गम्भीरता का बोध हुआ। उनने संस्कृत भाषा पढ़ी और अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों का अनुवाद किया। सरकारी काम से बचा हुआ सारा समय वे इसी कार्य में लगाते थे। भारत से लौटने के बाद वे आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में संस्कृत के प्रोफेसर रहे। तब उन्हें और भी अधिक पढ़ने का अवसर मिला। जर्मनी के मैक्समूलर को उनने अपना मानस पुत्र माना, अपना निष्कर्ष उसे समझाया। वेदों के भाष्यकार मैक्समूलर के इतना श्रम करने का साहस विल्सन की प्रेरणा से ही मिलता था।
ग्लेड्स्टन इंग्लैण्ड के प्रधानमन्त्री थे। उनकी गणना संसार के सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञों में की जाती है।
वे एक दिन घूमने निकले, तब एक गाड़ीवान् से उनकी भेंट हुई। गाड़ीवान् ने गाड़ी में लोहा भर रखा था। ग्लेड्स्टन ने गाड़ीवान् से लोहा लादकर लाने से मिलने वाले किराये आदि के बारे में पूछ-ताछ की। इतने में रास्ते में एक टीला आ गया। घोड़ा को गाड़ी खींचने में तकलीफ होने लगी। यह देखकर ग्लेड्स्टन ने गाड़ीवान् से पूछा-अब तू क्या करेगा” |
गाड़ीवान् ने कहा-और क्या किया जा सकता जा सकता है, कन्धा लगाना पड़ेगा।”
ग्लेड्स्टन बोले-अच्छा चलो, मैं भी कन्धा लगाता हूँ।
यह सुनकर ग्लेड्स्टन गाड़ी वाले के साथ कन्धा लगाने लगे। थोड़ी देर में गाड़ी टीले पर चढ़ गयी। गाड़ी वाले ने ग्लेड्स्टन का आभार माना और ग्लेड्स्टन अपने रास्ते चले गये।
आगे जाने पर एक आदमी ने गाड़ीवान् से कहा-तुम जानते हो वह आदमी कौन था?” गाड़ीवान् बोला-नहीं तो मैं क्या जानूं?” उस व्यक्ति ने कहा - “अरे, वे तो ग्लेड्स्टन थे-अपने राष्ट्र के प्रधान-मंत्री। नादान गाड़ीवान् आश्चर्यचकित होकर बोला-कौन, ग्लेड्स्टन?”
ऐसी थी उस राष्ट्र के अध्यक्ष की सादगी और सरलता।