प्रकृति द्वारा प्रदत्त उपहारों में दृष्टि का स्थान सर्वोपरि है। इस अमूल्य उपहार की सुरक्षा एवं स्वस्थता के लिए हमें निरंतर सजग रहना पड़ता है। यों तो संतुलित और पौष्टिक आहार से शरीर के सभी अंग-अवयव बलिष्ठ होते हैं, किन्तु आँखों के लिए कुछ विशेष रूप से उत्तरदायी ऐसे आहार तत्व चिकित्सा द्वारा खोज निकाले गये हैं, जिनकी यदि उपेक्षा होती रहे तो नेत्र ज्योति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उनमें विटामिन ‘ए’ प्रमुख तत्व है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के सर्वेक्षणकर्ता वैज्ञानिकों के अनुसार विटामिन ‘ए’ की कमी के कारण अंधत्व में प्रतिवर्ष 5-6 लाख बच्चे अपनी नेत्र-ज्योति खो बैठते हैं। सुप्रसिद्ध चिकित्सा विज्ञानी डभ्0 एम॰ फ्रेंकलिन विकनेल का कहना है कि इस विटामिन के अभाव में रतौंधी का होना एक सामान्य बात है। इसकी कमी के कारण प्रायः आँखें सूजी रहती हैं और ऐसा व्यक्ति यदि तब भी उपेक्षा बरतता रहे तो वह स्थायी रूप से अंधेपन का शिकार हो सकता है। विटामिन ‘ए’ प्रकृति परिमाण में पाया जाता है, जिनका समावेश आहार में होना ही चाहिए।
व्यक्ति द्वारा यदि संतुलित और प्राकृतिक आहार लिया जाता रहे तो स्वास्थ्य अक्षुण्ण बना रहेगा और यदि स्वास्थ्य अच्छा है तो आँखें भी स्वस्थ रहेंगी ही, क्योंकि वे भी शरीर के अंग अवयव हैं। स्वस्थ आँखों का तात्पर्य मात्र आँखों सही दृष्टि से नहीं, वरन् सर्वथा दोष रहित आँखों से है। अर्थात् आँखों में शीघ्र थकान न आवे, पीलापन लिए हुए न हो और आँखों का गोलक गड्ढे में धँसा हुआ न लगे और न पुतलियों, पलकों के नीचे झुर्रियाँ हों। आंखें स्वच्छ, निर्मल, धवल व चमकदार हों तो ही आँखें स्वस्थ कहीं जायेंगी।
नेत्र चिकित्सा विज्ञानियों के अनुसार
विटामिन “ए” नेत्रों के स्वास्थ्य से बहुत अधिक संबंध रखता है। हमारी आँखों के ‘रेटिना’ कोषों में जो प्रतिक्रियाएं होती हैं, उनके लिए विटामिन ‘ए’ की प्रचुर मात्रा में उपस्थिति आवश्यक है इसकी कमी से इन क्रियाओं में व्यवधान होने लगता है और फलस्वरूप आँखों का ‘डार्क एडेप्टेशन’ का समय बढ़ने लगता है और रतौंधी होने लगती है। यदि इस विटामिन की और अधिक कमी हो जाती है तो दूसरे गंभीर लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं। आँखों की कंजरटाइवा के कोष मोटे, परतदार और सूखे हो जाते हैं और अपनी चमक खो देते हैं। आँख के कोने पर यह परत मोटी , सफेद और सिकुड़नदार हो जाती है। ऐसा बालक आँखों में किरकिरी की शिकायत करता है, धूप में देख नहीं सकता और आँखों से पानी बहने लगता है। यह प्रायः स्थानीय संक्रमण के कारण होता है जिसके फलस्वरूप आँसुओं को स्रवित करने वाली ग्रंथियां भी कम मात्रा में अपना स्राव निकालती है और आँखें सूखी सी रहने लगती है। उनकी चमक जाती रहती है। आँसुओं की कमी से कार्निया की मिलने वाला पोषण कम हो जाता है जिससे इसके पास वाले कन्जक्टाइवा पर सफेद धब्बे पड़ जाते हैं। इन परिस्थितियों में आँखें अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता खो बैठती हैं, कार्निया-अक्षिपटल पर घाव हो जाते हैं और अंततः वह फट जाता है और व्यक्ति सदा के लिए अपनी नेत्र ज्योति खो बैठता है।
आँखों को स्वस्थ बनाये रखने में न अधिक मेहनत करनी पड़ती है और समय तथा श्रम भी अधिक नहीं व्यय करना पड़ता। मात्र थोड़ी जागरुकता एवं कुछ नियम पालन करने से आँखों को सदा स्वस्थ बनाये रखा जा सकता है। इन्हें निरंतर स्वस्थ रखने के संबंध में सर्वोपरि ध्यान नेत्रों की स्वच्छता पर देना होता है। आँखों की प्रकृति ठंडक पसंद है, अतः नित्य सुबह उठते ही उन्हें ठंडे पानी से साफ करना न भूला जाय। अच्छा सुबह उठते ही एक बाल्टी में शुद्ध शीतल जल लेकर बैठा जाय। एक स्वच्छ गिलास से उसमें से जल लेकर मुँह में पूरी तरह पानी भर लिया जाय। इसके पश्चात् एक चुल्लू में पानी भरकर आँखों पर हल्के से छींटे मारे। पलकों पर ध्यान रखा जाय कि वे झपके नहीं। पाँच-सात बार छींटे मारते-मारते साँस फूलने लगती है। अब मुँह का पानी कुल्ला करके सामान्य साँस लेनी चाहिए। थोड़े अंतर के बाद फिर से मुंह में पानी भरकर जल के छींटे आँखों पर मारें। यह क्रम पाँच-सात बार कर लेने से आँखें स्वच्छ एवं स्वस्थ अनुभूत होने लगती है।
आँखों को स्वच्छ एवं स्वस्थ बनाये रखने की क्रियायें अत्यंत सरल है, जिन्हें कोई भी अपनाकर लाभान्वित हो सकता है। आँखों को धूल एवं गर्मी से बचाये रखने के लिए यह अभ्यास भी यदि प्रति दिन न कर सकते हों तो प्रति दूसरे दिन करने की तत्परता बरतनी चाहिए। इसके लिए एक बाल्टी साफ पानी लिया जाय और श्वाँस रोककर अपने सिर को उस पानी में इतना डुबोया जाय कि आँख, नाक, मुँह सभी पूरी तरह डूब जायँ। अब उसी पानी के अंदर आँखें खोलने, बंद करने और पुतलियों को इधर-उधर घुमाने का प्रयत्न करें। जब साँस लेता हो तो सिर बाहर कर लें। दो-चार आवृत्ति से आँखें भलीभाँति स्वच्छ और शीतल हो जाती है।
नेत्रों को स्वच्छ एवं सशक्त बनाये रखने में त्रिफला जल को बहुत ही गुणकारी पाया गया है। किसी साफ-सुथरे मिट्टी के पात्र या स्टील के वर्तन में एक-दो चम्मच त्रिफलाचूर्ण अर्थात् आँवला, हरीतिकी एवं बहेड़ा के समभाग चूर्ण को रात्रि में एक गिलास पानी में भिगो दिया जाय। प्रातःकाल उसे स्वच्छ हाथों से खूब मलकर साफ सुथरे कपड़े से छान लें। यह जल नेत्रों को धोने में प्रयुक्त किया जाय तो उनकी सफाई तो होगी ही, साथ-साथ प्राकृतिक पोषण भी उन्हें मिलता रहेगा। इसी भाँति रात को सोते समय आँखों को शीतल जल से धो लेना भी लाभकर सिद्ध होता है।
आँखों को विश्राम निद्रा से मिलता है। अतः पूरी नींद लेने में कोताही न बरती जाय। चौबीस घंटों में कम से कम 6-7 घंटे सोने से आँखें चुस्त एवं दुरुस्त बनी रहती हैं। इसके ठीक विपरीत यदि पूरी नींद न ली गयी हो तो उनमें जलन बनी रहती है। वे सूजी-सूजी तथा बोझिल सी लगती है। उनमें लाल-लाल डोरे धागे से दिखने लगते हैं। ऐसे लोगों को प्रायः सिर दर्द की शिकायत बनी रहती है और काम-काज में जी नहीं लगता। आँखों से काम लेते हुए भी बीच-बीच में उन्हें आराम देने की भी आदतें विकसित करनी चाहिए।
नेत्रों को कमजोर और बीमार बनाने का एक प्रमुख साधन टेलीविजन का अति प्रयोग भी है। अतः उसे देखते समय लगातार एक टक न देखा जाय तो आँखों की सेहत के लिए अच्छा रहेगा। इसके लिए बीच -बीच में दृष्टि इधर-उधर घुमा लेने से भी बहुत कुछ राहत मिल जाती है। आँखों से बारीक काम लेते समय भी उन्हें बीच-बीच में आराम दिया जाय। यदि पढ़ाई कर रहे हैं या सिलाई, कढ़ाई कर रहे हैं तो सामान्यतया 20 मिनट बाद काम बंद करके थोड़ी देर तक दोनों हाथों की हथेलियों से आंखें बंद रखने से उनकी थकान दूर हो जाती है। यदि आँखें थकी-थकी सी लग रही हों तो गुलाब जल मिश्रित पानी से साफ रुई भिगोकर आँखों पर रखने से राहत मिलती है और तरोताजगी महसूस होती है।
दृष्टि सामर्थ्य को सुधारने या उसे यथावत् बनाये रखने के लिए प्राकृतिक चिकित्सकों ने जल, सूर्य तथा चन्द्र किरणों से लाभ उठाने की बातें बतायी है। शीतल जल से आँखों को धोने या छींटे मारने से उनको स्फूर्ति मिलती है, सफाई होती है तथा शीतलता मिलती है। सूर्य किरणों से लाभ उठाने के लिए सुबह का समय सबसे अच्छा रहता है, जब कि स्वर्णिम सूर्य की किरणें शीतलता लिए होती हैं । इस प्रक्रिया में अधखुले नेत्रों से कुछ सेकेंड तक सूर्य के प्रकाश को देखते हैं और फिर नेत्र बंद कर लेते हैं। अब अंतः त्राटक की भाँति ध्यान द्वारा उस प्रकाश ऊर्जा को दोनों नेत्रों एवं उससे संबद्ध समस्त तंत्रिकाओं को सूक्ष्म केन्द्रों पर केन्द्रित करते हैं, साथ ही यह भावना भी परिपुष्ट करते चलते हैं कि उसकी समस्त कमजोरियाँ दूर होती जा रही हैं और नेत्र स्वस्थ एवं तेजस्वी बनते जा रहे है। दो-तीन बार से आरंभ करके सामर्थ्यानुसार सुबह को 10-15 मिनट तक अभ्यास किया जा सकता है। इसी तरह रात्रिकालीन चन्द्रमा को अथवा किसी तेज तारे को अपलक नेत्रों से तब तक देखते रहें जब तक आँखों से पानी न आने लगे। एक-दो बार के अभ्यास से ही आँखों में शीतलता प्रतीत होने लगती है।
मूर्धन्य नेत्र चिकित्सा विज्ञानी डॉ0 वेट्स तथा जर्मनी के नेत्र विशेषज्ञों ने अपने अनुसंधान निष्कर्ष में बताया है कि पामिना क्रिया नित्य नियमित रूप से करते रहने पर आँखों में विशेष तेज उद्भूत होता है और वे स्वस्थ बनी रहती है। इस अभ्यास में दोनों हाथों से आँखें ढक ली जाती है और किसी काली वस्तु का ध्यान किया जाता है। जब आँखों के सामने घना अंधेरा छाने लगता है तब हथेलियों को हटा लिया जाता है और आँखें झिलमिलाते हुए उन्हें प्रकाश में खोला एवं बंद किया जाता है। इसी भाँति दोनों हथेलियों को आपस में रगड़ कर आँखों को एकबार गरम सेंक दी जाती है तो दूसरी बार आँखें झपकाते ठंडी हथेलियों से हलका सा पुतलियों पर दबाव डाला जाता है। एकोत्तर क्रम से यह प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है और इस प्रकार आँखों को क्रमशः उष्णता और शीतलता मिलती है और वे स्फूर्तिवान एवं स्वस्थ बनी रहती है।
नेत्रों को धूप, धूल और धुंआ से बचाकर रखने से वे स्वस्थ बने रहते हैं। किसी वस्तु को एकटक देखते रहने, लेटकर पढ़ने, सिनेमा, टी0वी0 पास से एवं बराबर अपलक देखते रहने से आँखों पर बुरा असर पड़ता है। इसने बचा ही जाना चाहिए।