अहंकार विगलित नहीं हुआ है (Kahani)

July 1994

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कुशल मूर्तिकार चित्र सेन को बंदी बनाने राज्य के सैनिक जब पहुँचे तब तक उसने अपनी ही अनेक मूर्तियाँ बना डाली और उनके बीच स्व मूर्तिवत् बैठ गया। पहचानना कठिन था कि असली चित्रसेन कौन सा है। सैनिक असमंजस में पड़ गये। कुछ विचार कर एक चतुर सैनिक कहा । यह कितनी सुँदर मूर्तियाँ हैं। इन्हें बनाने वाला निश्चय ही उच्च कोटि का कलाकार है” प्रशंसा सुनकर मूर्तिवत् बैठे चित्रसेन के चेहरे पर चमक आ गई।

सैनिक ने मुस्कुरा कर कहा “ लेकिन अभी कुछ कमी है।” “ कौन सी कमी है ?” आवेश में आकर चित्रसेन खड़ा हो गया। सैनिक ने तुरंत कलाई पकड़ली और बंदी बनाते हुए बोला बस यही कि अभी अहंकार विगलित नहीं हुआ है। चित्रकार अपनी मूर्खता पर सिर धुनता रह गया।

एक समृद्ध परिवार में दो भाई थे । काफी बड़ी जागीर थी। दोनों की शिक्षा दीक्षा भी संपन्न हुई। संस्कार एवं गलत संगत में पड़ जाने के कारण एक भाई को जुआ खेलने की आदत पड़ गई। सारी संपत्ति नष्ट हो जाने पर चोरी करने लगा। साथ ही उसमें कई बुराइयाँ घर कर गई। दूसरा भाई लोगों की दृष्टि में बड़ा प्रतिष्ठित था। वह समाज की भलाई के काम में हाथ बँटाता, सदाचार का जीवन बिताकर जितनी दूसरों की भलाई हो सकती थी, उतनी करता। लोग उसका बड़ा सम्मान करते।

एक ही कुल, एक ही परिस्थिति, एक ही वातावरण, फिर भी दोनों की दो विपरीत ध्रुवों जैसी स्थिति । ऐसा क्यों ? इसका एक ही उत्तर है कि पहले ने अपने जीवन में मनुष्यता की राह को भूलकर हैवानियत की राह अपनाई । दूसरे ने सही राह चलकर अपने को पूर्ण मनुष्य के रूप में विकसित किया।


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