समर्थ गुरु ने पलायनवादी भाग्यवादी मान्यताओं को उलटा । अहिंसा का अतिवाद भी नहीं अपनाया, वरन् संव्याप्त अनाचार के विरुद्ध संघर्ष का लोक मानस तैयार किया। दूरदर्शिता और यथार्थता भी इसी प्रतिपादन में संग्रहित थी।
अंगुलिमाल डाकू था, पर बुद्ध की करुणा उसके निष्ठुर सूखे अन्तःकरण पर कृपा बनकर बरसी। उसने अपना दृष्टिकोण बदला और पतन के पथ से स्वयं को मोड़कर प्रव्रज्या लेली। धर्म-कार्य में प्रवृत्त होते ही उसकी जीवन धारा ही बदल गयी।