ईसा मसीह केपर नाम के नगर में पहुँचे। वे दुष्ट दुराचारियों के मुहल्ले में ठहरे और वहीं रहना भी शुरू कर दिया। नगर के प्रतिष्ठित लोग ईसा के दर्शन करने पहुँचे, तो उन्होंने आश्चर्य से पूछा-इतने बड़े नगर में आपको सज्जनों के साथ रहने की जगह न मिली या आपने उनके बीच रहना पसंद नहीं किया? हँसते हुए ईसा से कहा-वैद्य मरीजों को देखने जाता है या चंगे लोगों को? ईश्वर का पुत्र पीड़ितों और पतितों की सेवा के लिए आया है। उसका स्थान उन्हीं के बीच तो होगा।
एक महिला समदर्शी मंदिर के द्वार पर खड़ी रो रही थी। उसे मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा था। तभी चुपचाप एक व्यक्ति आकर उसके पास खड़ा हो गया। वह सीधा-साधा शाँत और मितभाषी था। वह भी बाहर उस स्त्री के साथ खड़ा रहा। भीतर मंत्र पाठ जोर−शोर से जारी था और वह महिला रोये जा रही थी।
रोती क्यों हो देवि? उस व्यक्ति ने बड़ी करुणा से पूछा। उस व्यक्ति के शब्दों से महिला का मर्माहत मन कुछ हलका हुआ। सिसकियों के बीच महिला ने उत्तर दिया मुझे मंदिर में नहीं जाने देते। शाँत व्यक्ति ने उसे सांत्वना देते हुए कहा-यह तो कोई ऐसी बात नहीं कि जिस पर रोया जाय। मुझे भी तो अंदर नहीं जाने दिया जाता। अकेली तुम ही बहिष्कृत नहीं हे देवि।
“पर तुम कौन हो?” महिला ने प्रश्न किया?
वही समदर्शी जिसके नाम का मंदिर बनाकर मूर्ति के सामने पाठ परायण किया जा रहा है।
महिला सांत्वना और संतुष्टि लेकर लौटी। फिर तो ऐसे निष्प्राण निर्जन भवन में जाना व्यर्थ है। आज के दिग्गज धर्म–ध्वजाधारियों के भवन ऐसे ही है।