एक दार्शनिक तेली के यहाँ तेल लेने जा पहुँचा। तेली ने जब तक तेल की नाप तौल की वह देखता रहा कि कोल्हू का बैल स्वतः ही चल रहा है उसे कोई हाँक भी नहीं रहा। उसने तेली से कहा आप का बैल बहुत ईमानदार और आज्ञाकारी है कोल्हू चलाने वाला भी नहीं फिर भी चल रहा है तेली बोला देखते नहीं आँखों पर पट्टी बंधी है उसने पूछा ऐसा क्या किया? तेली ने कहा आँखें खुली होने पर बैल का खुलना कठिन है बैल कोई आदमी तो है नहीं कि आँखें होते हुए भी विश्वास न करे और अंधा बन जाय। दार्शनिक की समझ में आदमी का असली स्वरूप आ गया।