अपरिग्रह में ही ब्राह्मणत्व निहित है। एक बार किसी महिला ने अमेरिकी दार्शनिक थोरो को एक चटाई भेंट की। चटाई को वापिस करते हुये, वह बोले-श्रीमती जी! न तो मेरे घर में इतना स्थान है, कि मैं चटाई को बिछा सकूँ और न इतना समय ही है कि उसे झाड़ कर साफ करूँ। फिर घर को अनावश्यक वस्तुओं का संग्रहालय बनाने से लाभ भी क्या है? इसी प्रकार उन्होंने अपनी मेज़ पर रखे किसी मित्र द्वारा उपहार में दिये-सफेद सुन्दर पत्थरों के तीन मनोरम पेपर वेटों को फेंक दिया। उनके मित्र ने इसका कारण पूछा, तो उन्होंने यही उत्तर दिया-भाई अपने मस्तिष्क को साफ करने का कार्य ही क्या कम है, जो बेकार की वस्तुओं को ढेर लगा कर झंझट मोल लूँ।